- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- हमसे जुड़ें
- /
- स्मृतियां और सपने..
-----------------------
स्मृतियां हमें पीछे ले जाती हैं. गुज़रे दिनों की तरफ और सपने भविष्य की योजनाओं की तरफ खींचते हैं. जबकि वर्तमान से जूझना बहुत मुश्किल है. हमारे साथ वर्तमान ही रहता है जो प्रतिपल भूत में तब्दील होता जा रहा है. मैं बहुत कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूं, अपने वर्तमान को समेटते हुए. कभी-कभी लगता है कि उसे जितना ही समझने की कोशिश करता हूं, वह उतना ही फिसल कर एक कदम आगे खिसक जाता है. अब तो वर्तमान को भी समझना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.
सबके साथ अपना-अपना वर्तमान है. वह चाहे जैसा हो. प्रत्येक व्यक्ति उसे जानने की कोशिश में है. सच यह है कि हमारा वर्तमान भी दूसरों के हाथ में गिरवी पड़ा है. दूसरे हमारे भाग्य का फैसला करते हैं. मसलन आज की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियां मिलकर ही हमारे वर्तमान की रूपरेखा बुनती हैं. अकेला एक व्यक्ति इन परिस्थितियों से लड़ नहीं सकता है. लेकिन जब वह एक समूह में संगठित होता है तो यह लड़ाई आसान हो जाती है.
हमारे छोटे-छोटे स्वार्थ हमें संगठित होने से रोकते हैं. हमारे अहम की अकड़ भी आड़े आती है और यही कारण है कि व्यक्ति धीरे-धीरे टुकड़ों में टूटता रहता है. वह अपने अंदर घुटता जाता है. एक ऐसी घुटन जिसे किसी से कह भी नहीं सकता. फिर तो वह किसी लड़ाई के काबिल रह ही नहीं जाता है. वह अपनी स्मृतियों में खो जाता है या फिर भविष्य के सपने बुनने लगता है.
जीवन में सपने देखना जरूरी है क्योंकि उनके मर जाने से तो जो भी थोड़ा उत्साह बचा है, वे भी दम तोड़ने लगते हैं. मुझे ऐसा ही लगता है. संभव है आपकी सोच कुछ अलग हो. सबकी अपनी-अपनी सोच और रास्ते हैं और उन्हीं पगडंडियों पर व्यक्ति चलता रहता है. यह यात्रा तब तक चलती है, जब तक मौत आकर दरवाजे पर दस्तक न देने लगे. मौत अंतिम सच है. शायद..! हम निरंतर उसी दिशा में एक-एक कदम बढ़ाते जा रहे हैं. फिर भी.. जिंदगी में सपने देखते रहिए. शायद यों ही चलते-चलते कोई सपना मिल ही जाए.
~ सुरेश प्रताप
( फेसबुक वॉल से )