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Ghazwaye Hind vs Akhand Bharat: ग़ज़्वाये हिंद बनाम अखण्ड भारत!
मुशर्रफ़ अली
Ghazwaye Hind vs Akhand Bharat: आमतौर पर मुस्लिम की जो पहचान मीडिया पेश करता है वह सर पर टोपी पहने और लम्बी दाढ़ी रखे एक मौलाना टाईप के व्यक्ति की होती है। इस वेशभूषा और हुलिये के अलावा भी एक बड़ी तादाद मुसलमानों की मौजूद है जिनकी सामान्य वेशभूषा है और वह इन मौलाना टाईप की वेशभूषा वालों से अलग हैं और काफ़ी शिक्षित, सेक्यूलर और प्रगतिशील हैं। उन्हे अपनी सामाजिक जिंदगी में आने वाली किसी भी समस्या या सवाल के लिए किसी मौलाना के पास जाने की ज़रुरत नही है बल्कि वह अपने विवेक से ज़्याद सही निर्णय लेने में समर्थ और सक्षम हैं लेकिन ऐसे लोगों से मीडिया घबराता है क्योंकि उनको टीवी बहस में ऐसे हुलिये और बौद्धिक क्षमता के लोग चाहियें जो मीडिया के उल्टे-सीधे सवालों पर या तो बगलें झांकने लगे या ऐसी प्रतिक्रिया दें जिससे मुस्लिम समाज का मज़ाक़ उड़े। इसके अलावा मीडिया मुसलमानों के बारे में एक डर फैलाता है कि उनकी आबादी बढ़ रही है और वह एक दिन भारत पर कब्ज़ा कर लेंगे। आज हम उसी डर पर चर्चा करेंगे।
डर यानि फ़ोबिया । डर मानव की एक सहज भावनात्मक प्रवृत्ति या प्रतिक्रिया है जैसे ज़ोर से आवाज़ होने या अचानक किसी के तेज़ आवाज़ में डांटने या अंधेरे से डर जाना। यह कोई बीमारी नही है लेकिन जब बिना बात या किसी अंधविश्वास या प्रचार का शिकार होकर कोई व्यक्ति या समाज किसी व्यक्ति या समुदाय से अत्याधिक भयभीत होने उससे डरने लगता है तब यह फ़ोबिया कहलाता है जो बीमारी की केटेगरी में आता है। फ़ोबिया अनेक प्रकार का होता है। किसी को तंग जगह से डर लगता हे तो कोई दांत की तकलीफ़ से डरता है तो कोई मकड़ी, कुत्ते, सांप-बिच्छू आदि से डरता है। आज हम इस फ़ोबिया नामक बीमारी पर ही बात करने जा रहे हैं। हम अपने समाज और दुनिया के अनेक हिस्सों में फैले धर्मो के फ़ोबिया पर बात करेंगे। धर्मो का फ़ोबिया यानि कोई व्यक्ति या समाज दूसरे धर्म के मानने वालों से भयभीत होने लगे। हिन्दू, मुस्लिम धर्म या ईसाई धर्म के मानने वालों से डरने लगे और मुस्लिम या ईसाई, हिन्दू धर्म के मानने वालों से खौफ़ खाने लगे। आज हम दो अलग अलग फ़ोबिया पर बात करेंगे एक इस्लामोफ़ोबिया और दूसरा हिन्दू फ़ोबिया। इनमें से हर फ़ोबिया अनेक तत्वों यानि एलीमेंट से मिलकर बना है इसलिए हम उन अनेक एलीमेंटस में से दोनों में पाये जाने वाले एक-एक एलीमेंट पर बात करेंगे। हम इस्लामोफ़ोबिया के एक एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद और हिन्दू फ़ोबिया के एलीमेंट अखण्ड भारत पर बात करेंगे। सबसे पहले इस्लामोफ़ोबिया के एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद पर बात करते हैं। गज़्वायें हिंद का विचार एक हदीस से निकला है। हदीस यानि वह बातें जो इस्लाम के पैंग़म्बर हज़रत मौहम्मद ने अपने सम्पर्क में आने वाले किसी शख्स से कही चाहे वह किसी सवाल के जवाब में या बतौर नसीहत कही हों। उनकी इन बातों को यानि हदीसों को उनकी मृत्यु के लगभग 211 साल बाद एकत्रित किया गया। इस्लामी आलिमों ने इन हदीसों में से बड़ी तादाद उन हदीसो की मानी है जो दलाईल के पैमाने पर कमज़ोर, जर्जर यानि जईफ़ या संदिग्ध हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि अनेक शासकों ने अपने किसी काम या आचरण को सही ठहराने और उसपर जनता की सहमति लेने के लिए पैग़म्बर साहब के नाम से उनको गढ़ा है। इसी तरह की हदीसों में औरत की गवाही को आधा यानि जिस बात की गवाही के लिए एक मर्द पर्याप्त है उसके लिए दो औरतों की गवाही चाहिये। यह उन पुरुष शासकों या धार्मिक पद पर आसीन व्यक्तियों ने औरत की हैसियत को पुरुष की तुलना में कम करने उन्हे मानसिक रुप से अपने अधीन रखने के लिए किया।
