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महान हस्तियों की विदाई और सोशल मीडिया की भूमिका

Shiv Kumar Mishra
13 Aug 2020 4:14 AM GMT
महान हस्तियों की विदाई और सोशल मीडिया की भूमिका
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जब सड़कों पर किसी मृत आत्मा की अर्थी गुजरती है तो नहीं जानने वाले लोग भी खड़े होकर उन्हें सम्मान देते है।

अशोक मिश्र

मंगलवार को मनहूस खबर आयी की उर्दू के मशहूर शायर राहत इंदौरी नहीं रहे ।एक दिन पहले ही उनके कॉरोंना पॉजिटिव होने की खबर आती है और इस जंग से जीतने का जज्बा भी। लेकिन किसे मालूम था कि यह उनका अंतिम जंग है। देश के सबसे कोरोंना प्रभावित शहरों में एक इंदौर को उन्होंने अंतिम दम तक नहीं छोड़ा।

देश के सबसे अधिक साफ़ सुथरे शहर में एक इंदौर के रहने वाले राहत इंदौरी जब कवि सम्मेलनों या मुशायरों में अपनी शायरी पढ़ते तो पूरा हाल थम जाता। अनेक बार उनको सुनने देखने और बात करने का मौका मिला। उर्दू शायरी की इस महान हैसियत का जाना दुखद लगा। लेकिन उससे भी दुख ज्यादा तब हुआ जब सोशल मीडिया में उनके बारे में लोगों की प्रतिक्रिया देखने को मिली।अपने को हिंदूवादी और संस्कारों के रक्षक होने का दावा करने वाले लोगों को शायद इस तहज़ीब का भी पता नहीं कि हमारा धर्म संसार से विदा होने वालों को कैसी विदाई देता है।

जब सड़कों पर किसी मृत आत्मा की अर्थी गुजरती है तो नहीं जानने वाले लोग भी खड़े होकर उन्हें सम्मान देते है। देश में अब शायद कोई दूसरा राहत पैदा हो। ये शायद पहला मामला नहीं है।इसके पहले फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर इरफान और सुशांत सिंह राजपूत के बारे में अनेक ऐसी भद्दी टिप्पणियां आई है जिसके बारे में लिखने में भी शर्म आती है।

इतना ही नहीं कोराना के संकट से गुजर रहे सदी के शहंशाह अमिताभ बच्चन के बारे में की गई अशोभनीय टिप्पणी ने तो सारी हद ही पार कर दी। सोशल मीडिया पर अपनी काबिलियत का प्रदर्शन करने वालों को यह नहीं पता कि सदी के महानायक बनने के लिए अमिताभ बच्चन को क्या खोना पड़ा। राहत इंदौरी और इरफान खान का कोई गॉड फादर नहीं था जिसने उनको इस मुकाम तक पहुंचाया।

ऐसे में उनके सम्मान में कुछ नहीं लिख सकते तो कम से कम मौन तो रहो।क्या आपको नहीं पता कि हमारा धर्म कहता है कि जो दूसरों के लिए खाई खोदता है पहले वहीं गिरता है।

Shiv Kumar Mishra

Shiv Kumar Mishra

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