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- अधीर असभ्य इंसान ...!!
यही कोई डेढ़ दशक पहले की बात है। पूर्वी यूपी में मोबाईल क्रांति पूरे शबाब पर आ रही थी। उस वक्त मोबाईल के क्षेत्र में अमिताभ बच्चन था। जिसे देखो नोकिया का दीवाना था। यह वही दौर था जब (लोकल एसटीडी आइएसडी) का बोर्ड लगाये पब्लिक टेलीफोन बूथों पीसीओ में ताले लगने शुरू हो गये थें।
अब लौटन,पियारे, दुलारे बम्मई में काम करने वाले अपने बेटवा से। 'फलाना कम्युनिकेशन' टाइप के पीसीओ पर जाकर नहीं। बल्कि अपने मोबाईल से धान के बेहन से लेकर पड़ोसी कतवारू का खेत रेहन तक बतियाते थें।
और रजिंदर बो भउजी भी देवर जोखन के मोबाइल से नखलउ फोन लगाकर रिंकिया के पापा का हाल ख़बर ले लेतीं। रजुआ के बोखार और आपन पेट तीन दिन से बत्तथ सब बतिया लेती थीं। साथ में ननद की सिकाइत से लेकर मोती की लड़की चंदवा सुरेशवा के साथ भाग गयी यह भी बता दे देतीं।
लब्बोलुआब यह है कि मोबाईल आम लोगों में धीरे-धीरे पहुँच रहा था।
खासकर एक ब्रांड जो आजकल की ब्राण्ड प्रतिस्पर्धा से गायब है। हाँ वही नोकिया जिसपर लोग आंख मूंद भरोसा करते थे। दुकानदार लाख ग्राहकों को कनवेंस करें,दूसरे मोबाईल की खूबियां बतायें,मगर लोगों को नोकिया के अलावां दूसरा न भाये। इसका एक कारण यह भी था कि नोकिया रफ एंड टफ मोबाइल बनाती थी। वह चार मंजिला से गिर जाए तब भी कोई दिक्कत नही होती थी।आज के मोबाइल तो छुई मुई टाईप के होते हैं ।
एक दिन जाड़े की सुबह मैं पड़ोस की दुकान पर अखबार बांच रहा था।
तभी सामने की सड़क पर खट की आवाज़ हुई देखा तो एक बाईक सवार का मोबाइल सड़क पर पड़ा था। जब तक आवाज लगाता वह आंखों से ओझल हो चुका था।
उठाकर देखा तो नोकिया का न्यू 3315 मोबाइल विथ बीएसएनएल सिम। आप लोगों को यह भी याद होगा कि उस वक्त नेटवर्क प्रदाता कम्पनियों में बीएसएन राजा था। उस वक्त लोग 2 से पांच हजार रुपये में बीएसएन सिम ब्लैक में खरीदते थें। उस वक्त किसी की आईडी पर किसी का सिम होता था। इस्तेमाल करने वाले को खुद नहीं पता होता था कि सिम किसके नाम है।
मोबाइल लेकर दुकान पर आया तो कईयों का एक्सप्रेशन था,वाह रजा सबरेहीयं तोहार काम हो गयल कुछ खर्च बर्च करा।
हमने कहा कि मैं यह मोबाइल उसे लौटा दूंगा। तो बहुतों के चेहरे का रंग बदल गया। एक करीबी दोस्त कहने लगा कि यार हमको दे दो। हमने उसे समझाया कि यार बड़े जुगाड़ से यह बीएसएनएल की सिम पाया होगा और पता नहीं कैसे मोबाइल खरीदा होगा,उसे वापस कर दूं।
दोस्त ने कहा तोरे यही कारण से तू आगे न बढ़बा। अगर तोके पईसा चाहे तो कह चार पांच हजार हम दे देईं।
मगर उसकी बात को अनसुना कर मोबाईल के डायल इनकमिंग नम्बरों पर कॉल करने लगा ताकि मोबाइल मालिक के किसी परिचित से सम्पर्क हो।