ग़ज़्वाये हिंद के बारे में जो हदीस है वह पैग़म्बर हज़रत मौहम्मद साहब की वफ़ात के 211 साल बाद सन् 843 में बसरा यानि मिस्त्र में पैदा हुये नईम इब्ने हम्माद नामक इस्लामी विद्वान द्वारा संकलित की गई जिसको उन्होने अपनी किताब, ''किताब अल फ़ितना'' में दर्ज किया। यह हदीस संकलन कर्ता, इस्लामी न्यायशास्त्र के माहिर इमाम अबू हनीफ़ा के मुखालिफ़ थे और इनके बारे में भी यह कहा जाता है कि इन्होने भी अनेक हदीसों को गढ़ा था। इनकी किताब में ही वह हदीस है जिसमें कहा गया है कि खुरासान से काले झंडे लिए हुये एक लश्कर निकलेगा जिसका रुख़ भारत की ओर होगा यहां वह गैर मुस्लिमों से जंग करेगा और उन्हे हराने के बाद वहां के बादशाह को जंजीरो से बांधकर वापस सीरिया पंहुचेगा जहां उनकी मुलाकात ईसा इब्ने मरियम यानि मरियम के बेटे हज़रत ईसा से होगी। इसी किताब में इस हदीस को दूसरी तरह से पेश किया गया है कि यूरोशलम का बादशाह योद्धाओं का एक लश्कर हिंद और सिंध की ओर भेजेगा जो वहां के मूर्तिपूजकों से जंग करेंगे और विजय हासिल करने के बाद वहां का खज़ाना ज़ब्त करके वहां के राजा को जंजीरो से बांधकर वापस यूरोशलम के बादशाह के सामने पेश करेगे और जो लूटा हुआ खज़ाना होगा उससे यूरोशलम का सौंदर्यकरण करेंगे। अब इसमें दो अलग अलग कहानियां हो गई एक यूरोशलम यानि आज के इज़राईल की और दूसरी मध्य एशिया के क्षेत्र खुरासान की।
खुरासान ईरान के एक प्रदेश का नाम भी है और यह भी कहा जाता है कि प्राचीन खुरासान में इरान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का क्षेत्र आता है। तालिबान के विरोधी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट आॅफ खुरासान जिसने काबुल हवाई अडडे पर हमला किया था वह अपना लक्ष्य इस पूरे क्षेत्र को मिलाकर प्राचीन खुरासान देश का निर्माण करना बताता है। अगर हम इस हदीस को सच भी मान लें तो यह भविष्यवाणी उस दौर के बारे में है जब दुनिया में बादशाही निज़ाम था जिसमें झंडे और तलवारें-भाले-तीरकमान लेकर घोड़ों या ऊंटों पर सवार फ़ौज किसी बादशाह या बादशाह द्वारा नियुक्त किसी योद्धा के नेतृत्व में निकलती और दूसरे बादशाहों के इलाके पर हमला करके हारने वाले राजा को कैंदी बना लेती और उसके खज़ाने पर कब्ज़ा कर लेती। उस ज़माने में यह तसव्वुर नही किया जा सकता कि कभी मानव इतिहास में ऐसा दौर भी आयेगा जब दुनिया में मौजूद बादशाही निज़ाम खत्म हो जायेगा और उसकी जगह सरमायेदाराना निज़ाम और उसके नतीजे में जम्हूरियत यानि डेमोक्रेसी जैसी कोई राज्य व्यवस्था भी आयेगी जिसमें शासन संविधान नामक किसी किताब के आधार पर चलाने के लिए अवाम अपना प्रतिनिधि चुनेगी।
जैसाकि उक्त हदीस में दिया है कि सीरिया में मरियम के बेटे की हुकूमत होगी तो क्या सीरिया में आज मरियम के बेटे ईसा की हुकूमत है ? और क्या यूरोशलम में आज बादशाहत क़ायम है ? यूरोशलम में आज इज़राईल की सरकार है और वहां चुनाव के माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधि को चुनती है। ऐसी हालत में क्या इज़राईल का प्रधानमंत्री हिन्दुस्तान से जंग करने अपना लश्कर भेजेगा जो भारत को जीतकर और यहां के बादशाह को जंजीरों में जकड़कर और भारत का ख़ज़ाना ज़ब्त करके वापस यूरोशलम लौटेगा। उस दौर के भविष्यवक्ता को यह भी अनुमान नही था कि 1400 साल बाद अरब के इस क्षेत्र यूरोशलम में मुसलमानों की बजाये यहूदियों का शासन होगा। क्या आज के दौर में 1400 सालों पहले की जाने वाली कोई भविष्यवाणी सच हो सकती है ? ऐसी कल्पना परियों, देवों की तिल्सिमी कहानियों में ही की जा सकती है जिनपर केवल बच्चे या जिनकी बुद्धि बच्चों जैसी है वह ही यकीन कर सकते हैं। कोई विवेकशील व्यक्ति अगर आज के वैज्ञानिक दौर में ऐसी कहानियों पर विश्वास करता है तो यह उसका मानसिक विकार ही कहलायेगा। क्या आज के दौर में अश्वमेघ यज्ञ किया जा सकता है जिसमें कोई प्रतापी या शक्तिशाली राजा अपने घोड़े को छोड़ दे और वह घोड़ा किसी दूसरे शासक के राज में जाकर उसको चुनौती दे कि या तो मेरी अधीनता स्वीकार करो या मुझसे जंग करो ?
