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- मोदी राज है या तुगलक...
पुनर्जन्म की मान्यताओं वाले देश में अगर सैकड़ों साल के अंतर को दरकिनार कर दिया जाए तो तुगलक और मोदी के शासनकाल को देखकर ऐसा भ्रम किसी को भी हो सकता है, मानों तुगलक का राज इस देश मे लौट आया है. खुद ही देख लीजिए, दोनों के राज- काज का लेखा-जोखा
तुगलक और मोदी के तीन मास्टरस्ट्रोक-
पहला मास्टरस्ट्रोक
तुगलक की सिक्काबंदी-
नतीजा यह हुआ कि देश आर्थिक रूप से तबाह हो गया. बड़े पैमाने पर अफरातफरी मची और इसमें अनगिनत लोगों की जानें गईं. चांदी- सोने के सिक्के रातों- रात बंद करने का ऐलान हुआ और नए तांबे के सिक्के पर्याप्त ढाले नहीं गए थे इसलिए घर घर में टकसाल में जाली सिक्के ढाले जाने लगे. चांदी- सोने की मुद्रा लौटाकर उसके बदले में तांबे के सिक्के लेने के लिए लोग भेड़- बकरी की तरह सरकारी केंद्रों पर जुटने लगे.
मोदी की नोट बंदी-
मोदी ने रातों- रात पुराने नोट बंद किए. नतीजा वही हुआ, जो तुगलक के सिक्का बंद करने के फैसले से हुआ था. देश में आर्थिक तबाही आई और कई लोगों की जानें इस अफरातफरी मे जाने की खबरें आती रहीं. अचानक हुए ऐलान और दो हजार के नोट पर्याप्त न मिलने के कारण लोग पुराने नोट बदलकर नए नोट लेने के लिए भेड़ बकरियों की तरह देशभर में पुलिस की लाठियां खाते रहे.
दूसरा मास्टरस्ट्रोक
तुगलक का फरमान, दिल्ली वालों को तत्काल 1500 मील दूर नई राजधानी भेजा जाए-
नतीजा यह हुआ कि इस लंबे सफर को परिवार व अपने माल- असबाब के साथ पैदल या उस समय के बैलगाड़ी जैसे साधनों से करने में रास्ते में ही अनिगनत लोग मारे गए.
मोदी का ऐलान, पहले एक दिन का जनता कर्फ्यू, फिर उसे बढ़ाकर महीनों का लॉक डाउन-
ट्रेन और बस इत्यादि अचानक बंद कर देने और कामगारों और मजदूरों के लौटने का इंतजाम न करने के कारण लगभग 2000 मील तक का सफर पैदल, साइकिल आदि से करने में कई लोगों के मारे जाने से हाहाकार मचा रहा.
तीसरा मास्टरस्ट्रोक
जैसे- तैसे पहुंचने के कुछ अरसे बाद ही पूरी जनता को वहां प्लेग महामारी फैलने पर तुगलक द्वारा फिर से 1500 मील वापस दिल्ली बुलाना-
नतीजा यह हुआ कि प्लेग महामारी भी बड़े पैमाने पर लोगों के इस तरह इकठ्ठा होने और इतना लंबा सफर करने से कई अन्य इलाकों में फ़ैल गई. फिर प्लेग के इस तरह फैलने और दोबारा इतना लंबा सफर करने पर अनगिनत लोग मारे गए.
कोरोना के खतरे के बावजूद मोदी द्वारा कुंभ, बंगाल समेत अन्य राज्यवार व ग्रामीण स्तरीय चुनाव देश भर में कराना-
विशेषज्ञ लगातार चेतावनी देते रहे मगर मोदी ने अपने हार्डवर्क के आगे हारवर्ड वालों की एक न सुनी. मोदी ने दुनिया से छाती ठोंक कर दावोस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि देख लो दुनियावालों हमने कोरोना को हरा दिया है. इसी मूर्खतापूर्ण आत्मविश्वास में कोरोना से बचाव की कोई तैयारी यानी वैक्सिनेशन, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार आदि नहीं किया गया. उस पर तुर्रा यह कि मोदी ने कुंभ, चुनाव आदि के आयोजनों में भारी भीड़ जुटने पर खुशियां मनाईं. नतीजा इस बार भी वैसी ही तबाही और मौतों जैसा हुआ , जो तुगलक राज में प्लेग फैलने और उस दौरान ही एक साथ ही लोगों का सामूहिक पलायन कराने से हुआ था. कोरोना तेजी से फैला और बिना स्वास्थ्य तैयारियों के लोग ऑक्सीजन, एम्बुलेंस, हस्पताल, वेंटिलेटर, दवाई, इंजेक्शन आदि के अभाव में भी मरने लगे.
सैकड़ों बरस पहले तीनों मास्टर स्ट्रोक तुगलक ने निश्चित तौर पर यही सोच कर मारे होंगे कि इतिहास उसे एक महान राजा के रूप में याद करेगा. लेकिन मूर्खता के चरम के उसके इन तीनों मास्टरस्ट्रोक ने हर बार देश में जानो- माल की ऐसी तबाही मचाई कि इतिहास तो इतिहास, भारत का बच्चा-बच्चा भी आज उसके मरने के सैकड़ों साल बाद भी हर तानाशाही/ मूर्खतापूर्ण फैसले को तुगलकी फैसला करके ऐसे सनकी बादशाह पर लानत भेजता है.
जाहिर है, तुगलक के पास जब राज- काज की ताकत रही होगी तो उसके हर मास्टरस्ट्रोक पर जनता में जब तबाही आती होगी तो उसके दरबारी और लाभार्थी तुगलक की निन्दा करने की बजाय उन फैसलों में भी खूबियां ढूंढ़ कर वाह- वाह करते रहे होंगे. जैसे कि आज मोदी जी के दरबारी और लाभार्थी भक्तगण हर तबाही पर भी वाह मोदी जी वाह करते हैं.
लेकिन तब जनता जरूर तुगलक के हर फैसले पर दबे छुपे शब्दों में अपनी नाराजगी दबे शब्दों में जाहिर करती ही रही होगी. वरना आज हर किसी के जुबान पर तुगलकी फैसले का यह मुहावरा भला कैसे चढ़ा होता?
मोदी जी को इतिहास किस मुहावरे या किस तरह याद रखेगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा... लेकिन इतिहास देखकर फिलहाल तो उनका राजकाज तुगलक की ही याद दिला रहा है...