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जूलियस सीजर के रहस्य

Desk Editor
26 Sept 2021 4:34 PM IST
जूलियस सीजर के रहस्य
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जूलियस सीज़र कंगाल होकर सड़क पर आ गए। लेकिन, उन्होंने अपने फूफा मारियस को आदर्श बना कर प्रतिशोध नहीं लिया

मनीष जहां

जूलियस सीज़र के बचपन पर कुछ प्रामाणिक मिलना कठिन है। वजह यह कि जूलियस सीज़र पर अधिकांश बातें स्वयं जूलियस सीज़र ने लिखी। बचपन पर कम लिखा, मगर यह बात बार-बार कही कि वह साक्षात वीनस देवी के ही रक्त-वंशज हैं। रोमन इतिहास में वह पहले चलते-फिरते पुरुष हुए, जिनको देवता का दर्जा दिया गया और पूजा हुई। नेपोलियन तो स्वयं को उनका अवतार मानते ही थे। कुछ वर्ष पूर्व एक उत्साही व्यक्ति ने व्लादिमीर पूतिन की तस्वीर को हू-ब-हू जूलियस सीज़र से मिला कर उनका अवतार कहा। अव्वल यह कि उसी ने डोनाल्ड ट्रंप को रोमन सम्राट नीरो का अवतार कहा!

अफ़वाहों का मजा लें, और मुद्दे पर लौटने से पहले एक और शिगूफ़ा। कहा जाता है कि सीज़र या उनके किसी पूर्वज का जन्म पेट काट कर हुआ। कुछ लोग कहते हैं कि सीजेरियन शब्द काटने (लातिन/लैटिन- caedere) से जन्मा है, मगर एक बड़ा तबका इसे जूलियस सीज़र से जोड़ता है। इस एक शब्द से पूरी दुनिया जुड़ जाती है। अनगिनत लोगों से जब पूछा जाता है कि कैसे जन्मे, तो वे जाने-अनजाने कह जाते हैं- सीज़ेरियन। इसका अर्थ बनता है कि वे ऐसे ही पैदा हुए, जैसे जूलियस सीज़र।

हम एक उत्पाद को अपने ब्रांड से इस कदर जोड़ देते हैं कि किसी भी लसलसे गोंद को फेविकोल कह देते हैं। सीज़र के पिता और चाचा, दोनों ही सांसद थे। उनका उपनाम भी सीज़र था, तो क्या पूरा खानदान पेट काट कर ही पैदा हो रहा था? ऐसी बेतुकी बातों को ख़ारिज कर देना चाहिए।

जूलियस सीज़र की पैदाइश ईसा से एक सदी पूर्व जिस महीने में हुई, उस महीने के नाम हमेशा के लिए पड़ गया- जुलाई (जूलियस से)। जुलाई में जो सीजेरियन तरीके से पैदा हुए, उनके जीवन में तो दोनों नाम अकारण ही आ गए।

खैर, कहानी में आगे बढ़ते हैं। सीज़र के फूफा मारियस एक काबिल सेनापति और प्रधानमंत्री (कॉन्सल) थे, तो जूलियस का बचपन वैभव में बीता होगा। लातिन और ग्रीक में अच्छी शिक्षा हुई होगी। उनकी भाषा पर पकड़ और धर्म के ज्ञान की तारीफ़ रोमन विद्वान सिसरो ने भी की है (जो अन्यथा उनके आलोचक/शत्रु रहे)। उन दिनों पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ युद्ध-ज्ञान भी दिया जाता, और सीज़र के एक कुशल योद्धा होने पर कोई शंका नहीं। यह बात आगे और स्पष्ट होगी।

हमने यह पढ़ा कि सुल्ला किस तरह मारियस को धकिया कर रोम के प्रधानमंत्री बने। मारियस और उनके समर्थकों को रोम छोड़ कर भागना पड़ा। पहली बार जब सीज़र का परिवार भागा होगा, उस समय जूलियस महज नौ वर्ष के थे। जब मारियस ने लौट कर वापस गद्दी पायी, उस समय जूलियस तेरह वर्ष के थे। तीन साल बाद उनके पिता की मृत्यु हो गयी।