अगर आज के दौर में अश्वमेघ मुमकिन है तब ग़ज़्वाये हिंद की भविष्यवाणी को भी सच माना जा सकता है। फिर आज जो ओआईसी के 57 मुस्लिम बहुल मुल्क है अगर उनका आकलन करें तो क्या उनमें से किसी एक में भी यह सामथ्र्य है कि वह दूसरे देश पर हमला कर सके ? वह तो खुद अपने वजूद के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं। 40 करोड़ की मुस्लिम आबादी से घिरा 70 लाख की आबादी वाला इज़राईल मध्यपूर्व के इन अरब देशों को ग़ज्वे यानि जंग में दो-दो बार हरा चुका है। रही तालिबानियों की बात जिन्होने पहले सोवियत संघ और अब अमरीका को वापस अपने देश लौटने पर मजबूर कर दिया तो उसके पीछे उनके खुद के बनाये हथियारों और जंग की तकनीक की भूमिका नही बल्कि जब वह सोवियत संघ से लड़ रहे थे तब हथियारों से लेकर खाने तक का सारा खर्चा अमरीका और सऊदी अरब उठा रहा था अगर अमरीका उनको कंधे पर रखकर छोड़ी जाने वाली स्टिंगर मिसाईल नही देता तो क्या वह सोवियत संघ को हरा सकते थे ? नही यह मुमकिन नही था। इसका सबूत है कि जिस तालीबान का राज सोवियत सैना के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर कायम हुआ था वह अमरीकी हमले के बाद कुछ ही वक्त में खत्म हो गया और तबसे लड़ते लड़ते अब आकर जब अमरीका थक गया और अफ़गानिस्तान उसने पत्थर युग में पंहुचा दिया तब वापस गया। इसको तालिबान की जीत नही कहा जा सकता इसमें भी उनकी मदद रुस और चीन ने अगर नही की होती और अमरीका वैश्विक आर्थिक संकट से कमज़ोर न हुआ होता तो आज भी तालिबान का जीतना मुमकिन नही था।
तो यह कुछ मिसाले हैं जो आज के दौर की हकीकत को बताती हैं इसलिए ग़ज़्वायें हिंद अव्यवहारिक कल्पना है जिसे हकीकत की जमीन पर उतारा नही जा सकता यह एक अविश्वसनीय भविष्यवाणी है जिससे डरना वैसा ही है जैसे रस्सी को सांप समझकर डर जाना या भूत-प्रेत-जिन्न जिनको विज्ञान की कसौटी पर साबित नही किया जा सका है उनसे भयभीत रहना। दुनिया में बहुत सी ऐसी चीज़ें मौजूद है जिनका भौतिक रुप में कोई वजूद नही है लेकिन उनसे डराकर लाखों लोगों को रोज़गार मिलता है। भूत प्रेत जिन्न भगाने वाले ओझा ओर रुहानी इलाज करने वाले स्वंयभू आलिम आपको अपने आसपास भी मिल जायेंगे। उनके विज्ञापन आप रेल के डिब्बों और बसो में पा सकते हैं। मैं अपनी बात को फिरसे दोहराता हूं कि जिस तरह आज के दौर में अश्वमेघ यज्ञ मुमकिन नही है उसी तरह गज़्वाये हिंद भी मुमकिन नही है। जो लोग गज़्वाये हिंद के कारण इस्लामोफ़ोबिया का शिकार हैं उनको इस बात को तार्किकता और विवेक की कसौटी पर कसना होगा। कौआ कान ले गया इसपर यक़ीन करके कौअे के पीछे दौड़ने की बजाये अपना कान टटोलकर देखना होगा।
दुनियाभर में बौद्धिक व भौतिक विकास में पीछे रह जाने वाले पाकिस्तानी मुस्लिम धार्मिक लोग साईस को गाली देते हुये आधुनिक साईस का आनंद उठा रहे हैं वही यूटयूब पर आकर गज़्वाये हिंद की भविष्यवाणी से अवाम में इस्लामोफ़ोबिया पैदा करते हैं और जिसका विस्तार भारत में वह लोग कर रहे हैं जिनको इस तरह का इस्लामोफ़ोबिया पैदा करने से राजनीतिक व आर्थिक हित लाभ मिलता है।
