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यूपी में बढती कांग्रेस और बौखलाती सपा और बसपा
हर्षवर्धन त्रिपाठी
उत्तर प्रदेश में हर रोज राजनीतिक समीकरण बदल रहा है, लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस बढ़ रही है। कितना बढ़ रही है, इस पर बहस की जा सकती है, लेकिन बढ़ रही है, इसे तो हर कोई मान रहा है। और, कांग्रेस का यही बढ़ना सपा-बसपा के अजेय से दिख रहे गठजोड़ के लिए मुश्किल खड़ी करता दिख रहा है। सपा-बसपा का एक हो जाना भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गया था, लेकिन राजनीति शायद गिरगिट को भी मात देती है, इतनी तेजी से रंग बदलती है। यूपी में राजनीतिने ऐसा रंग बदला कि अजेय दिखने वाली भाजपा को पहले सपा-बसपा ने चुनौती दी, अब कांग्रेस का बढ़ना सपा-बसपा के गठजोड़ को तेज चिकोटी काट रहा है। इतनी तेज कि बसपा नेता एमएच खान मेरा यह कहना बर्दाश्त न कर सके कि कांग्रेस, सपा-बसपा को वोट पहले काटेगी।
एक बात पक्के तौर पर उत्तर प्रदेश का विश्लेषण करने वालों को समझना चाहिए कि अखिलेश यादव और मायावती, अब 20-20 प्रतिशत के जातीय नेता नहीं है, सिर्फ 8-9 प्रतिशत के जातीय नेता हैं और मुसलमान जो सपा-बसपा में बंटता आ रहा था, अब उसके पास कांग्रेस को चुनने का भी विकल्प है। उस पर मुलायम सिंह यादव के इस तरह से बोलने का विश्लेषण नेता और राजनीतिक विश्लेषक चाहे जैसे करें, मुलायम के खांटी MY मुस्लिम, यादव वोटबैंक को लग सकता है कि उनके नेताजी क्या कह रहे हैं।
कांग्रेस अब छोटे-छोटे राजनीतिक दलों को मिलाकर अपना तीसरा मोर्चा मजबूत करना चाहती है, लेकिन सच यही है कि अगर सपा-बसपा और कांग्रेस के साथ पीस पार्टी, महान दल जैसी छोटी पार्टियां मिलकर लड़ती हैं तो भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीतिक समीकरण बेहतर होगा। भाजपा की बेहतरी रोकने का एक ही उपाय है कि सपा-बसपा-रालोद के साथ कांग्रेस भी जुड़ जाए, लेकिन 2 सीटों की कृपा भाव वाली सपा-बसपा क्या कांग्रेस से हाथ मिला पाएंगी वो भी तब जब प्रत्याशी और सीटें भी तय कर ली गईं। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश का राजनीतिक गिरगिट अभी बहुत रंग बदलने वाला है।