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बड़ी खबर: आतंकी घटना में शहीद हुए जवानों के लिए ऐसे डबल स्टैंडर्ड क्यो अपनाए जाते हैं?

Special Coverage News
18 Feb 2019 5:23 AM GMT
बड़ी खबर: आतंकी घटना में शहीद हुए जवानों के लिए ऐसे डबल स्टैंडर्ड क्यो अपनाए जाते हैं?
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For the jawans who died in terrorist incidents, such double standard

गिरीश मालवीय

रविवार को चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुलवामा हमले में बिहार के सीआरपीएफ जवान संजय कुमार सिन्हा ओर रतन कुमार ठाकुर को शहीद बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी. दूसरी रैली में उन्होंने झारखंड के विजय सोरेन को भी शहीद के रूप में याद किया

जबकि 2017 में संसद में इन्हीं की सरकार बता चुकी है कि पैरामिलिट्री जवानों के ड्यूटी पर जान गंवाने पर शहीद शब्द का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं 14 मार्च 2017 को लोकसभा में दिए एक जवाब में गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने ये साफ किया था कि किसी कार्रवाई या अभियान में मारे गए केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स के कर्मिकों के संदर्भ में शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है.

लेकिन बात सिर्फ शहीद बोलने या न बोलने तक ही सीमित नही है.

पुलवामा हमले में मारे गए सारे जवान CRPF से आते हैं। क्या आप जानते हैं इन्हें कितना मुआवजा दिया गया है? दरअसल सब राज्यों ने अपनी अलग अलग घोषणाएं की है झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने विजय सोरेन को 10 लाख रुपये की सहायता राशि देने की बात की है, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार दोनों जवानों के परिजनों को 36 - 36 लाख रु देने की बात कही है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री 25 लाख दे रहे है, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कुछ महीनों पहले हुए सीआरपीएफ के वार्षिक 'शौर्य दिवस' कार्यक्रम में बोले थे कि सरकार इस बात को सुनिश्चित करने का भरपूर प्रयास कर रही है कि कर्तव्य निर्वहन के दौरान शहीद होने वाले सैनिकों के परिवार को कम से कम एक करोड़ रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाए!.

अभी तो पुलवामा हमले को लेकर देश मे एक माहौल बन गया है इसलिए लगभग 25 लाख रुपये का मुआवजा इन मृत सैनिकों के परिजनों को देने की बात भी की जा रही है लेकिन वास्तविकता में क्या होता है वह समझिए.

पिछले दिनों हुए श्रीनगर में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए बिहार के भोजपुर जिले के पीरो गांव के सीआरपीएफ जवान मोजाहिद के परिजनों को बिहार सरकार सिर्फ पांच लाख रुपये ही दे रही थी उन्होंने बिहार सरकार द्वारा घोषित 5 लाख मुआवजा लेने से इंकार कर दिया, उन्होंने कहा कि मेरा भाई शराब पीकर नहीं मरा, बल्कि देश के लिए शहीद हुआ है!

सितंबर 2016 में उरी हमले में बंगाल के 22 साल के जवान गंगाधर दोलुई शहीद हो गए थे. परिवारवालों के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मात्र 2 लाख रुपये मुआवजे का ऐलान किया, लेकिन पिता ओंकारनाथ दोलुई ने राज्य सरकार की ओर से ऐलान किए गए दो लाख रुपये के मुआवजे और होमगार्ड की नौकरी को नाकाफी बताते हुए इसे ठुकरा दिया उनको अपने शहीद बेटे के अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपये की रकम भी उधार लेनी पड़ी थी!

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलवादियों के हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवान अभय कुमार की पत्नी ने भी बिहार सरकार द्वारा दिए गए पांच लाख रुपये का चेक लेने से इनकार कर दिया था। हैरानी की बात ये है कि करीब 1 साल के बीतने के बावजूद शहीद के परिवार को मुआवजे का एक पैसा तक नहीं मिला है

ओलंपिक में मेडल लाने वाले , क्रिकेट में ट्राफी जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों पर सरकार एक जीत हासिल करने पर करोड़ों रुपये की बरसात करती है, लेकिन अपनी जान पर खेलकर शहीद होने वाले की कीमत सिर्फ पांच, दस, ग्यारह या पच्चीस लाख रुपये लगाई जाती है ......क्यो?

राजनीति को परे रख कर हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए CISF, CRPF और BSF के जैसे पैरामिलिट्री फोर्सेस के जवानों के साथ भयानक रूप से भेदभाव हो रहा है.....पैरा मिलिट्री फोर्स का संचालन गृहमंत्रालय करता है, जबकि सेना राष्ट्रपति के अधीन होती है। इन दोनों के सेवा नियमों में अंतर है. पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को सेना की तरह पेंशन भी नही दी जाती है. देश में अर्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या 9 लाख से थोड़ी सी ज़्यादा है। जबकि सेना, वायुसेना ओर नेवी में शामिल सैनिकों की संख्या क़रीब साढ़े 13 लाख है

इनसे किये जाने वाले भेदभाव का आलम यह हैं कि आर्मी एक्‍ट 1950 में भारतीय सेना में कार्यरत सभी कर्मी अपने आपराधिक दायित्वों के लिए समान रूप से जिम्मेदार माने गए हैं. लेकिन सीआरपीएफ एक्ट, आरपीएफ एक्ट तथा पीएसी एक्ट में इस सम्बन्ध में वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिकारियों में अंतर किया गया है. इन बलों में अधीनस्थ कर्मियों को अवकाश से अनुपस्थित रहने, अपने नीचे के अधिकारियों से दुर्व्यवहार करने, वरिष्ठ अधिकारियों से दुराचरण करने से ले कर अन्य कार्यों के लिए आपराधिक रूप से जिम्मेदार बनाया गया है, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों को इससे मुक्त रखा गया है.

दिन रात शहीद शहीद चिल्लाने वाला हमारा मीडिया यह क्या इन इस भेदभाव पर सवाल उठाता हैं? ........क्या वह यह सवाल उठाता है कि क्यों दिल्ली और मध्यप्रदेश की सरकारे इन शहीदों के परिजनो को 1 करोड़ रुपये देती है जबकि अन्य सरकारें 10 से 25 लाख रुपये देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं?

क्या किसी ने पूछा कि एक ही आतंकी घटना में शहीद हुए जवानों के लिए ऐसे डबल स्टैंडर्ड क्यो अपनाए जाते हैं?


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