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- कांग्रेस के गुलाम हुए...
कांग्रेस में चल रही अंदरूनी उठापटक के परिणामस्वरूप पार्टी के अति वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद ने पार्टी के सभी पदों और सदस्यता से इस्तीफा देकर खुद को बिल्कुल आज़ाद कर लिया है। आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी जिससे गुलाम नबी आज़ाद को कांग्रेस इतनी बुरी लगने लगी कि एकदम सभी संबंधों को तोड़ दिया। दरअसल कांग्रेस में सुधार का दौर चल रहा है और कांग्रेस के पुराने नेता जिसे अपने लिए घुटन कहते हैं वह शायद उनकी पदों पर बने रहने और रायसीना हिल्स पर जीवन गुजारने की चाहत है जिसके चलते अब उन्हें अपना घर कांग्रेस अच्छा नहीं लग रहा है।
गुलाम नबी आज़ाद ने उसूली तौर पर कांग्रेस को उसी समय छोड़ दिया था जब उन्होंने प्रतिद्वंद्वी सरकार के हाथों एक पद्मभूषण अवॉर्ड हासिल किया था जिस पर उस समय बहुत ज्यादा चर्चा तो नहीं हो पाई थी लेकिन होनी चाहिए थी क्योंकि ताजिंदगी जिस विचारधारा और पार्टी को फासिस्ट कहते कहते बूढ़े हो गए उसी विचारधारा वाली सरकार से अवार्ड हासिल करना खुद गुलाम नबी आज़ाद से सवाल तो खड़ा करता है कि आखिर आपको ये अवार्ड क्यों मिला और उस सरकार ने क्यों दिया जिसका नारा ही कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का था, ऊपर से एक घोर कांग्रेसी को ये अवार्ड दे दिया। बहरहाल राजनीति तो अनिश्चितताओं से भरी रहती है और कब कौन दोस्त या दुश्मन बन जाए पता नहीं चलता। हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी को धर्मनिरपेक्ष बनने के लिए कुछ नये अच्छे मुसलमानो की जरूरत पड़ रही है इसके गुलाम नबी आज़ाद को रिझा लिया गया हो। गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफा देने का आधार राहुल गांधी के रवैये को बनाया है जबकि हकीकत यह है कि गुलाम नबी आज़ाद जिस प्रदेश जम्मू कश्मीर से आते हैं वहां भी कांग्रेस को आजाद ने बहुत ज्यादा मजबूत नहीं बनाया हुआ था।
वैसे तो देश की दोनों बड़ी पार्टियों में खलबली मची हुई है लेकिन कांग्रेस में अगली और पिछली पीढ़ी का टकराव ज्यादा बढ़ रहा है। कांग्रेस में तमाम वरिष्ठ वह हैं जो राजीव गांधी के साथ लंबी राजनीति कर चुके हैं और अब दौर राहुल गांधी व प्रियंका गांधी का है साथ ही पार्टी भी वैंटिलेटर पर चल रही है, यदि कांग्रेस का अच्छा वक्त रहा होता तो भी पार्टी में किसी का मूल्यांकन नहीं होता परन्तु फिलहाल की परिस्थितियों में तो सबका रिपोर्ट कार्ड बनेगा, जब यह रिपोर्ट कार्ड बनेगा तब वह सभी कांग्रेसी वरिष्ठ सिर्फ अपना पुराना इतिहास और पुराने कारनामे गिना सकते हैं लेकिन भविष्य में मोदी की भाजपा से निपटने की रणनीति क्या इस पर कोई कार्ययोजना नहीं दे सकते।
गुलाम नबी आजाद व अन्य वरिष्ठ जनों के दौर में कांग्रेस अपनी धर्मनिरपेक्षता को त्याग कर नर्म हिंदुत्व के पीछे चल कर भाजपा के हिंदुत्व को मजबूत कर रही थी तब भी इन कांग्रेसियों ने नहीं सोचा कि कांग्रेस सिर्फ सिकुलरिज्म पर ही जिंदा रह सकती है और हिंदुत्व गर्म हो या नर्म सिर्फ भाजपा का पेटेंट है। लोग यह भी कह रहे हैं कि गुलाम नबी आज़ाद ने डूबती नैया को छोड़ दिया जबकि हमें लगता है कि गुलाम नबी आज़ाद ने अपनी आखिरत खराब कर ली है। "आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमां होंगे"। अगर गुलाम नबी आज़ाद भारतीय जनता पार्टी में जाते हैं तब भी वह रुतबा हासिल नहीं हो सकता, सांसद बन सकते हैं लेकिन इतने कद्दावर नेता नहीं क्योंकि भाजपा में मुसलमानो के लिए इतना बड़ा स्कोप भी नहीं है।
भाजपा को मुसलमानो की तरफ नर्मी नुकसान देती है। अब क्या सोचकर उन्होंने पार्टी से आजादी स्वीकार की है वही बेहतर समझ सकते हैं हम तो सिर्फ इतना जानते हैं कि यह सही समय नहीं था। यह सबसे ज्यादा ठीक वक्त था पार्टी का एहसान उतारने का जब सरकार के सीधे हाथ सोनिया गांधी और राहुल गांधी के गिरेबान तक पहुंच रहे हैं। अब देखना है कि आजाद, आजाद रहते हैं या किसी की गुलामी स्वीकार करते हैं।