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- दशरथ मांझी : अतीत की...
100-200 वर्ष तो बहुत होते हैं! तथ्यों को तो आप 15-20 वर्षों में ही तोड़ मरोड़ कर नई कहानी बना देते हैं।
मैं दशरथ मांझी उर्फ़ दशरथ दास का ही उदहारण देना चाहता हूं। दशरथ जी से मैं पहली बार 1988 की बरसात के आखिरी दिनों में मिला था। उस वक़्त वे दशरथ मांझी थे। बाद के दिनों में वे कबीरपंथी हो गए थे। वे चाहते थे, लोग उन्हें दशरथ दास कहें। उन्होंने एक टोपी भी बनवा रखी थी, जिस पर बड़े अक्षरों में 'दशरथ दास' लिखा होता था। लेकिन लोगों ने उन्हें दशरथ मांझी ही बना कर रखा। यहां तक कि जितनी भी सरकारी योजनाएं हैं, वे दशरथ मांझी के नाम से ही हैं।
उन्होंने पहाड़ काटने की शुरुआत पत्नी की मौत से विचलित हो नहीं किया था बल्कि उस पहाड़ी संकरे रास्ते में मामूली रूप से जख्मी हो जाने से शुरू किया था। उनकी पत्नी की मौत इसके करीब सात वर्षों बाद हुई थी। जबकि लोगों ने, मीडिया ने - यहां तक कि केतन मेहता ने अपनी फिल्म 'मांझी - द माउंटेन मैन' में भी यही दिखलाया कि पत्नी की मौत से विचलित हो दशरथ मांझी ने पहाड़ काटने की शुरुआत की थी।
और सबसे बड़ी आपत्ति मुझे इस बात से है कि लोगों ने इसे महज प्रेम कहानी बना कर रख दिया है। वस्तुतः यह प्रेम कहानी है ही नहीं! दशरथ जी के प्रेम का दायरा बहुत विस्तृत था। यह जरूर था कि उन्होंने पहाड़ काटने की शुरुआत पत्नी के जख्मी होने से किया था। मैंने उनसे पूछा था कि आपकी पत्नी नहीं रहीं तो आपने पहाड़ क्यों काटना जारी रखा! तो उनका उत्तर था, 'हां, मेरी पत्नी जब मरीं, तो मैं बहुत दुखी हुआ था। मुझे लगा, जब वे ही नहीं रहीं, तो पहाड़ क्यों काटूं? लेकिन फिर मुझे लगा मेरी पत्नी नहीं रही तो क्या हुआ? रास्ते के बन जाने से कितने लोगों की पत्नियों को फायदा होगा! हजारों-लाखों लोग इस रास्ते से आयेंगे जाएंगे।'
तो ऐसे दशरथ जी की कहानी को आप सिर्फ प्रेम कहानी क्यों बनाकर रखना कहते हैं? उनके प्रेम की परिधि में पूरा मानव समुदाय था।
- अरूण सिंह