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कोरोना काल में सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों में बढ़ी जन भागीदारी
प्रसून लतांत
लोकतंत्र में लोकशक्ति ही निर्णायक होती है लेकिन दुर्भाग्य है कि वह अपने देश में इन दिनों देखने को नहीं मिलती। लोक तंत्र से लोक गायब हो गया है। महात्मा गांधी लोक शक्ति को मजबूत करने की हिदायत देते रहे। इनका कहना था कि लोकतंत्र में आम जनता ही मालिक होती है। आज तंत्र में जनता की ही आवाज अनसुनी होने लगी है। इसकी वजह जनता उदासीन है,जन प्रतिनिधि बचते रहते हैं और अफसरशाही ने सब कुछ अपने कब्जे में कर लिया है। ऐसे में अपने देश में एकता परिषद ही ऐसा जीवंत संगठन है, जो लोकशक्ति को जगा कर गांव गांव को बेहतर बनाने के लिए जनता के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए संकल्पबद्ध है। एकता परिषद ने उदासीन और पीड़ित जनता को अहिंसक तरीके से संघर्ष करना सिखाया। जन प्रतिनिधियों पर जन दबाव बढ़ा कर उन्हें जनता के प्रति जिम्मेदार बनाया। कई जगहों पर अफसरों को भी जनता के हित में काम करने के लिए विवश किया। इस तरह गांधीजी के सपनों का भारत बनाने की दिशा में एकता परिषद सक्रिय है।
जब मध्य प्रदेश सरकार ने किल कोरो ना अभियान चलाया तो उसमें जन भागीदारी बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व कार्य किया। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जब सरकारी कर्मचारी टीका के लिए पहुंचे तो लोग भाग गए फिर उनको वापस बुलाने में एकता परिषद के कार्यकर्ताओं की भूमिका बहुत अहम रही। इसी तरह अन्य अनेक कामों में जहां भी कोई दिक्कत आई तो सरकार को सहयोग किया गया। एकता परिषद की ओर से कई जिलों में ऑक्सीजन मशीन भी दी गई। देश के ज्यादातर जिलों में लोकनीति अफसरशाही की मुट्ठी में नजरबंद है। बिना लोगों का भरोसा और सहयोग पाए कोई भी सरकार सफल नहीं हो सकती। आज हमारी ज्यादातर लोक नीतियां और विकास योजनाएं असफल हो जाती हैं। समय,पैसा और ऊर्जा व्यर्थ हो जाता है। वजह यही कि जनता की भागीदारी नहीं होती। बगैर लोगों की राय लिए बंद कमरों में नीतियां बना ली जाती है और उसे लागू कर दिया जाता है।
पिछले तीन दशकों से एकता परिषद का नेतृत्व और उनके कार्यकर्ता गांधी जी और बाबा साहब आंबेडकर के विचारों के अनुरूप देश के विभिन्न राज्यों में आदिवासियों,दलितों,शोषितों और वंचितों के हित में लगातार अहिंसक संघर्ष करता अा रहा है। एकता परिषद के प्रयासों से लाखों लोगों को इंसाफ मिला है। और अभी तक जिनको इंसाफ नहीं मिला है उनके संघर्ष को धार को तेज करने में जुटे हैं।
मौजूदा समय में कोरो ना वायरस को लेकर जिस तरह की परिस्थितियां सामने आई हैं उनसे निपटने में एकता परिषद का नेतृत्व और उनके कार्यकर्ता लगे हुए हैं। वह मानवता की सेवा का क्षेत्र में एक मिसाल है। एक दिन किसी को राशन दे देना और राशन देते हुए फोटो खिंछा कर अपना प्रचार करने वालों के तो लाखों के उदाहरण हैं लेकिन एकता परिषद के कार्यकर्ता कोरो ना की पहली लहर से जिस तरह से अपने अपने कार्य क्षेत्र में सक्रिय हैं, वे काबिलेतारिफ है। जन जन को कोरो ना से बचने के लिए जागरूक करने, उन्हें राहत सामग्री देने, भारी संख्या में शहरों से वापस लौट आए श्रमिकों के लिए श्रमदान अभियान के जरिए आजीविका देने और पर्यावरण संवर्द्धन के लिए नदियों और तालाबों की खुदाई, गांव की सफाई और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करने जैसे कार्यों के जरिए लोक शक्ति को संगठित करने का प्रयास किया गया। और अब जबकि कोरो ना की दूसरी और भयावह लहर आईं तो एकता परिषद के कार्यकर्ता दुगुनी ताकत से लोगों को सचेत करने,मास्क लगाने,दवा वितरण करने,भांप केंद्र बनाने और टीकाकरण करवाने जैसे कार्यों को अंजाम देने में जुटे हुए हैं।
गौरतलब है कि अपने देश में स्वास्थ्य सेवा पर बहुत कम खर्च किया जाता है। देश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कुल 25 हजार 650 है। इन सरकारी केंद्रों में 15 हजार 700 ऐसे है जहां सिर्फ एक डॉक्टर तैनात हैं। इतने कम संसाधनों वाली स्वास्थ्य योजना पर्याप्त नहीं है। आशा कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी जैसी योजना भी अफसरशाही के दखल के कारण कारगर साबित नहीं हुए। ऐसे में
एकता परिषद के कार्यकर्ताओं की भागीदारी नहीं होती तो कोरो ना के कारण बहुतों की मौत हो सकती थी। लोग बीमार होते तो उन्हें चिकित्सा उपलब्ध नहीं होती। एकता परिषद की ओर से आदिवासियों, दलितों और वंचितों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए अतुलनीय कार्य किया जा रहा है।
एकता परिषद ने सूचना और जन संचार प्रणालियों का इस्तेमाल देश के 11 राज्यों में फैले अपने कार्यकर्ताओं के संगठन को दुरुस्त रखने,इनका मार्गदर्शन करने, जनता और सरकार के बीच समन्वय कायम करने और सभी कल्याणकारी सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं में जन भागीदारी बढ़ाने का काम किया है। एकता परिषद के कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में सक्रिय रहते आए हैं इसलिए उन्हें जमीनी हकीकत और जन आकांक्षाओं की जानकारी अफसरों से ज्यादा रहती है। यही वजह है कि अधिकारियों के लिए एकता परिषद के कार्यकर्ताओं की आवाज को दबा देना आसान नहीं होता है। लोगों को हक दिलाने के क्रम में एकता परिषद के कार्यकर्ताओं को अफसरशाही को अनुकूल फैसले के लिए बाध्य करना पड़ता है। इस तरह लोकतंत्र के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जिस लोक शक्ति की जरूरत होती है उसके लिए राजगोपाल पीवी, रन सिंह परमार, रमेश शर्मा और अनिश कुमार के साथ सैकड़ों कार्यकर्ता अपने जान जोखिम में डाल कर लोगों की सेहत के साथ साथ लोकतंत्र की सेहत को दुरुस्त करने में जुटे हैं। जय जगत।