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जो मज़ा था कभी जवानी में
वो मज़ा अब कहां कहानी में !!
एक दिन आप घूमने आओ
मेरे लफ्ज़ों की बागबानी में !!
बच गया झूठ जुर्म करके भी
मर गया सच ग़लत बयानी में !!
चल मेरे साथ तू कभी संसद
आग लगती दिखाऊं पानी में !!
रोक लेती है भूख ही वरना
कौन रहता है राजधानी में ??
पेट भरता है सिर्फ़ उसका ही
जो भी शामिल है बेईमानी में !!
वो किसी और में कहां 'राणा'
जो नज़ाकत है रातरानी में !!
--- गुनवीर राणा

Desk Editor
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