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खजाना खोलने और 100 (हिन्दू से अनुसार 169) शहरों में ई बसों के लिए 10,000 करोड़ देने के प्रचार में, आरपीएफ कांस्टेबल को बर्खास्त किये जाने की खबर प्रचार जैसी नहीं छपी

खजाना खोलने और 100 (हिन्दू से अनुसार 169) शहरों में ई बसों के लिए 10,000 करोड़ देने के प्रचार में, आरपीएफ कांस्टेबल को बर्खास्त किये जाने की खबर प्रचार जैसी नहीं छपी
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In the campaign to open the treasury and give 10,000 crores for e-buses in 100 (169 according to Hindu) cities

आज के अखबारों में जब केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के फैसलों की खबर लीड है तो सीएजी की रिपोर्ट में उल्लिखित भ्रष्टाचार के मामलों का पहले पन्ने पर जिक्र तक नहीं है। दोनों पर आने से पहले बता दूं कि आज के दो अखबारों - इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में एक खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से है जो बताती है अखबारों ने चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। खबर आरपीएफ के जवान चेतन सिंह चौधरी को नौकरी से बर्खास्त कर दिये जाने की है। चेतन सिंह ने 31 जुलाई को जयपुर-मुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी और तीन मुस्लिम यात्रियों की हत्या कर दी थी। हत्या के बाद उसने मोदी-योगी का नाम भी लिया था लेकिन अखबारों ने यह सब नहीं बताया और यह स्थापित करने की कोशिश की गई कि वह मानसिक तौर पर कमजोर था। उसके चिकित्सा प्रमाणपत्र आदि के रूप में डॉक्टर की पर्ची सार्वजनिक हो गई।

तब यह सवाल उठा कि अगर वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं था तो आम लोगों के बीच उसे सरकारी हथियार के साथ सरकारी ड्यूटी क्यों दी गई? इस मामले में विभागीय स्तर पर विभाग के बड़े अधिकारियों के साथ क्या हुआ, यह तो पता नहीं चला पर आज जिस ढंग से खबर छपी है उससे लगता है कि सरकार ऐसे अपराधियों के कारण हो सकने वाले राजनीतिक नुकसान से बचना चाहती है। इसका पता हरियाणा के नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित अपराधियों के मामले में भी सरकार और संघ परिवार के रवैया से चलता है। इस लिहाज से आरपीएफ के कांसटेबल को नौकरी से हटाने की खबर जितनी प्रमुखता से छपनी चाहिए थी, सभी अखबारों में नहीं छपी है। गोदी वालों को शायद संकेत, या जरूरत या रणनीति नहीं समझ में आई हो।

वैसे, इंडियन एक्सप्रेस की खबर से लगता है कि चेतन सिंह चौधरी का मामला विभाग में जाना पहचाना था और उसे नियंत्रित करने या पहले ही सख्त सजा देने की बजाय जो सब हुआ उससे उसे अपना अपराध समझ ही में नहीं आया और वह समान विचार वाले अफसरों के संरक्षण में बढ़ता गया या उसे बढ़ने दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस से साथ जनसत्ता में प्रकाश‍ित र‍िपोर्ट के मुताब‍िक कांस्टेबल चेतन सिंह चौधरी पर सर्व‍िस के दौरान कम से कम तीन मामलों में शामिल होने का पता चला है। इसमें आरपीएफ पोस्ट पर एक मुस्लिम व्यक्ति के उत्पीड़न से जुड़ा मामला भी है। इन मामलों पर पश्चिम रेलवे के महानिरीक्षक-सह-प्रधान मुख्य सुरक्षा आयुक्त पीसी सिन्हा ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। उनका कहना है कि अभी इन मामलों में जांच जारी है। इंडियन एक्सप्रेस ने जानकार के हवाले से बताया है कि 2017 में चेतन उज्जैन में आरपीएफ डॉग स्क्वाड में तैनात था।

खबर के मुताबिक 18 फरवरी, 2017 को चेतन ड्यूटी पर नहीं था और स‍िविल कपड़ों में वह वाहिद खान नाम के एक व्यक्ति को चौकी पर लाया तथा कथित तौर पर बिना किसी कारण के उसके साथ मारपीट की थी। इस बात की जानकारी जब उसके सीन‍ियर्स को मिली तो उन्होंने जांच का आदेश दिया। उसे इस काम के लिए दंडित भी किया गया। सूत्रों ने कहा क‍ि साल 2011 की एक अन्य घटना में अब बर्खास्‍त क‍िए जा चुके चेतन स‍िंह चौधरी पर हरियाणा के जगाधरी में तैनाती के दौरान एक सहकर्मी के एटीएम कार्ड से 25,000 रुपये निकालने का आरोप भी लगा था ज‍िसकी जांच भी की गई थी। एक तीसरे मामले में उसने गुजरात के भावनगर में तैनाती के समय सहकर्मी की पिटाई कर दी थी। तब विभागीय जांच के बाद उसे दूसरी यूनिट में भेज दिया गया था। 31 जलाई की घटना की दांच कर रही आरपीएफ की एक टीम ने चौधरी के पूर्व और मौजदूा सहकर्मियों तथा वरिष्ठों के बयान हर्ज कर लिये हैं ताकि सेवा के दौरान उसके व्यवहार और आचरण का विश्लेषण किया जा सके।

