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'सूचना प्रदूषण' का बढ़ रहा प्रभाव, सजगता है बचाव का उपाय
वकील अहमद
प्राणी जगत को वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण के अलावा रेडियोएक्टिव प्रदूषण ने अपनी चपेट में ले रखा है। सूचना प्रदूषण, प्रदूषण का एक नया प्रकार है जो मनुष्य को तेजी से प्रभावित कर रहा है। मनुष्य के स्वभाव में विकृति के कारण अन्य प्राणी भी इसकी ज़द में आकर नई परेशानियों से दो-चार हो रहे हैं। आइए जानते हैं सूचना प्रदूषण क्या है? इससे बचना क्यों जरूरी है?
प्रदूषण क्या है?
प्रदूषण ज़रूरी चीज़ों में गैर ज़रूरी, अनचाही, और हानिकारक मिलावट को कहते हैं। वायु में खतरनाक गैसों का मिश्रण, जल में खतरनाक धातुएं, ध्वनि में मानक से ऊपर का शोर होना प्रदूषण कहलाता है।
'सूचना प्रदूषण' ऐसी सूचना को कहते हैं जिसमें निम्न स्तरीय, अतिरिक्त, असंबंधित और अनचाही सूचनाओं की मिलावट हो।
प्रदूषण के 7 प्रकारों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, रेडियोएक्टिव प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण, थर्मल प्रदूषण एवं दृष्टि प्रदूषण को शामिल किया जाता है।
सूचना प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव:
देश में इस समय लगभग 900 टीवी चैनल तथा एक लाख 5 हजार से अधिक समाचार पत्र एवं-पत्रिकाएं सक्रिय हैं। ये टीवी चैनल और समाचार पत्र-पत्रिकाएं देश की हर क्षेत्रीय भाषा में बाढ़ की भांति प्रसारित हैं। इसमें पहला स्थान 16000 पत्र-पत्रिकाओं के साथ उत्तर प्रदेश का है और दूसरा 14000 पत्र-पत्रिकाओं के नामांकन के साथ महाराष्ट्र का आता है। इनके अतिरिक्त फेसबुक, यू-ट्यूब और व्हाट्सएप पर भी अनर्गल सूचनाओं की चपेट में हर कोई आ जाता है।
तकनीकी के इस दौर में हर परिवार मोबाइल और इंटरनेट से जुड़ चुका है। हमारे देश में सोशल मीडिया प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या अगले एक-दो वर्ष में 26 करोड़ का आंकड़ा छूने को है। एक अनुमान के अनुसार भारत सूचना प्रौद्योगिकी का सुनहरा प्लेटफॉर्म है। भारत ने कई देशों को इस क्षेत्र में पीछे छोड़कर पहला स्थान हासिल कर लिया है।
सूचनाएं प्राप्त करना मानव स्वभाव का अभिन्न हिस्सा है। सूचनाएं मनुष्य को विकास करने में सहायता प्रदान करती हैं। दैनिक घटनाक्रम और इतिहास के झरोखे मनुष्य में निर्णय लेने की क्षमता को प्रबल करते हैं। अधिक सूचनाएं अच्छे फैसलों के लिए आवश्यक तत्व हैं। परंतु चारों ओर से मिलने वाली सूचनाओं के बीच सही सूचना का निर्णय कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।
अखबारों के पन्ने बढ़ चुके हैं। टीवी चैनल पर खबर पढ़ने की रफ्तार तेज़ हो चुकी है। सोशल मीडिया पर हर छोटी-बड़ी सूचना साझा करना लोगों का स्वभाव बनता जा रहा है। ऐसे में किस सूचना को ग्रहण किया जाए और किसे छोड़ दिया जाए? इसका निर्णय करना मुश्किल बात है। इसके अतिरिक्त इन सूचनाओं में कितनी सच्चाई है? यह स्पष्ट नहीं हो पाता। दूसरी बात यह कि हर सूचना प्लेटफॉर्म आपके मन-माफिक सूचनाएंँ उपलब्ध करा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि यूट्यूब और फेसबुक ऐसा करने में सबसे अव्वल हैं।
बहुतायत में उपलब्ध ये सूचनाएं हमारे स्वभाव में चाहे-अनचाहे परिवर्तन ला रही हैं। लोग चिड़चिड़े, असभ्य, क्रोधी, असंयमी, कटु-भाषी, द्वेषी और विचलित स्वभावी बनते जा रहे हैं। इन सबके पीछे 'सूचना प्रदूषण' का बड़ा प्रभाव है। ऐसे में सूचनाओं के संपर्क में आने से पहले हमें कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए ताकि सूचना प्रदूषण के बुरे प्रभाव से बचकर अपने शांतिमय जीवन में ज़हर घुलने से रोका जा सके।
'सूचना प्रदूषण' से बचाव के उपाय:
अपना सूचना क्षेत्र निर्धारित करेंः
हर विषय की जानकारी लेना सबके लिए आवश्यक नहीं होता। आप अपने क्षेत्र की जानकारी को प्राथमिकता से देखें। इससे आपको ग़लत सूचनाएं स्पष्ट दिखेंगी। विषय की जानकारी आपको गलत सूचनाओं से बचाएगी।
सूचना का अवलोकन कर पुष्टि करेंः
सूचना प्राप्त होते ही विश्वास कर लेने से आप उसमें शामिल होकर वैसा ही महसूस करने लगते हैं और आपको गुस्सा या सहानुभूति हो जाती है। इससे आप समर्थन या विपक्ष में खड़े होकर खुद को सूचना प्रदूषण का शिकार बनाते हैं। बेहतर होगा कि आप सूचना का अवलोकन करें एवं पुष्टि होने पर ही कोई निर्णय करें।
सूचना के अलग-अलग माध्यमों का प्रयोग करेंः
किसी एक टीवी प्रोग्राम, एक ही अखबार, सोशल मीडिया ग्रुप, यूट्यूब चैनल या एक ही व्हाट्सएप ग्रुप पर आपके मन को लुभाने वाली सूचनाएं लगातार मिलने से आपका स्वभाव एकात्मक दृष्टिकोण अपना लेता है। प्रदूषित सूचना भी आपको सच लगती है। इससे बचने के लिए सूचना के अलग-अलग माध्यम और प्रोग्राम का प्रयोग करें। इससे सूचना फिल्टर हो जाएगी।
खुद को रखें निष्पक्ष:
सूचनाओं में स्वभाव को परिवर्तित करने की शक्ति होती है। सूचना के पक्ष या विपक्ष में झुकाव आपको तेजी से चपेट में लेकर प्रभावित करता है। यह सूचना के हानिकारक पक्ष को आपके लिए सक्रिय कर देता है। इसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए खुद को निष्पक्ष रखकर सूचना तक पहुंचे। स्वयं को निर्णायक की श्रेणी में रखें और सूचना के मानव हितकारी पक्ष पर ध्यान केंद्रित करें।