अब हम हिन्दू फ़ोबिया की सच्चाई पर ग़ौर करते हैं। हिन्दू फ़ोबिया यानि हिन्दु धर्म के मानने वालों को खतरा मानकर उनसे ख़ौफ़ज़दा होना यह चीज़ वैसे तो पाकिस्तान और बंगलादेश में पाई जाती है लेकिन जिसका विस्तार भारत में हो रहा है। जिस तरह इस्लामोफ़ोबिया का एक तत्व यानि एलीमेंट ग़ज़्वाये हिंद है उसी तरह हिन्दू फ़ोबिया का एक तत्व अखण्ड भारत और हिन्दू राष्ट्र है जिसमें सवर्ण हिन्दुओं को छोड़कर बाकि उनसे निम्नतर होगे। आज के दौर में अगर कुछ लोग अखण्ड भारत बनाने को अपना लक्ष्य बताने लगे तो क्या उनकी इस काल्पनिक इच्छा की आज के दौर में कोई हकीकत है आईये उनकी इस बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं। अखण्ड भारत में कौन कौन से देश आते हैं पहले उसको जान लेते हैं। अखण्ड भारत में पाकिस्तान, बंगलादेश, अफ़ग़ानिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल, भूटान और कल का बर्मा और आज का मियंामार आता है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि कैलाश पर्वत सहित भारत का एक बड़ा भूभाग चीन के कब्ज़े में है और जिसे हम आजतक वापस नही ले पा रहे हैं। अभी वर्तमान सरकार के दौर में चीन ने कुछ और भारत भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है ऐसे में क्या ज़रा सा भी मुमकिन है कि हम उपरोक्त 7 देशों को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण या किसी संगठन द्वारा दिखाये जा रहे सपने को साकार कर पायेंगे।
अफ़ग़ानिस्तान की ही बात लें तो अफ़ग़ानियों ने दुनिया की सबसे ज़्यादा सैनिक और आर्थिक शक्ति वाले देश अमरीका को भारी नुक्सान उठाने के बाद वापस अपने देश जाने पर मजबूर कर दिया क्या भारत उसको अपनी सैनिक ताकत के बलपर अपनी सीमा में शामिल कर सकता है ? यह सारे स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाले देश हैं इनपर बलपूर्वक कब्ज़ा करने की कल्पना करना क्या मुमकिन है लेकिन पाकिस्तान के यू टयूब पर बैठे डा0 इसरार अहमद, उरिया मकबूल या ज़ेद हामिद और इसी तरह के दूसरे लोग पाकिस्तानी अवाम को अखण्ड भारत की कल्पना से डराते रहते हैं साथ ही ग़ज़्वाये हिंद की बात करके भारत के हिन्दुओं में इस्लामोफ़ोबिया पैदा करते हैं। ऐसे ही भारत के कुछ लोग और उनके संगठन अखण्ड भारत बनाने का सपना अपने अनुयायियों को दिखाते रहते हैं। इस चर्चा का सार यह निकलता है कि आज के दौर में न तो ग़ज़्वाये हिंद और न ही अखण्ड भारत मुमकिन है जो लोग इस तरह के ख्वाब में डूबे रहना चाहते हैं उनको डूबे रहने दो लेकिन बाक़ी जो विवेकशील लोग हैं और जो हर बात को तर्क की कसौटी पर कसते हैं उनके लिए ऐसी नामुमकिन बातों पर सोचना अपना समय बर्बाद करना है। अखण्ड भारत या ग़ज़्वाये हिंद जैसे शेख़चिल्लीय ख्वाबों पर ग़ालिब का यह शेर खरा उतरता है, ''हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन, दिल को समझाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है।''
लेखक मुशर्रफ़ अली वरिष्ठ पत्रकार है और आर्थिक जगत पर एक अच्छी पकड़ रखते है।