Archived

हाशिये पर मुस्लिम स्त्रियां (एक)

हाशिये पर मुस्लिम स्त्रियां (एक)
x
Muslim women on marginalization (one)
किसी भी समाज में नई चेतना प्रस्फुटित होने पर हलचल स्वाभाविक तौर पर होती ही है . अरब के समाज में मुहम्मद साहब ने जब इस्लाम का प्रस्ताव रखा था ,तब उनका बहुत विरोध हुआ था .बहुत मुसीबतें झेली थीं उन्होंने . उन्हें मक्का से मदीना शिफ्ट यूँ ही नहीं करना पड़ा था . जितने भी समाज सुधारक या पैगम्बर हुए उन्होंने विरोध और तकलीफें झेलीं .

हम दुनिया भर की बात करेंगे ,तो करते ही रह जायेंगे .क्योंकि तब हमें क्राइस्ट के सूली चढ़ने से लेकर लिंकन और गाँधी के गोली खाने तक की घटनाएं सुनानी पड़ेंगी . इसलिए अपनी जमीन भारत पर लौटते हैं

उन्नीसवीं सदी में राजाराममोहन राय ने जब सतीप्रथा को ख़त्म करने का प्रस्ताव लाया तब कितना नहीं विरोध हुआ . सती प्रथा हिन्दुओं की ऊँची जातियों में प्रचलित थी . हज़ारों स्त्रियां मृत पति के साथ जिन्दा जला दी जाती थीं . उदहारण केलिए एक आंकड़े के अनुसार 1815 से 1824 तक की नौ साल की अवधि में केवल सात शहरों (कोलकाता ,कटक ,ढाका ,मुर्शिदाबाद ,पाटण,बरेली और बरैन ) में छह हज़ार से अधिक स्त्रियां सती हुई थीं . यह सब जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं . राजा राममोहन राय ने जब इसके विरोध में आवाज उठाई ,तब सबसे पहले उनकी माँ ने उनका विरोध किया . वह घर से बाहर हो गए ,या कर दिए गए . उन्होंने धर्मशास्त्रों में से अपने समर्थन केलिए सूत्र निकाले ,क्योंकि उन्हें जिस रूढ़ तबके को समझाना था ,वे शास्त्र की ही दुहाई देते थे . लेकिन उन्हें लगा कि इतने भर से काम नहीं चलेगा . उन्होंने सरकार पर दबाव बनाया कि वह इस अमानवीय प्रथा के खिलाफ अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे अर्थात कानून बनाये और उसे सख्ती से लागू करे . विलियम बेंटिक ,जो तब गवर्नर जनरल थे ,इससे सहमत थे ,क्योंकि वह ब्रिटेन में भी सामाजिक सुधारों के सवाल से जुड़े थे .उनके प्रयास से कानून बना .

राजा राममोहन राय की आज भले ही इज़्ज़त हो ,उनके समय में उनकी यही इज़्ज़त थी कि जब वह लंदन में मरे ,तब बहुत दिनों बाद कोलकाता के एक अख़बार में छोटा सा समाचार छपा कि एक दुष्टात्मा की मौत हो गई .बंगाली भद्र समाज उनकी मौत पर इत्मीनान महसूस कर रहा था . ऐसा ही विरोध ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने झेला था ,विधवा विवाह के सवाल पर .महाराष्ट्र में जोतिबा फुले और पंडिता रमा बाई ने जो कष्ट झेले ,विरोध बर्दास्त किये उसे बयां करने केलिए कई ग्रन्थ लिखने होंगे . बीसवीं सदी में ही आंबेडकर साहब जब हिन्दू कोड बिल ला रहे थे ,तब जो विरोध और अपमान झेला था ,उसकी तरफ एक नज़र जरा देखिये . विरोध तो होंगे ,लेकिन क्या इन्साफ की लड़ाई को इस डर से छोड़ दिया जाना चाहिए ? ...... ( जारी )
Next Story