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India China Border Tension Live Update : यह खबर नही है, ट्रेंड है जानते हो क्यों?
मनीष सिंह
1962 में चीन का हमला हुआ था 20 अक्टूबर को, जब सारी दुनिया क्यूबन मिसाइल क्राइसिस में उलझी हुई थी। माओ को मालूम था, वो सैनिकों के संख्या बल में नेहरू पर भारी पड़ सकता है। मगर अंतरास्ट्रीय राजनय और कूटनीति में कतई नही।
तब यूएन ने माओ के चीन को स्वीकार नही किया था। उसकी नजर में माओ चीन के विद्रोही और अवैध शासक थे। माओ की मौत तक, चीन की सीट फारमोसा याने ताइवान के पास थी। दुनिया मे माओ को स्टालिन की तरह खलनायक ही देखा जा रहा था। दूसरी ओर नेहरू 120 देशों के गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता और वैश्विक साख के नेता थे।
तो वक्त ऐसा चुना माओ ने ... कि विश्व समुदाय से नेहरू को मदद न मिल सके। क्यूबन मिसाइल क्राइसिस 28 अक्टूबर को खत्म हुआ और चीन के हमले भी धीमे पड़ गए। मगर तमाम देशों के दबाव के बावजूद युद्ध विराम माह भर बाद हुआ। क्यों??
माओ को 14 नवम्बर का इंतजार था।
नेहरू को हैप्पी बर्थडे कहने के बाद, 18 नवम्बर को चीन ने एकतरफा युध्द विराम किया। जीते हुए क्षेत्र 90% खाली कर दिए। एकपक्षीय क्यों ?? इसलिए कि आगे किसी द्विपक्षीय समझौते में दोनो को प्री वार लोकेशंश पर लौटना होता। तो जिन 10% स्थानों पर उसने हाई बैटल ग्राऊंड ले लिए थे, वह भी छोड़ने पड़ते।
याद रहे कि ऐसी हर जगह भारत से लड़कर नही जीती गयी थी। वे खाली पीक थे, या कम संख्या होने के कारण भारतीय फौजे इकट्ठा होकर लड़ने के लिए उन्हें खाली कर गयी थी।
आज जो इलाके चीन जीत रहा है, वहां गुल-बकावली की खेती नही करेगा। ये जगहें पहले ही उसकी पहुंच में थी। दरअसल वह पीक से उतर कर घाटियों में नही, इस सरकार में बैठे मूर्खों की लम्बी जुबान पर खड़ा है। वह हमारे पीएम को हैप्पी बड्डे बोल रहा है ...। वे गमछे में मुँह छुपाये हमे आश्वासन दे रहे है। 20 के बदले 40 मारने का प्रोपेगैंडा है। मगर 20 किमी के बदले 40 किमी लेने की झूठी खबर नही है। मौतों की संख्या से युद्ध के जश्न नही होते जनाब, जीती गयी टेरेटरी से होते हैं।
चीन, मान मर्दन सिर्फ पीएम का नही, हमारे हिंदुस्तान का कर रहा है। हमारे जेहन में भरी गयी वारमोंगरिंग का कर रहा है। 1962 के पहले, चीन से न उलझने की नेहरू की नीति के विरुद्ध, मीडिया विपक्ष तथा कांग्रेस के भीतर, वारमोंगरिंग फैलाने वालों की लंबी जुबान ने हिस्टीरिया फैलाया था।
आज आंतरिक राजनीति में शेर-पना दिखाने के नाम पर जितनी लूज टाक होती है, हमे लगता है कि ये बातचीत देश के बाहर नही सुनी जाती। 370 के बाद इंच इंच जमीन लाने के दावे हमारे मंत्रियों में किये थे न, जान देने के दावे किए थे न..। सेटेलाइट चैनलों ने भी किये, और आपने भी किये सोशल मिडीया पर।
तब रक्षा मंत्री कृश्णा मेनन की जुबान भी गज भर की थी। सर कटवाने के दावे तब भी थे। असल मे सर कटवाने तो कोई नेता या समर्थक गया नही। आज भी गर्दन सिर्फ सैनिको की कटेगी। एक ऐसी लड़ाई जिसका कोई लक्ष्य नही, मोटिव नही। क्या उन्हें बीजिंग या तिब्बत या अक्साई चिन, या खोई हुई टेरेटरी वापस जीतने के आदेश मिले है?? नही।
उन्हें असल मे जान देनी है, इसलिए कि नेता, उसकी पार्टी, उनके मूर्ख समर्थकों की इज्जत बच सके, आपके चैनलों और फेसबुक स्टेटस/ ट्वीट की इज्जत बच सके, जिसे धूल में मिलाने के लिए चीन ने फौजी भेजे हैं। और इस बार उन्हें पता है कि हमारे नेता को विश्व समुदाय से कोई मदद नही मिलने वाली। उसे कब्जे की जगह से वापस लौटना नही पड़ेगा।