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- इक कशिश यूँ खींचे जाती...
इक कशिश यूँ खींचे जाती है, मुझको मुझसे ही भींचे जाती है
#कशिश
इक कशिश यूँ खींचे जाती है
मुझको मुझसे ही भींचे जाती है
रंगीले ख़्वाब जो दिखाती है
मेरी तिशनगी यूँ बढ़ाती है
वो कशिश रौशन है बहुत लेकिन
मुझे वो तीरगी दिखाती है
ख़्वाब में उसके तवानाई है
जिस से नज़र मेरी धुंधलायी है
मैं उस अंजुमन से निकल आती हूँ
संग से सरे राह टकड़ा जाती हूँ
जहाँ की रंगिनियों में खो करके
मंज़िल दूर नज़र न आती है
बेजा रंगीनियाँ रंगो रोग़न की चमक
मुझको ये कमज़ोर किये जाती है
वो कशिश खोखली व बेरहम सी है
जिसकी लहक रूह तलक जाती है
धुंध में चस्पाँ फ़ितरत से दूर नज़र
धुंधलाई हुई बे राह नज़र आती है
इक कश्मकश की सी हालात है
इसमें दुनियाँ तमाम शामिल है..!
- सकीना अफरोज़
Illustration: From Dante's Divine Comedy, By.. Gustave Dore
कशिश Attraction
भींचे To squeeze
तिशनगी Desire
तवानाई Energy
अंजुमन Gathering, Mahfil
बेजा Useless
चस्पाँ Pasted
तीरगी Darkness
संग Stone