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गोगोई, मिश्र और बोबड़े जैसे जजों की खुशनसीबी रही कि उनका जेठमलानी से ज्यादा सामना नहीं हुआ
अनिल जैन
पूरे 97 बरस तक जीने के बाद राम जेठमलानी दो साल पहले आज ही के दिन अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में से समय निकाल कर खर्च हो गए थे। देश के सबसे वरिष्ठ, सबसे महंगे, सबसे मुंहफट, सबसे चर्चित और सबसे विवादास्पद वकील के तौर पर जाने गए राम जेठमलानी देश के न्यायिक इतिहास में एकमात्र ऐसे वकील रहे जिन्होंने महज 17 साल की उम्र में एलएलबी की डिग्री लेकर वकालत की सनद हासिल की थी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे बचपन में भी कितने प्रतिभाशाली रहे होंगे।
जिस समय उन्होंने एलएलबी पास की थी, उस समय वकालत शुरू करने के लिए 21 साल की उम्र जरुरी थी, मगर जेठमलानी के लिए एक विशेष प्रस्ताव पारित कर 18 साल की उम्र में प्रैक्टिस करने की इजाजत दी गई। उन्होंने वकालत के अपने 80 साल के कॅरिअर में कई दुर्दांत नामी-गिरामी लोगों के मुकदमे लड़े। इन नामी-गिरामी लोगों में हत्यारे आतंकवादियों, भ्रष्ट और दंगाखोर नेताओं, बलात्कारी बाबाओं, तस्करों, बेईमान और घोटालेबाज कारोबारियों-उद्योगपतियों आदि का शुमार था।
वे बेहद महंगे वकील थे और लाखों में उनकी फीस होती थी उनकी। लेकिन कुछ नेताओं से उन्होंने पैसे के बजाय राज्यसभा की सदस्यता के रूप में फीस वसूली। जिन नेताओं से उन्होंने उनके मुकदमे लड़ने की एवज में राज्यसभा की सदस्यता वसूली उनमें नरेंद्र मोदी, लालू प्रसाद, बाल ठाकरे और जयललिता शामिल रहे। जेठमलानी के जीवन का सबसे चमकदार और सार्थक मुकदमा रहा मंडल आयोग की सिफारिशों से संबंधित, जिसमें उन्होंने बिहार सरकार के वकील की हैसियत से सुप्रीम कोर्ट में त्रावणकोर के राजा के एक दस्तावेज के जरिए साबित किया कि वर्ग ही जाति है और जाति ही वर्ग है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के वीपी सिंह सरकार के फैसले को सही माना। उस फैसले के कारण पिछडी जातियों के करोड़ों लोगों को लोगों को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में फायदा मिला और भारतीय राजनीति का व्याकरण भी बदला। मेरी उनसे दो बार प्रत्यक्ष मुलाकात हुई उनके सरकारी आवास पर। एक मुलाकात के दौरान मैंने उनसे उनकी फिटनेस का राज पूछा तो उन्होंने बताया कि वे सुबह-शाम नियमित रूप से बेडमिंटन खेलते हैं, शाम के वक्त नियंत्रित मात्रा रसरंजन (विदेशी) करते हैं और खाना बहुत कम खाते हैं।
राम जेठमलानी अपने मुंहफट अंदाज और अक्खड मिजाज के लिए भी खूब मशहूर रहे। एक हाई कोर्ट में किसी मुकदमे की पैरवी करते हुए उन्होंने बहस के दौरान जज को कुछ समझाने की कोशिश की। उनकी यह कोशिश जज साहब को अपनी शान में गुस्ताखी लगी। शायद बोबड़े साहब टाइप जज रहे होंगे।
जज साहब शायद जेठमलानी के इतिहास और मिजाज से भलीभांति परिचित नहीं थे, सो उन्होंने अपनी जज वाली ठसक में जेठमलानी से कह दिया कि अब आप मुझे कानून समझाएंगे! जेठमलानी ने हड़काने के अंदाज में कहा कि बिल्कुल, मेरा काम ही जज को कानून की बारीकियां समझाना है। फिर उन्होंने जज से उनकी उम्र पूछी और कहा कि जितनी आपकी उम्र है उससे ज्यादा साल हो गए है मुझे प्रैक्टिस करते हुए। बेचारा जज....!
गोगोई, मिश्र और बोबड़े टाइप के जजों की खुशनसीबी रही कि उनका जेठमलानी से ज्यादा सामना नहीं हुआ। जेठमलानी ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनसंघ से की थी और कुछ साल उन्होंने भाजपा में भी बिताए, लेकिन अपने जीवन के आखिरी वर्षों में उन्होंने भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति का मुखर विरोध किया।