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मणिपुर 2002 का गुजरात: जिन्हें नाज़ है हिंद पर, वो कहां है?

Shiv Kumar Mishra
21 July 2023 9:03 AM IST
मणिपुर 2002 का  गुजरात: जिन्हें नाज़ है हिंद पर, वो कहां है?
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न पीएम मोदी मणिपुर की जनता से हिंसा रोकने की अपील कर रहे है न राजधर्म की बात कर रहे है। वो कह रहे है राजस्थान, छत्तीसगढ़ मणिपुर की सरकारें ध्यान दें।

जवारीमल्ल पारख

दो कुकी आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर सार्वजनिक रूप से अपमानित करने और उसके बाद युवा स्त्री को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाने का वीडियो सामने आने के बाद भी अगर लोग यह समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी- एन बीरेन सिंह की डबल इंजन की सरकारों ने अपनी सांप्रदायिक योजना के तहत मणिपुर को गुजरात बना दिया है। मणिपुर में पिछले ढाई महीने से जो हो रहा है, वह गुजरात का ही दोहराव है। जिस बात की गोदी मीडिया और राष्ट्रीय समाचारपत्र उपेक्षा कर रहे हैं, वह है, माइती और कुकी के बीच संघर्ष का सांप्रदायिक पक्ष।

माइती समुदाय जो मणिपुर की आबादी का 53 प्रतिशत है और कुकी जो आबादी का केवल 16 प्रतिशत हैं और आदिवासी समुदाय है और अधिकतर ईसाई है, उनके बीच के इस संघर्ष को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक कि कुछ ऐसे तथ्यों को ध्यान में नहीं रखा जाता जो पिछले ढाई महीने में सामने आये हैं और उनको सामने रखने पर उसका पैटर्न कमोबेश वैसा ही नजर आता है जो 2002 के दौरान गुजरात के दंगों में नज़र आया था।

गुजरात के दंगों के दौरान भी बड़ी संख्या में मस्जिदों और मजारों पर हमले किये गये थे और ठीक ऐसा ही मणिपुर में भी देखा जा सकता है जहां इस संघर्ष के दौरान 250 से अधिक चर्च जला दिये गये या नष्ट कर दिये गये। ये चर्च केवल कुकी समुदाय के ही नहीं थे, उन माइती समुदाय के भी थे जो ईसाई हैं जबकि माइती समुदाय का बहुसंख्यक हिंदू है। मणिपुर में 24 प्रतिशत नागा हें जो एक और आदिवासी समुदाय है, लेकिन उन पर हमले नहीं किये जा रहे हैं क्योंकि फ़िलहाल कुकी को ही हमले का निशाना बनाया गया है ताकि कुकी और नागा एक साथ न आये।

यही नहीं कोशिश यह भी की गयी कि कुकी और नागा को आपस में लड़ा दिया जाये यह कहकर कि कुकी तो बाहरी हैं जबकि नागा तो यहीं के मूल निवासी हैं। सच्चाई यह है कि कुकी भी इसी क्षेत्र के मूलवासी हैं और उनका भी इस क्षेत्र पर उतना ही हक है जितना उन सब समुदायों को जो इस इलाके में रहते आये हैं। मौजूदा सत्ता को अभी तक तो कुकी और नागा को लड़ाने में कामयाबी नहीं मिली है, लेकिन भविष्य के बारे में कुछ दावा करना बहुत मुश्किल है।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेंद्र सिंह माइती हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। माइती मैदानी इलाकों में रहते हैं और पूरी योजना के साथ वहां की सरकार द्वारा यह कोशिश की गयी कि माइती को आदिवासी घोषित किया जाये। इसकी वजह यह है कि कुकी, नागा और दूसरे आदिवासी समूह जो अधिकतर पर्वतीय इलाकों में रहते हैं और जिन्हें आदिवासी होने के कारण संविधान प्रदत्त सुरक्षा मिली हुई है कि उनके पर्वतीय क्षेत्र में किसी गैर आदिवासी समुदाय को नहीं बसाया जा सकता। स्पष्ट ही जब भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से इस बात की कोशिश की गयी कि पर्वतीय क्षेत्र में माइती को बसाकर मणिपुर के डेमोग्रेफिक ढांचे को बदला जाये और इसके लिए उच्च न्यायालय के एक आदेश का सहारा लिया गया तो आदिवासी समूहों का चिंतित होना स्वाभाविक था।

