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मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग के वोटर दरकिनार कर, ब्राह्मणों को क्यों साधने में लगी राजनीतिक पार्टीयां
हमारे धार्मिक शास्त्रों ने ब्राह्मण को सर्वोच्च स्थिति प्रदान की है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सात्विक गुणों की प्रधानता के कारण ब्राह्मण अपने सद्ज्ञान से सारे समाज को उत्कृष्ट बनाने का प्रयत्न करता है। लेकिन उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को लेकर राजनीतिक सियासत अपने चरम की ओर आगे बढ़ रहा है क्यों की चुनाव आते ही हर पार्टीयां यूपी में ब्राह्मणों को साधने में जुट जाती है। यूपी में ज्यादा मुस्लिम और दलित वोटर हैं और सबसे ज्यादा संख्या में पिछड़े वर्ग के वोटर हैं।फिर भी सभी पार्टियां एकजुट होकर अलग-अलग तरीकों से ब्राह्मणों को साधने में जुट जाती हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यही उठता है जब ब्राह्मण वोटर संख्या में बेहद कम है तो तो सभी पार्टियां ब्राह्मणों पर दांव क्यों लगाना चाहती हैं।
क्या वास्तव में दलित, मुस्लिम और पिछड़ों को दरकिनार कर ब्राह्मण वोटर इतनी हैसियत रखता है कि उत्तर प्रदेश में सरकार बना दे और बिगाड़ दे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दरअसल ब्राह्मणों का वोट प्रतिशत कम जरूर है लेकिन वह जो माहौल बनाते हैं वह चुनावी रणक्षेत्र में कई गुना होता है। बहुजन समाज पार्टी जहां ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन शुरू कर चुकी है। वहीं समाजवादी पार्टी भी अपने ब्राह्मण नेताओं के साथ प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में जुट गई है। भाजपा अलग से ब्राह्मण चेहरों पर दांव लगा रही है तो कांग्रेस अलग तरह से अंदरखाने ब्राह्मण चेहरे तलाश कर रही है।
बसपा प्रमुख मायावती ने ब्राह्मणों को साधने के लिए अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन के नाम पर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत कर दी। इस सम्मेलन में शिरकत करने वाले बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा अब जहां जाते हैं वे न सिर्फ ब्राह्मणों की बात करते हैं बल्कि उनके मुद्दों को भी आगे रखते हैं।
ऐसे में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी बसपा की तर्ज पर ब्राह्मणों को साधने के लिए प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत की है। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार ने जब मंत्रिमंडल विस्तार किया तो भी ब्राह्मण चेहरे को ही बड़ी शिद्दत से तलाशा और हाल फिलहाल कई बड़े नेताओं की ज्वाइनिंग भी ब्राह्मण चेहरों के नाम पर पार्टी में कराई गई। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी खुद को सत्ता में वापस लाने के लिए ब्राह्मण चेहरों की तलाश कर रही है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले का कहना है कि सभी पार्टियां ब्राह्मणों पर दांव लगाना चाहती हैं। जबकि हकीकत में ब्राह्मणों वोट मुस्लिम, दलित और पिछड़े वर्ग से कम है। लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के प्रमुख और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर मुकुल श्रीवास्तव कहते हैं कि यह सच है कि ब्राह्मणों का वोट प्रतिशत कम है लेकिन राजनीतिक समीकरण और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साधने के लिए ब्राह्मण एक मजबूत सीढ़ी के तौर पर उत्तर प्रदेश में बीते कई दशकों की राजनीति में राजनैतिक पार्टियों द्वारा आगे रखा जाता रहा है।
ब्राह्मणों को लेकर हमेशा से यह माना जाता रहा है कि वह माहौल बनाकर अपने साथ अन्य जाति-बिरादरी के लोगों का भी वोट प्रभावित कर लेते हैं। यही वजह है कि सभी पार्टियां ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ना चाहती हैं। हालांकि जातिगत जनगणना नहीं हुई है बावजूद इसके सामान्यता यह माना जाता है कि तकरीबन 12 से 13 फ़ीसदी ब्राह्मण वोटर है। जबकि 18 से 19 फ़ीसदी के बीच मुस्लिम वोटर उत्तर प्रदेश में है। प्रदेश में तकरीबन दलितों का वोट प्रतिशत 23 फीसदी है वहीं 47 फीसदी के करीब पिछड़े वर्ग का वोटर अपनी बड़ी पैठ रखता है।