युवा जूलियस पर परिवार की ज़िम्मेदारी देख उन्हें जूपिटर मंदिर का पुरोहित बना दिया गया, और उनके सहयोगी प्रधानमंत्री (कॉन्सल) सिन्ना ने अपनी बेटी उनसे ब्याह दी।

लेकिन, जूलियस को यूँ पुरोहित बन कर मंदिर में जीवन नहीं काटना था। उन्हें रोम की गद्दी तक पहुँचना था, जो पुरोहित के लिए मुमकिन ही नहीं था। रोम में प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने के लिए कई प्रशासनिक सीढ़ियाँ पार करनी होती, जिसे 'कर्सस ऑनोरम' (cursus honorum) कहा जाता। उसमें बयालीस वर्ष की न्यूनतम आयु के साथ सैन्य कौशल और विजय एक मुख्य अर्हता बन गयी थी। जबकि एक पुरोहित को सेना तो क्या, घोड़ा छूने की भी मनाही थी। कानूनन पुरोहित अपने बिस्तर के बाहर तीन रात और रोम के बाहर एक रात भी नहीं बिता सकता था।

जल्द ही रास्ता निकल आया। हालाँकि यह रास्ता जूलियस सीज़र के लिए काँटों भरा रास्ता था।

मारियस की मृत्यु हो गयी और उनके शत्रु सुल्ला रोम के तानाशाह बन बैठे। उन्होंने उनके सभी संबंधियों को मौत के घाट उतारना शुरू किया। जूलियस सीज़र चूँकि पुरोहित थे, तो उन पर गाज गिराना कठिन था। सुल्ला के समर्थक भी नियमित मंदिर जाते थे, तो उनकी श्रद्धा जुड़ी थी।

सुल्ला ने उनको संदेश भिजवाया, "जूलियस! आपके फूफा मारियस और उनके सहयोगी सिन्ना का परिवार हमारे राज्य के ख़िलाफ़ षडयंत्र में शामिल हैं। आप अपनी पत्नी को तलाक देकर उनसे संबंध तोड़ लें।"

"क्षमा चाहता हूँ, लेकिन मैं यह संबंध अकारण नहीं तोड़ सकता। मैं यह वचन देता हूँ कि मैं और मेरी पत्नी किसी राजद्रोह में सम्मिलित नहीं होंगे।"

"जब आपके पास शक्ति और संपत्ति ही नहीं होगी, आप राजद्रोह कर भी नहीं पाएँगे।", इस संदेश के साथ सुल्ला ने उनकी पुरोहिती छीन कर सारी पैतृक संपत्ति जब्त कर ली।

जूलियस सीज़र कंगाल होकर सड़क पर आ गए। लेकिन, उन्होंने अपने फूफा मारियस को आदर्श बना कर प्रतिशोध नहीं लिया। इसके उलट उन्होंने सुल्ला को ही अपना आदर्श बनाया। जिस तरह क्रैसस और पोम्पे की मदद से सुल्ला तानाशाह बने, सीज़र भी इन दो काबिल हाथों की मदद से वहीं पहुँचना चाहते थे।

ईसा से अस्सी वर्ष पूर्व सुल्ला ने एक दिन अपनी तानाशाही स्वेच्छा से त्याग दी। गद्दी से उतरते ही सिनेट में सुल्ला पर गालियों की बौछार हुई। कभी खूँखार निर्दयी रहे सुल्ला सर झुकाए अपशब्द सुनते रहे, और अंत में बस इतना कहा,

"आप लोगों ने इतना तो आज तय कर दिया कि मेरे बाद अगर कोई तानाशाह बना, तो वह भूल कर भी अपनी गद्दी नहीं त्यागेगा"


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