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सन्नाटे में खुद को ढूंढता मैं

Shiv Kumar Mishra
27 March 2020 5:30 AM GMT
सन्नाटे में खुद को ढूंढता मैं
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चमचमाती दुधिया रोशनी से नहाई चौड़ी सड़कें बिल्कुल खाली हैं। रेड लाइट पर लगने वाली गाड़ियों की लंबी लाइन भी नदारद है लेकिन फिर भी किसी को आज अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी नहीं है।

चमचमाती दुधिया रोशनी से नहाई चौड़ी सड़कें बिल्कुल खाली हैं। रेड लाइट पर लगने वाली गाड़ियों की लंबी लाइन भी नदारद है लेकिन फिर भी किसी को आज अपनी मंजिल पर पहुंचने की जल्दबाजी नहीं है। दिन-रात तेज गति से दौड़ने वाला इस शहर का न जाने क्यों दम फूल गया है। दौड़ना तो दूर चलने में भी हांफ रहा है। एक अजीब सी चिर शांति का चोला इसने ओढ़ा है। ऑफिस से लौटकर सोने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन ये सारे सवाल दिमाग में तैर रहे हैं। आखिर, इस शहर को हुआ क्या है?

आज ऑफिस जाते समय और लौटते समय कोरोना से पैदा हुए डर के मौहोल ने नोएडा की सड़कों पर सन्नाटे से पैदा हुए भयावह तस्वीरों से मैं रूबरू हुआ। एक मीडिया कर्मी होने के साथ पहले एक इंसान हूं। अभी तक मुझे कोलाहल और गाड़ियों की शोर से परेशानी होती है लेकिन पहली बार इस डरावनी शांति ने मन को परेशान कर दिया है। इससे पहले इस तरह का डर का माहौल मैंने कभी नहीं देखा था। इसने अमीर से गरीब को समान रूप से डराया है।

नोएडा की सैंकड़ों गगनचुंबी इमारतें भुतहा लग रही हैं। कभी दिन-रात चहल-पहल रहने वाली इन इमारतों में सन्नाटा पसरा है। मुझे ऐसा अहसास हो रहा है कि इंसान बोलना भी तो नहीं भूल गया है।

नोटबंदी के दौरान लोगों को रात-रात भर लाइन में लगते देखा था लेकिन उस समय इतना डर किसी एक इंसान के चेहरे पर देखने को नहीं मिला था। लेकिन, इन दिनों जो देशभर से तस्वीरें आ रही हैं जो रुह कंपाने वाली है। डर के माहौल में लाखों अंसगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी तो छीन ही ली है अब ठिकाना भी नहीं है। दिल्ली-आसपास के एरिया से हजारों की संख्या में लोग अपने राज्य की ओर पैदल पलायन कर रहे हैं। उन्हें पता नहीं है कि वह कैसे पहुंचेंगे लेकिन सर पर बची-खुची पूंजी की गठरी भवन कर निकल गए हैं।

यह एक ऐसी त्रासदी है जो एक बार फिर से हम सभी को सोचने पर मजबूर किया है कि इंसान आज भी प्रकृति के हाथ की कठपुतली है। हम कितना भी विकास को ढोल पीट लें लेकिन एक महमारी हमारे सभी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।

यह कोरोना क्या-क्या कहर बरपाएगा यह कहना अभी तो जल्दबाजी है लेकिन इसने नोटबंदी से बड़ा घाव इंसानी जमात को जरूर दे दिया है। ऐसे में आप सभी से अनुरोध है कि खुश रहे हैं और सुरक्षित रहें। घर से निकलने की कोशिश नहीं करें। कोरोन से संक्रमित मामलों तेजी से बढ़ रहे हैं। इस महामारी को रोकने के लिए कई राज्यों ने लॉक डाउन के बाद कर्फ्यू लगा दिया है। अब प्रशासन सख्ती से निपटेगा। जब तक यह बुरा वक्त नहीं जाता है धैर्य का दामन नहीं छोड़ें।

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