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वो कब किसके तकिये के नीचे होती......कुछ बोलती राते

वो कब किसके तकिये के नीचे होती......कुछ बोलती राते
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राते जो गुनहगार सी लगती हैं। लोगो की करवटों के साथ,...... राते भी कई अनजानों की ज़िंदगियों को पलटती है। हम सबके जीवन में रातो की अपनी अलग- अलग भूमिका है, और उसके इसी रंग में, आप कौन से रंग को देखते है? पढ़े,....." रातों के बारें में "

कुछ बोलती राते

रातों के अंधेरे सन्नाटे,

ख़ामोश सड़के, मोड़- चौराहे,नुक्कड़….…..

अपने आप में कई कहानियों को सिमटे रखती******

सड़क के चौराहे के बीचो-बीच चमकता..…..

वो लाल,पीला,सफेद गोल सूरज - सा,

कई जिन्दगीयो को और

कई आंखों को सुबह देता ************

कोई ख्वाबों की पोटली बना………...

पट्टरियों पर नींद का बिस्तर सजाता,

तो कोई अनचाहे चौराहे पर

अनचाहे नाम से

जिंदगी का मोल चुकाता*********

दिन भर दौड़ लगाती

कई अनजानों से मिलती - मिलाती

खाली डिब्बों सी………..

किसी कोने में अपना कोई

कोना तलाशती,

तो कोई रात के अंधेरों को तकता

जीवन के कालेपन को

सवेरे में बदलने को तरसता**************

घरों में दो - तीन बजे भोर…………..

कोई आंखो को

चैन की नींद का तोहफ़ा देता,

तो कोई आंखो का सुकून खो

कतार में खड़े होकर

बाग - बगीचे की खुशबू

बन कर बिचता*************

राते हर रोज

हर किसी की होती

वो कब किसके

तकिये के नीचे होती………...

और कब

किसके उपर बरसती…………...

ये तो रातों का रूख़ बताता*********

जो अपने आप में बहुत कुछ सीखता

क्योंकि राते,

कई कहानियों को सिमटे रखती,

राते *******

कुछ बोलती राते……….

(डॉ पूजा गुप्ता, असिस्टेंट प्रोफेसर दर्शनशास्र विभाग

संथाल परगना महाविद्यालय,दुमका, झारखंड,)

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