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- साहित्य: तहमीना...
शारिक रब्बानी, वरिष्ठ उर्दू साहित्यकार
नानपारा, बहराईच (उत्तर प्रदेश)
तहमीना दुर्रानी एक बेबाक और प्रगतिशील मुस्लिम लेखिका हैं। तहमीना दुर्रानी का जन्म 18 फरवरी 1953 को लाहौर पाकिस्तान मेें हुआ था तथा इनकी पहली शादी 17 साल की आयु में अनीस खान से हुई थी जिनसे 1976 मेें तलाक हो गया।
दूसरी शादी पाकिस्तान के प्रभाव शाली नेता मुसतफ़़ा खार से हुई लेकिन वह भी सफल नही हुई। तहमीना दुर्रानी ने मुसतफ़ा खार के अपने साली से यौन संबध बनाने का भी आरोप लगाया था। लगभग चौदह साल तक पति से दूरी तथा अनेक कष्टों को सहने करते हुए जब उन्होंने परिस्थितियों से विद्रोह करने का फैसला लिया तो उन्हें अपनी पति की संपत्ति और अपने बच्चों से भी एक तलाक शुदा महिला के रूप मेें हाथ धोना पड़ा। और विडम्बना तो यह है कि पाकिस्तान के मुस्लिम समाज ने भी उनका साथ नहीं दिया । मुस्लिम समाज के मोलवी और अगुवा भी इस महिला के दुखों में इनके कोई मददगार नहीं हुुए।
ऐसे में तहमीना दुर्रानी ने लेखन का सहारा लिया और "मेरे आका" नामक एक ऐसी पुस्तक लिखी, जिसने पाकिस्तान की सियासत की चूल्हे हिला दी। इसके अलावा तहमीना दुर्रानी अब्दुल सत्तार ईदी की जीवनी तथा अन्य कई रचनाएं लिखीं। तहमीना दुर्रानी की पुस्तक कुफ्र जो उन्होंने 1998 मेें लिखी, जिससे रूढ़वादी मुस्लिमों और मोलवीयो का उन्हें विरोध झेलना पड़़ा और यह पुस्तक विवादित हो गई । कारण था इस उपन्यास मेें तहमीना दुर्रानी ने पाकिस्तान स्थित एक दरगाह के पीरो के काले कारनामों व गुप्त जीवन का उल्लेख किया है।
तहमीना दुर्रानी ने इस पुस्तक में मुस्लिम समाज में प्रचलित निकाह व हलाला आदि के प्रति एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है तथा अपनी लेखिनी के माध्यम से ऐसे विषय को छूने का प्रयास किया है जो इस्लामी देश में लगभग वर्जित है। इसके अलावा तहमीना दुर्रानी की एक चर्चित पुस्तक "हैप्पी थिंग्स इन सोरो टाइम्स" भी है जिसमें उन्होंने एक अफ़ग़़ान लड़की राबिया के बचपन व युवाओं पर आधारित विषय को चुना है और इसमें घरेलू हिंसा, धर्म के नाम पर पाखंड आदि का मार्मिक चित्रण किया है ।
इस प्रकार तहमीना दुर्रानी की रचनाओं में स्त्री-वमर्श की प्रमुखता है तथा तहमीना दुर्रानी ने जो कुछ समाज में देखा सहा व अनुभव किया उसे अपनी लेखनी के माध्यम से समाज के समक्ष बेबाकी के साथ प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास किया है।
आज तहमीना दुर्रानी के साथ-साथ मुस्लिम समाज की प्राथमिकता है कि वो इस्लाम धर्म में व्याप्त कुरीतियों और रूढ़िवादिता की जड़ों पर वार करें और स्वयं को निष्पक्षता के पैमाने पर खड़े होकर भविष्य के निर्णय ले।