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हिंदी वालों को बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से नाता तोड़ लेना चाहिए
अजय कुमार (पत्रकार)
हिंदी वालों को बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं से नाता तोड़ लेना चाहिए। वह गलत जगह इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं। हिंदी की पूरी दुनिया सरकारी स्कूलों से बनी हुई है। भारत के नामी-गिरामी पढ़ाई के संस्थान जो गिनकर 1 फ़ीसदी से भी कम होंगे। वह अमीरों की मिल्कियत है। अंग्रेजी में है। भारतीय सरकार का हर बड़ा पद काबिलियत परखता रखता है। काबिलियत पैदा करने की काबिलियत सरकारी स्कूलों और भारत के 99 फ़ीसदी शिक्षण संस्थानों में नहीं है। जहां पर हिंदी वाले पढ़ते लिखते हैं।
अगर हिंदी वाले अपनी दुनिया बदलना चाहते हैं तो पढ़ाई लिखाई छोड़ कर उन्हें राजनीति और आंदोलन के गलियारों में आना चाहिए। अगर बड़ा सरकारी पद पाना चाहते हैं तो हिंदी को छोड़कर तुरंत अंग्रेजी भी अपना कर देख सकते हैं। लेकिन क्या केवल अंग्रेजी आ जाने भर से स्कूल से लेकर कॉलेज तक मिले टूटी फूटी और लचर शिक्षा से मुक्ति मिल जाएगी? भारत का पूरा सिस्टम कदम - कदम पर कमजोरों के खिलाफ खड़ा हुआ सिस्टम है। सिस्टम प्रतियोगी परीक्षाओं से नहीं बदलता। सिस्टम बाहर खड़ा होकर लड़ने से बदलता है।