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- उग्र हिंदुत्व को...
उग्र हिंदुत्व को भड़काकर सत्ता हासिल कर वे क्या करेंगे मुसलमानों के साथ?
बाल ठाकरे का जब देश की राजनीति में उदय हुआ तो उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर भी उसी उग्र हिन्दुत्व की नींव बड़ी सफलतापूर्वक रख दी , जिसे वीर सावरकर, गोडसे और आरएसएस चाह कर राजनीति में नहीं शामिल कर पा रहे थे ...ठाकरे ने भड़कीले बयान , उग्र और बेहद आपत्तिजनक नारों के साथ उग्र युवाओं का वह संगठन यानी कि शिव सेना तैयार किया , जिसकी लीक पर चलकर फिर भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी और उनके बाद हिंदुत्व के मौजूदा महानायक नरेंद्र मोदी का उदय हुआ .
ठाकरे मार्का हिंदुत्व, जिसके पैरोकार आजकल मोदी भी हैं, उसकी खास बात यह है कि यह देशभर के मुसलमानों से हिन्दुओं को नफरत करना और इसलिए उनके खिलाफ उग्र होना तो सिखाता है मगर उसके बाद हिन्दुओं को मुसलमानों के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए ...या शिव सेना अथवा भाजपा जब इस ठाकरे मार्का हिंदुत्व के रथ पर सवार होकर सत्ता में आएगी तो वे क्या करेंगे मुसलमानों के साथ ...इसका कोई जवाब ठाकरे के पास कभी नहीं था ....और संभव है कि मोदी के पास भी नहीं ही होगा.
ठाकरे के चलते देशभर में जब उग्र हिंदुत्व के नारे मसलन गर्व से कहो हम हिन्दू हैं ...3 नहीं अब 30 हजार, अब न रहेगी कोई मजार आदि गूंजने लगे तो मीडिया ने अक्सर ठाकरे से यह जानना चाहा कि वह अगर देश के तानाशाह बने या प्रधानमंत्री बने तो देश के 30 करोड़ मुसलमानों का क्या करेंगे ? इस पर खीझ कर ठाकरे ने एक बार कह दिया कि मैं उन्हें बंगाल की खाड़ी में फेंक दूंगा ...जाहिर है , उनके नारों की तरह उनका यह अजीबोगरीब बयान हिन्दुओं की उग्रता को दर्शाने और जोश दिलाने के लिए तो मुफीद है मगर उनकी ही तरह कहीं किसी निष्कर्ष पर ले नहीं जाता ...क्योंकि 30 करोड़ मुसलमान देश की वह आबादी है , जिसे यूं नफरत की नजर से देखने के लिए हिन्दुओं को मजबूर करने वाले नेता खुद भी इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि इतनी बड़ी इस आबादी की ताकत क्या होती है ...
बहरहाल, ठाकरे तो देश में उग्र हिन्दुत्व की अलख जगाकर स्वर्गलोक चले गए मगर उनकी लीक पर चल रहे लोग और मोदी जैसे मौजूदा कट्टर हिन्दू नेता आज भी नहीं जानते कि देश के 30 करोड़ मुसलमान भले ही उनकी नफरत के केंद्र में हों मगर देश की इतनी बड़ी आबादी से नफ़रत करके अंततः उन्हें हासिल क्या होना है ... कैसे जान पाएंगे, जब देश को उग्र नारों और नफरत के खेल में उलझाने की शुरुआत करने वाले ठाकरे और मोदी भी खुद नहीं जानते कि आखिर इस नफरत को पनपाने के बाद अगला कदम क्या उठाना है.
लेखक अश्वनी कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनके निजी विचार है.