हमसे जुड़ें

गजल : जीवन के प्रारब्ध कई थे स्वर्ग सहज उपलब्ध कई थे...

Desk Editor
16 July 2021 1:01 PM IST
गजल : जीवन के प्रारब्ध कई थे    स्वर्ग सहज उपलब्ध कई थे...
x
जीवन को बस रण माना है धर्म हेतु प्रति क्षण माना है..

जीवन के प्रारब्ध कई थे

स्वर्ग सहज उपलब्ध कई थे

किन्तु चुनी मैंने विपदाएं

खुद अपना अपकर्ष चुना है

हाँ ! मैंने संघर्ष चुना है..

जीवन को बस रण माना है

धर्म हेतु प्रति क्षण माना है

और मिला ये पूरा जीवन

आर्यभूमि का ऋण माना है

जिसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि

उसने भारत वर्ष चुना है

हाँ ! मैंने संघर्ष चुना है..

बिकने को बाज़ार कई थे

लाभ हेतु व्यापार कई थे

मानवता के गीत कहो तो

हर्षित भी गद्दार कई थे

पर स्वीकारी सब बाधायें

वीरों ने कब हर्ष चुना है

हाँ ! मैंने संघर्ष चुना है ...

- गौरव सिंह तोमर

Next Story