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देश के परिवहन मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता नितिन गड़करी ने राजनीति के गिरते गिरते आखिरी पायदान पर पहुंच जाने से खिन्न होकर बयान दिया है कि "मैं चाहता हूं सियासत छोड़ दूं, महात्मा गांधी के दौर में सियासत समाज और विकास के लिए होती थी और वर्तमान में सिर्फ सत्ता प्राप्ति के लिए होती है।" नितिन गड़करी के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए कि आखिर उन्होंने अपने ही घर के अंधेरे को साफ करने की कोशिश की है क्योंकि वर्तमान राजनीति की तुलना सीधे महात्मा गांधी के दौर की राजनीति से की और बीच का एक लंबा राजनीतिक काल छोड़ दिया।
नीतिन गड़करी शुद्ध आरएसएस पृष्ठभूमि से संबंध रखते हैं और भाजपा में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की रिवायतों वाली राजनीति करते हैं। और यही वजह है कि नितिन गड़करी का केन्द्रीय मंत्री होने के कारण भी दम घुट रहा है क्योंकि भाजपा सरकारें जिस राजनीति पर चल रही हैं उससे किसी का भी दम घुटने लगेगा अगर उसने सिद्धांतों की राजनीति की हो और भाजपा के वह नेता जो पुरानी परंपराओं को साथ लेकर चलना चाहते हैं इस राजनीति के साथ नहीं चल सकते और यही बात नितिन गड़करी ने जाहिर की है। सत्ताधारी भाजपा सरकारी ताकत के बल पर बाहर से बहुत ज्यादा मजबूत नज़र आती है परंतु नितिन गड़करी जैसी बेचैनी भाजपा के बहुत सारे नेताओं में पाई जाती है जो गाहे बगाहे सामने आ जाती है।
नितिन गड़करी के बयान में एक सवाल सबसे बड़ा यह है कि वह वर्तमान राजनीतिक दौर को कब से शुरू हुआ मानते हैंऔर महात्मा गांधी के राजनीतिक दौर की समाप्ति को कब तक देखते हैं। खुद महात्मा गांधी ने तो सत्ताधारी राजनीति की ही नहीं क्योंकि अंग्रेजों के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने के बाद मिली आजादी के एक साल बाद ही महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी जिसमें खुद आरएसएस की संलिप्तता की बातें कही जाती हैं और महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोड़से को आरएसएस से संबंधित बताया जाता है। आजादी के बाद देश पर लंबे समय तक सत्तासीन रहने वाली कांग्रेस खुद को महात्मा गांधी की राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करती रही है लेकिन संघ के लोग महात्मा गांधी को आदर्श नहीं मानने की बातें करते रहे हैं।
अब नितिन गड़करी जैसे संघ के मजबूत कमांडर द्वारा महात्मा गांधी की राजनीति को आदर्श राजनीति कहना खुद एक अचंभित करने वाली बात है। परिवहन मंत्री के इस बयान से यह तो साबित है कि महात्मा गांधी की शख्सियत आज भी इतनी ही प्रासंगिक है। अब सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर नितिन गड़करी को वर्तमान राजनीत को सिर्फ सत्ता प्राप्ति की राजनीति क्यों लग रही है। इसका जवाब तो खुद भाजपा नेतृत्व ही दे सकता है कि आखिर क्या मोदी सरकार का देश को विश्वगुरु बनाने तथा पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने बयानों से उनके मंत्री ही संतुष्ट नहीं हैं। आठ वर्षों से चल रही सरकार क्या सिर्फ सत्ता प्राप्त का तंत्र बन चुकी है। गड़करी को यह बात भी जनता को खुलकर बतानी चाहिए थी कि सत्ता प्राप्त की राजनीति की शुरुआत कब से हुई और वर्तमान सरकार की इस बारे में क्या नीति है जिसमें वह खुद मंत्री हैं और हर गतिविधि को करीब से देखते होंगे। उन्हें यह भी साफ शब्दों में बताना चाहिए कि महात्मा गांधी की राजनीति का दौर कब तक रहा है तभी आम आदमी अनुमान लगा पाएगा कि वर्तमान राजनीति और पुरानी राजनीति के तौर तरीकों में क्या अंतर था। या गड़करी का इशारा देश के ख़ज़ाने को उद्योगपतियों को लुटाने की तरफ है।
भारत सरकार के पूर्व सचिव और लोग पार्टी अध्यक्ष विजय शंकर पाण्डेय का भी मानना है कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा कोई भी राजनीतिक दल मोदी और शाह को हरा नहीं सकता बल्कि महात्मा गांधी का सत्याग्रह ही इन्हें पराजित करने का सबसे बड़ा हथियार है। विजय शंकर पाण्डेय की इस बात को नितिन गड़करी के बयान से बल मिलता है क्योंकि गड़करी तो खुद मंत्री हैं। विजय शंकर पाण्डेय के अनुसार वर्तमान सरकार सिर्फ सत्य और ईमानदारी से हार सकती है क्योंकि दोनों हथियार उनके पास बिल्कुल नहीं हैं। हो सकता है कि नितिन गड़करी पार्टी या सरकार के दबाव में अपने बयान पर सफाई देते नज़र आएं और भाजपा लीपापोती कर बयान का रुख बदले लेकिन जनता को इस पर गौर करना चाहिए कि आखिर केंद्र की ईमानदार सरकार का बड़ा मंत्री वर्तमान राजनीति को सत्ता प्राप्ति कहने पर क्यों मजबूर हुआ, जिस दिन जनता यह समझ गई तो उसके और देश के वाकई अच्छे दिन आ जाएंगे। और अगर नहीं समझना चाहती तो गड़करी तो सिर्फ राजनीति छोड़ कर काम चला लेंगे लेकिन जनता को तो चैन सुख आराम सब कुछ छोड़ना पड़ सकता है।