चार छ नम्बर डायल करने के बाद एक नम्बर उसके भाई का मिला जो मुंबई में रहता था।
जब मैंने उसे बताया कि मैं मोबाईल पाया हूँ, औऱ उसे वापस करना चाहता हूं। तो उसने आश्चर्य और कृतज्ञता जताते हुए कहा भईया आप पाकर वापस करना चाहते हैं। यह बड़ी बात है बस आप बीएसएनएल सिम वापस कर दीजिए क्योंकि हमारा घर गांव में है। औऱ बीएसएनएल का ही नेटवर्क वहां है।
मैंने कहा मुझे दोनों वापस करना है।
कुछ देर के बाद दूसरे नम्बर से मोबाईल मालिक का फोन आया । मगर उसका रवैया ऐसा की जैसे वह बेपरवाह हो।
उसको अपनी लोकेशन बता इंतजार करने लगा। एक घण्टा दो घण्टा बिता तो अब तक साथ खड़े दोस्त का धैर्य जवाब देने लगा तो वह मुझसे मोबाइल लेकर खुद उसको काल लगाकर कहा कि आपको मोबाईल देने के लिए खड़े हैं।और आप दो घण्टे से इंतजार करवा रहे हैं।
वह आ रहा हूँ कहकर फोन काट दिया।
कुछ देर बाद उसका मोबाईल जो मेरे पास था डिस्चार्ज हो जाता है।
मैं उस वक्त मेरे पास पैनासोनिक मोबाइल था। लिहाजा चार्जर डिफरेंट होने के कारण उस नोकिया मोबाइल को इधर उधर के प्रयास के आधे घण्टे बाद चार्ज कर ऑन किया तो।
उधर से उसका फोन आया उठाते ही वह...भोस%$ड़ी मादर$# देना नहीं था तो बुलाये क्यों...मोबाईल बन्द कर दिये। बस सिम दे दो मोबाईल रख लो। गाली कि बौछार।
हमने उससे कहा कि यह तो वही हाल हुआ कि होम करे हाथ जले। अगर मोबाइल देना नहीं होता तो फोन क्यों करता क्यों आपको बार बार बुलाता जब मोबाइल पाया था उसी वक्त सिम निकाल कर फेंक देता। और मजे से फोन इस्तेमाल करता या बेच देता।
आपकी मोबाईल पूरा चार्ज था क्या..?
तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने कहा गलती हो गयी भईया। जब घर से मोबाइल लेकर चला तो कुछ परसेंट ही चार्ज था। अच्छा आपके पास आ रहा हूँ।
अब तक साथ खड़ा दोस्त मुहं बनाने लगा था। कहा गारी सुन लेहला न मजा आयल। सुन उ आके कुछ पईसा ईनाम देई तो मना मत कर दिहा। काहे से की तोके त कीड़ी काटत हव। जब उ सिर्फ सिम मांगत हव तो तू मोबाईल भी देवे चाहत हया।
उ पक्का हजार दु हजार देई मना कईले तो बहुतs बुरा होई।
वह आता है मोबाईल लेता है। और ईनाम की बात छोड़िये धन्यवाद तक नहीं देता है।
वह चला गया तो दोस्त मेरी तरफ जलती निगाहों से देखने लगा। मैं दोस्त की तरफ मुखातिब होकर बोला यार ईनाम तो वह पहले ही दे दिया था "गाली"।
और हम दोनों मुस्कुराने लगें। दोस्त बोला, तोर यही नसीब हव।
वाकई इस संसार का एक सच यह भी है कि "अधीर, असभ्य" व्यक्ति का आप कितना भी भला सोचें तनिक ही देर में वह आशंका और शक में मनगढ़ंत धारणा बना लेता है,और जुबान की तलवार चला देता है।
- विनय मौर्या