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आप क्या बात करते है, हम जान दे देंगे इसके लिए, गृहमंत्री जी अब कहां है आप!
मनीष सिंह
सबने सुना था संसद में, माननीय गृह मंत्री जी को कश्मीर पर बोलते हुए। वो कश्मीर के अधिकृत हिस्सों को जान देकर लौटा लाने की बात कह रहे थे। दिक्कत ये है कि जिन बातों को भारत के भीतर भक्तों और अखबारी हेडलाइंस के लिए कहा गया था, वह भारत के बाहर भी तो सुनी जाती हैं।
जब 370 का फैसला हुआ, अपने हिस्से के कश्मीर के 2 हिस्से कर दिये। तो नक्शे भी री-ड्रा करने पड़े। आपने अक्साई चिन सहित दूसरे हिस्सों पर अपना क्लेम रिन्यू किया। अनावश्यक ज्यादा बोला, संसद में, सड़क पर, और मीडिया में । बोला.. दुनिया ने सुना और मुसीबत बुला ली। पहाड़ियों से बर्फ गली, चीन ने जवाबी बयान दे दिया.. जुबान से नही, कुछ और पहाड़ी कब्जा कर के।
इतिहास गवाह है, चीन आपको जुबान से जवाब नही देता। जब जब आपने गज भर लम्बी जुबान खोली है, चीन में 20-50 लाख गज जमीन दबा ली है। उसे सूखी पहाड़ियों में रुचि नही, आपके रेजीम को को सन्देश देने में है। पिछली सर्दियो के समय 370 के शून्य उपलब्धि निर्णय, और उसके बाद के बयानों की गर्मी ने जितने वोट बटोरे, सर्दियो के बाद बर्फ पिघलते ही उतनी जमीन भारत ने खो दी।
तो 370 का सीना ठोकने वाले मूर्खों- सुनो। उस फैसले ने आपकी एक इंच जमीन तब न बढ़ाई थी। आज 80 वर्ग किलोमीटर खो जरूर दी। बधाई हो ..
सनद रहे, इन पहाड़ियों में चीन को रुचि नही। 1962 में जीते हुए 90% हिस्से वो खाली कर गया था। क्यों??? इसलिए कि नॉट आ ब्लेड ऑफ ग्रास इज ग्रोन देयर। मुफ्त की पेट्रोलिंग और खर्च। वह आपकी तरह पागल नही कि सियाचिन जैसी जगहों पर तीसियों साल मूछ की लड़ाई में, अपने जवान और संसाधन गंवाए।
मगर जब जब आपने बकवास की, क्लेम रिन्यू किये, वो एक टुकड़ा जमीन और दबा गया। यही 1962 के अटैक का भी कारण था। याद है वो गंजा सिर?? जिसे बाल न उगने के कारण "कटवा लिया जाए क्या" पूछा था । क्या याद है- "नॉट ए ग्रास इस ग्रोन देयर" का ठंडा छींटा, जिसे नेहरू की कमजोरी का पैमाना मानकर दुत्कारा जाता है??
नेहरू को जियोपोलिटिक्स की समझ थी। औकात पता थी। वो चीन से बरियारी दिखाने से बचना चाहते थे। मगर जनमत था, कि फारवर्ड पॉलिसी अपनानी पड़ी। अंग्रेजो से मिली वास्तविक सीमा से आगे बढ़कर, 1851 के अपुष्ट दस्तावेजों के आधार जमीन क्लेम। ऐसे में अविवादित जो था, उसमे भी खोया। राष्ट्र की इज्जत भी। मगर जब जब सत्ता में मूर्ख लौटे, यह प्रक्रिया बदस्तूर जारी रही है।
बहुतेरे लोग नही जानते। 1962 में चीन को जहां जहां जो जो मनचाहे ग्राउंड चाहिए थे, ले लिए। उनके पास पीक हैं, आपके पास घाटियां है, गहराई.. आप ऑलरेडी उसकी बन्दूकों की रेंज में है। अब वहां से उतर कर घाटियों को जीतकर चीन को नया हासिल कुछ नही होता। उन्होंने कश्मीरी लड़कियों से शादी या गलवन घाटी में प्लाट का वादा अपने लोगो को हरगिज नही किया हैं। उन्हें बस हासिल होता है, आपकी घिग्घी बांध देना। आपको चुप करवा देना। औए हरदम सफल भी हुआ है।
60 और 70 के दशक ने हमे दो अहसास दिए, पाकिस्तान से जीत का कांफिडेंस, और चीन से हार का सदमा। अब कांफिडेंस हमे इंटरनल पॉलिटिक्स में पाकिस्तान के लिए अकबक बोलने की छूट देता है, हम उसी रौ में चीन के लिए बक जाते हैं। अब तो ट्विटर पर भी मूर्खों की सेना खड़ी है। एक बयान इंटरनेशनल कम्युनिटी इग्नोर कर सकती है, लाखों बयानवीर उसे रीट्वीट करते है।
मगर चीनी अलग कौम है। हमारे जुड़वां पाकिस्तानी नही, जो खोखली गाली का जवाब खोखली गाली से दे देकर वापस बिल में घुस जाए।
तो जिन्होंने जान देने की श्लाघा बघारी थी, जिनका डंका बज रहा है, जो तीन दिन में तैयार होकर सीमा पर जा सकते है, उनके लिए आज ऐतिहासिक अवसर है। सत्ता में हो, अमेरिका रूस जापान आपके चरण चूम रहा है। सेना भी रोज बयान देती है। चलो,1962 के फोड़े को खत्म करो। आल आउट हमला करो, चीन में घुसकर मारो, जमीन वापस लाओ।
मगर कहाँ। आप चौपाल की अगली बहस में कहें न कहें असल मे आप भी उसी निष्कर्ष पर पहुचे है।
"नॉट आ ब्लेड ऑफ ग्रास इज़ ग्रोन देयर"???