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अब आज नतीजे आ जायेंगे तो अब क्या करें?

अब आज नतीजे आ जायेंगे तो अब क्या करें?
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आज अभी कुछ देर में नतीजा आ जाएगा। उसके बाद सब कुछ वैसे ही शांत हो जाएगा। बल्कि पहले से कहीं ज्‍यादा शांत। पिछले डेढ़ महीने के गुबार से उठी धूल को बैठने में हो सकता है कुछ वक्‍त लगे। निस्‍तब्‍धता हालांकि पहले के मुकाबले ज्‍यादा होगी। सरकार चाहे किसी की आवे। बहुत से लोगों की सेहत पर इसका अलग-अलग असर पड़ेगा। कुछ लोग बेकाम हो जाएंगे। उन्‍हें लय में आने में एकाध महीना लगेगा। कई लोग बेराम हो जाएंगे। उन्‍हें संभलने में एकाध हफ्ता लगेगा। कुछ और लोगों का जनता से भरोसा उठ जाएगा। उन्‍हें जनता बनने में दो-चार दिन लगेगा। कुछ का जनता पर भरोसा बढ़ जाएगा। उन्‍हें जाला साफ़ करने में अगला चुनाव ही काम आएगा।

कहने का मतलब है कि चुनाव ने हम लोगों से अपना बहुत कुछ इनवेस्‍ट करवा लिया है। इतना करना नहीं था। चुनाव और इसकी प्रक्रिया इस लायक नहीं कि आदमी अपनी बहुमूल्‍य ऊर्जा इसमें खपा दे। बीते डेढ़ महीने जो मदारी के डमरू पर नाचते बीत गए, उसे रीक्‍लेम करना मुश्किल है। फिर भी, मुझे लगता है कि कल के बाद हम लोगों को कुछ अच्‍छे काम करने चाहिए। किताब पढ़नी चाहिए। सिनेमा देखना चाहिए। सोना चाहिए। गाना चाहिए। बच्‍चों के साथ पढ़ना-खेलना चाहिए। घर में खाना बनाना चाहिए। जिन्‍हें हमने दुख पहुंचाया और जिनसे हमें दुख पहुंचा इस बीच, उन्‍हें फोन कर के गले लगाना चाहिए।

साढ़े पांच सौ लोगों के हित में अपनी जिंदगी गंवाना ठीक नहीं। पांच साल में दो महीना बहुत होता है। बरबाद हुआ तो हुआ। अब कल के बाद चेत जाएंगे। कांग्रेस आवे, भाजपा आवे, अपनी बला से। गीत गाते रहे हैं, गीत गाएंगे। होली, दिवाली, ईद सब मनाएंगे। जनादेश का सम्‍मान करेंगे। झगड़ेंगे नहीं। जो करते रहे हैं वही करते जाएंगे। मंजिल की परवाह किए बगैर चलते जाएंगे। हाथ में उम्‍मीद का एक लहराता सफेद रुमाल लिए खाली डिब्‍बे की तरह लहरों पर बहते जाएंगे। पीएंगे, पिलाएंगे। खाएंगे, खिलाएंगे। समाज को थोड़ा और समझेंगे। लोगों के बीच जाएंगे। हंसेंगे, हंसाएंगे। लतीफ़े बनाएंगे। गभीरता को मार भगाएंगे।

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