यही वजह है कि जब उच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया कि माइती को आदिवासी घोषित करने के लिए राज्य सरकार केंद्र से बातचीत करे तो आसन्न खतरे को जानकर कुकी और नागा समुदायों ने एकजुट होकर राज्य सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के बाद माइती लोगों ने कुकी बस्तियों और लोगों पर हिंसक हमले आरंभ कर दिये। उनके चर्चों पर भी हमले किये गये। इन हमलों को रोकने की कोई कोशिश राज्य सरकार द्वारा नहीं की गयी। माइती युवा आधुनिक हथियारों से लैस होकर सैकड़ों की संख्या में बाइक पर बैठकर हमले कर रहे थे और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था।

ये हमले तीन मई को आरंभ हुए थे और चार मई का एक वीडियो अभी एक दिन पहले ही सामने आया है जिसमें दो कुकी आदिवासी महिलाओं को माइती युवक घेरे हुए हैं। उन्हें निर्वस्त्र कर दिया गया है और उनके शरीर पर भीड़ हाथ फेर कर उन्हें अपमानित कर रही है और बाद में इनमें से 20 साल की युवा लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार भी किया गया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पहले उस लड़की के पिता को भीड़ ने मार दिया और बाद में जब लड़की के भाई ने भी अपनी बहन को बचाने की कोशिश की तो उसकी भी हत्या कर दी गयी। यही नहीं इन दोनों कुकी महिलाओं को माइती युवाओं की भीड़ ने पुलिस के हाथों से छीनकर अपने साथ ले गयी थी।

भीड़ द्वारा औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार का यह पैटर्न बिल्कुल वही है जो गुजरात के दंगों के दौरान देखा गया था। जहां बलात्कार हुए थे, हत्याएं हुईं, यहां तक कि गर्भवती औरतों के पेट चीर दिये गये थे। बिल्किस बानो का मामला हमारे सामने है जिसके साथ बलात्कार किया गया जिसके परिवार के लोगों की हत्या कर दी गयी। यहां तक कि तीन साल की बच्ची तक को नहीं बख्शा गया था। विडंबना यह है कि उन सभी अपराधियों को जेलों से रिहा कर दिया गया है। मणिपुर भारत के उत्तर-पूर्व का एक छोटा सा राज्य है जहां की खबरें इतनी आसानी से दिल्ली तक नहीं पहुंचती।

दो कुकी महिलाओं को नंगा कर अपमानित करने की घटना को दिल्ली तक पहुंचने में दो महीने से ज्यादा लग गये। और यह कहना बड़ा मुश्किल है कि ऐसी कितने भयावह कांड अभी भी पर्दे में छुपे होंगे। लगभग 35 लाख की आबादी वाले इस राज्य में इन ढाई महीने में लगभग डेढ़ सौ लोगों की हत्या हो चुकी है, ढाई सौ से ज्यादा चर्चों में तोड़-फोड़ और आगजनी की जा चुकी है, चार हजार से ज्यादा हथियारों को पुलिस थानों से लुटा गया है और साठ हजार से ज्यादा लोगों को राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कितनी भयावह स्थिति है लेकिन राज्य और केंद्र सरकार कानों में रुई डालकर सोयी हुई है।

मणिपुर और गुजरात में बहुत सी बातों की एकरूपता है। वहां भी उस समय भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और यहां भी भाजपा की सरकार है। उस समय भी यह माना गया था कि मुस्लिम विरोधी नरसंहार के पीछे राज्य सरकार की शह थी और जिसके कारण ही राज्य पुलिस ने दंगाइयों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की थी और यहां की भी भाजपा सरकार ने ढाई महीने बाद भी कुकी समुदाय के विरुद्ध होने वाले हिंसक हमलों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है और न उठाने के लिए तैयार है। उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं और ढाई महीने से वे मणिपुर के बारे में न कुछ बोलने के लिए तैयार थे और न कुछ करने के लिए तैयार है।

अब जाकर 36 सेकेंड़ के लिए उनकी जुबान खुली है। गुजरात नरसंहार के समय भी केंद्र में भाजपा की सरकार थी। लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक रूप से राजधर्म की याद दिलायी थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी कोई सलाह न राज्य सरकार को देने के लिए तैयार है और न मणिपुर की जनता को शांति बनाये रखने की अपील करने के लिए तैयार है। कारण साफ है कि मणिपुर में जो कुछ हो रहा है और जिस तरह कुकी समुदाय को हमले का निशाना बनाया गया है, वह उनके हिंदुत्ववादी एजेंडे का ही विस्तार है।

(जवरीमल्ल पारख सेवानिवृत प्रोफेसर हैं।)

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