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- नफ़रतों की आँधी कब तक
फरहत रिज़वी
भाषा बहती नदी की धारा (आब ए रवाँ) की तरह होती है। कहीं दूसरी नदियों से मिलकर प्रयाग बनवाती है और कहीं अपना रुख़ मोड़ कर दूसरी दिशा में बहने लगती है। नदी और भाषा की यही फ़ितरत उसे जीवंत बनाती है। उर्दू भाषा होबोज़ देश में ही पैदा हुई कुछ इसी रवानी के साथ सदियों से अपने रास्ते बना रही है। हर भाषा की एक संस्कृति होती है और हर संस्कृति की एक भाषा, लेकिन भाषा का कोई धर्म या जात नहीं होती। लेकिन अफ़सोस की कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने भाषाई संकीर्णता के चश्मे से उर्दू को विशेष धर्म के साथ जोड़ कर इसे ' शहर बदर' करने की कोशिशें की है। ये लोग नफ़रत की राजनीति करने में माहिर है।
इस बार भी उर्दू को निशाना बनाया है। खबर तो सभी ने पढ़ी होगी कि कर्नाटक से बीजेपी एमपी तेजस्वी सूर्या को febindia के लेटेस्ट दिवाली कलेक्शन के नाम " jashn e Riwaz" ( सही शब्द रिवाज है ) पर ऐतराज है। तेजस्वी के अनुसार हिंदुओं के धार्मिक उत्सव दिवाली के कलेक्शन के लिए मुसलमानों की भाषा का शब्द अनुचित है। febindia ने इस आपत्ति के बाद तुरंत इस विज्ञापन को वापस ले लिया। ज़ाहिर है कम्पनी अपने ब्रांड का घाटा झेलने की ताक़त नहीं रखती। दूसरे बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या के भाषा ज्ञान का अंदाज़ा तो हो ही गया, यूँ भी विवादों से इनका पुराना नाता है। महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार के आरोप भी लग चुके हैं और महिला आरक्षण के ख़िलाफ़ भी बयान दे चुके हैं।
febindia के बहाने विज्ञापन के बहाने किसी भाषा या किसी विशेष धर्म को निशाना बनाने का ये पहला मामला नहीं है। पिछले साल Tanishq के विज्ञापन पर भी ख़ासा वबाल हुआ था। उस विज्ञापन में दिखाया था कि एक मुस्लिम परिवार में हिंदू बहु की भावनाओं की कद्र करते हुए सास बड़े प्यार से गोद भराई की रस्म निभाती है , तो ये ख़ुशी भी नफ़रत करने वालों को रास नहीं आयी क्यूँकि ये तो लव जिहाद हो गया। उस वक्त भी Tanishq ने तुरंत विज्ञापन वापस ले लिया। ये कारोबारी लोग हैं इनसे ये अपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि ऐसे कुतर्क को तर्कों से परास्त करेंगे!
ज़रा अक्तूबर 2019 की एक खबर पे नज़र डालिए तो उत्तर प्रदेश, पिलीभीत के एक सरकारी स्कूल में अल्लामा इक़बाल की लिखी नज़्म ' बच्चे की दुआ' लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी ..' पर विश्व हिंदू परिषद ने प्रतिबंध लगवा दिया था। इतना ही नहीं इस खूबसूरत दुआ को स्कूल असेम्ब्ली में पढ़वाने के लिए हेड मास्टर को निलम्बित भी किया गया।
मतलब साफ़ है प्यार, मोहब्बत, भाईचारा ये शब्द इनकी डिक्शनेरी में नहीं हैं। धर्म के नाम पर नफ़रत की सियासत इनका एजेंडा है। अनेकता में एकता में ये विश्वास नहीं करते। जिस देश का प्रधान सेवक खुद कहे कि कपड़े देख कर किसी को पहचाना जा सकता है तो फिर उस समाज में ऐसे युवाओं को प्रोत्साहन मिलेगा जो कुछ दिन पहले ही पोस्टर लेकर खड़े थे कि गरबा में ग़ैर हिंदुओं का प्रवेश निषेध है।
लेकिन हमें विश्वास है नफ़रत की सियासत जियादा दिन नहीं चलेगी। भाषा को काला जल बनाएँगे तो गूँगा हो जाएगा देश।