इंडियन एक्सप्रेस के अलावा यह खबर सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है। आज हिन्दी में भी नहीं दिखी लेकिन सुबह कई अखबारों के इंटरनेट संस्करण में पोस्ट की गई है। इससे इसकी पठनीयता या पढ़वाने की इच्छा को समझा जा सकता है। संभव है कल हिन्दी अखबारों में छपे। खबर के मुताबिक चेतन सिंह ने ट्रेन में गन प्वाइंट पर बुर्का पहनी महिला को धमकाकर जय माता दी भी बुलवाया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार केस की जांच कर रही जीआरपी ने महिला की पहचान कर ली और उसका बयान दर्ज किया है। मंत्रिमंडल के फैसले अपनी प्रकृति से ही प्रचार हैं और उसे अखबारों ने पूरा प्रचार दिया है। उदाहरण के लिए नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड है और शीर्षक है, विकास के लिए खोला खजाना। अब यह खजाना किसका है, बताने की जरूरत नहीं है। खोल दिया उसका भी मतलब नहीं है। मतलब है तो इसका कि कब खोला और खोला तो क्या हो जाएगा। पर यही है पत्रकारिता और राजनीति का घालमेल जो आजकल आम है।

अमर उजाला में आज लीड खबर है, "पीएम विश्वकर्मा योजना : कारीगरों को पांच फीसदी की रियायती दर पर दो लाख का कर्ज"। इसका फ्लैग शीर्षक है, "कैबिनेट फैसले : परंपरागत कारीगरों से लेकर आईटी पेशेवरों तक के लिए सौगातों की बरसात"। इस पर मुझे कांग्रेस राज में स्थापित, "महिला बैंक" की याद आई जो मोदी सरकार के "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के बावजूद बंद हो गया। महिलाओं के लिए उस बैंक की ऐसी कई कर्ज योजनाएं थीं और कहने की जरूरत नहीं है कि बैंक अमूमन महिलाओं से संबंधित कई व्यवसायों के लिए कर्ज नहीं देते हैं। चुनाव से पहले ऐसी योजनाओं और घोषणाओं का मतलब समझा जा सकता है। हालांकि, यह सब सुर्खियां बटोरने के लिए भी होता है। और यह अलग बात है कि सीएजी की रिपोर्ट भी सुर्खियों में हो सकती थी। पिछली बार एक लाख 86 हजार करोड़ के कथित घपले की रिपोर्ट थी ही। इस बार घोटाला किसी और सरकार ने किया है तो खबर कहीं छपी होगी या नहीं भी छपी होगी तो हम-आप क्या कर सकते है।

जहां तक बैंक बंद होने की बात है, कई बैंक बंद हुए और उनका विलय दूसरे बैंकों में हो गया है। एटीएम की संख्या कम हो गई है और बैंक में शुल्क बेहद बढ़ गये हैं जबकि कंप्यूटर से काम होने के कारण खर्च काफी कम हुआ होगा। जो भी हो, जब बैंक के बैंक बंद हो रहे हैं तो प्रचार जीएसटी की वसूली बढ़ने और दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था होने का किया जा रहा है। अब पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था पर जोर नहीं है। दरअसल उसमें इतने जीरों हैं कि उसका हिसाब रखना सरकार के काबिल प्रचारकों के लिए संभव नहीं था तो उसे छोड़ दिया गया लगता है। जो भी हो, द टेलीग्राफ की आज की लीड है, ग्रेट मेमोरी लॉस ऑन सीएजी (सीएजी की रिपोर्ट पर भूलने की बीमारी)। आज किसी अखबार में पहले पन्ने पर इसकी चर्चा नहीं है। आपने कहीं सुनी इसकी चर्चा? दूसरी ओर, एक लाख 86 हजार करोड़ के कथित घोटाले की पिछली बार की हवा-हवाई रिपोर्ट पर हंगामा तो याद ही होगा?

वंशवाद, तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार दूर करने की कहानी (विज्ञापन भी है) यहीं शुरू होकर यहीं खत्म हो जाएगी। विनोद राय याद रहेंगे। उनकी किताबें भी। भाजपा और उसकी सरकार के लोग मोदी जी के संकल्प का प्रचार कर रहे हैं जो परिवार, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के क्विट इंडिया से संबंधित है। कहने की जरूरत नहीं है कि जिस वंश या वंशवाद के मोदी जी को सबसे ज्यादा चिढ़ है वह आधा वशं और बिल्कुल आधा ही, मोदी जी के साथ या संघ परिवार में है। भ्रष्टाचार की बात वाशिंग मशीन के जमाने में क्या करूं और जो खुद कहता है कि वह 80 प्रतिशत आबादी की संतुष्टि करता है उसे 20 प्रतिशत की तुष्टि से एतराज है जो कुछ कहा नहीं जा सकता है। हालांकि, हज सबसिडी जैसी तुष्टि आबादी के लिए कम, सरकारी सफेद हाथी एयर इंडिया के लिए ज्यादा थी। पर भाजपा की राजनीति यही है उसके वोटर ऐसे ही प्रचार से प्रभावित होते है।

संजय कुमार सिंह

संजय कुमार सिंह

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