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- 'कैलाश मानसरोवर...
मशहूर लेखक ग़ज़ल गायक और नामी IAS डॉक्टर हरिओम की ताज़ा किताब है।इस किताब के ज़रिए उन्होंने 'यात्रा-आख्यान' विधा में बहुत कुछ जोड़ा-तोड़ा हैं।एक साहित्यिक तीर्थयात्री के बतौर हरिओम के पास वह स्वस्थ और साकांक्ष दृष्टिकोण है जिससे वह 'तीर्थयात्रा' को भी एक रम्य-आख्यान में बदल देते हैं। उनकी दृष्टि खुली और आलोचनात्मक है जिसके कारण वे तीर्थों के भूगोल में फैले व्यवसाय और कुव्यवस्था को भी सामने लाते हैं।
आस्था शंका और तर्क से परे होती है जहाँ चिंतन और वैचारिकी का पूर्णत: समर्पण होता है। शायद इसीलिए आस्थावान भक्त अपने परलोक की चिंता में इहलोक के असहनीय कष्ट को झेल लेते हैं। हरिओम इस यात्रा में धर्म, अध्यात्म आदि पर न सिर्फ़ तार्किक दृष्टि से विचार करते हैं बल्कि समाज-मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी करते चलते हैं। उनके भीतर यह चिंता भी कायम है कि कैसे धर्म के 'धुंध और पीलेपन ने हमारे देश के सुंदर परिवेश का रंग चुरा लिया है।'
यहाँ विकास और पर्यावरण के बीच के असंतुलन को भी बहुत शिद्दत के साथ रेखांकित किया गया है। कैलाश मानसरोवर तिब्बत में स्थित है जो अब चीन के अधीन है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार यह भगवान शिव का निवास स्थान है। यह हिन्दू के साथ-साथ बौद्ध, जैन और बोन तीनों धर्मों में पवित्र तीर्थ माना गया है।
यात्रा में नेपाल की विपन्नता के सामने चीन की सम्पन्नता दिखती है लेकिन तमाम ऐसे सवाल हैं जो नेपाल और तिब्बत के सामाजिक आर्थिक जीवन के साझा सवाल हैं।भोले बाबा की जय' एक ऐसा वाक्य है जिसमें सारी अव्यवस्था ढँक जाती है।
'सेहत और सफाई का सवाल श्रद्धा और आस्था' के नीचे दब जाता है। इस यात्रा-आख्यान में रोमांच और रोचकता के साथ ही अद्भुत किस्सागोई है। नि:संदेह धार्मिक-आध्यात्मिक पक्ष के साथ ही भारत, नेपाल, तिब्बत और चीन के भूगोल, समाज, पर्यावरण, कूटनीति, विकास और सांस्कृतिक-राजनीतिक संबंधों को समझने में भी यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।