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- राहुल ही नहीं...
- शकील अख्तर
चन्नी को बनाना राहुल का काम था अब उसे सही साबित करना दलितों का! सिर्फ राहुल के करने से कुछ नहीं होगा खुद दलितों को आगे आकर अपने सही नेताओं की पहचान करना होगी। बनाया तो इन्दिरा गांधी ने भी था पहले बिहार में देश का पहला दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान, फिर राजस्थान में जगन्नाथ पहाड़िया। भोला पासवान को तीन बार बनाया। मगर बिहार के दलित दूसरे पासवान, रामविलास के साथ चले गए जो दल बदल के रोज नए रिकार्ड बनाते हुए दलित राजनीति को अपने बेटे और भाइयों तक लाकर छोड़ गए। जो अब राजनीतिक विरासत, जो कुछ बची नहीं है और संपत्ति को लेकर जो बहुत ज्यादा है, आपस में लड़ रहे हैं। जातियों में बंटी भारतीय राजनीति में हिस्सेदारी तो सब चाहते हैं, मगर अपने समुदाय के सही नेताओं का साथ देने, उनके उदार राजनीतिक दल और जोखिम उठाकर साहसिक फैसला लेने वाले उसके नेता को भूल जाते हैं।
कांग्रेस ने शुरू से समावेशी राजनीति की। सबको साथ लेकर चलने की। इसका प्रमाण सबसे बड़ा यही है कि हर समुदाय को उससे शिकायत रही कि वह दूसरे को ज्यादा तरजीह दे रही है। परिवार में भी यही होता है। अगर सबको समान दृष्टि से देखा जा रहा है तो सब नाराज रहते हैं। परिवार, राजनीति हर जगह सब चाहते हैं कि उसे थोड़ा अतिरिक्त अटेंशन, विशेषाधिकार मिले। कांग्रेस ने वैसे तो सबको मगर जमीन पर जो उसका मूल जनाधार दलित, ब्राह्मण और मुसलमान था उन्हें राजनीतिक हिस्सेदारी देने में कभी कोताही नहीं की। जगजीवन राम को बड़ा नेता बनने के लिए कांग्रेस ने ही अनुकूल अवसर उपलब्ध करवाए। उनके बाद इतने बड़े कद का दलित नेता और कौन हुआ? इसी तरह उनकी बेटी मीरा कुमार को देने में भी कांग्रेस ने कोई कसर नहीं रखी। यह अलग बात है कि दोनों ने कांग्रेस को उसके मुसीबत के समय में धोखा दिया।
चरणजीत सिंह चन्नी ने सही कहा कि राहुल क्रान्तिकारी नेता हैं। पूरे परिवार में यह गुण या कांग्रेस के ही कुछ नेता इसे अवगुण कहते हैं, है। लाख राजनीतिक मजबूरियां हों मगर जब कोई क्रान्तिकारी विचार आता है तो परिवार इसे अपनाने से खुद को रोक नहीं पाता। इनमें सबसे महान तो सोनिया गांधी हैं, कभी इतिहास उनके साथ पूरा न्याय करेगा जो बिल्कुल भिन्न परिवेश से भारत आई। भारतीयता, यहां के परंपराए, संस्कृति और इन सबसे बढ़कर राजनीति का बीहड़! सोनिया जी ने सब सीखा। देश की बातें और नेहरू गांधी परिवार की प्रगतिशीलता। तो इन सोनिया ने कितना बड़ा क्रान्तिकारी कदम उठाया था। पार्टी के कई बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद। सोनिया ने कहा था मुझे मालूम है कि हमारी पार्टी के कुछ लोग इसके विरोध में हैं मगर यह महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है। महिला बिल का भारी विरोध हुआ था। पूरे देश में महिला विरोधी माहौल खड़ा कर दिया गया था। भाजपा को राज्यसभा में तो समर्थन करना पड़ा क्योंकि वह उनके बिना समर्थन के भी पास हो जाता मगर लोकसभा में करने से मना कर दिया।
और केवल महिला बिल नहीं। किसान कर्ज माफी, मनरेगा जैसे गांव और ग्रामीणों की जिन्दगी बदल देने वाले कार्यक्रम भी सोनिया ही लेकर आईं थीं। इसी तरह राजीव गांधी का पंचायती राज जिसमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया गया। बड़ा क्रान्तिकारी कदम था। लेकिन इन सबसे उपर अपनी सरकार दांव पर लगाकर इन्दिरा गांधी का बैंकों का राष्ट्रीयकरण और राजाओं का प्रिविपर्स और प्रिवलेज खत्म करने का फैसला था।
जिसे मीडिया वंशवाद कहती है वह वंशवाद नहीं है। मीडिया को संघ प्रमुख मोहन भागवत के डीएनए का मतलब समझना चाहिए। ये डीएनए है। जिसे देसी भाषा में कहा जाता है कि गरीब की भलाई करना इस परिवार के स्वभाव में है। खून में समाई क्रान्तिकारिता। नेहरू ने अंग्रेजों की जेल में रहकर शुरू की थी।
आज कांग्रेस हाशिए पर आ गई। कमजोर हो गई। मगर वह क्रान्तिकारिता नहीं गई। जो कोई नहीं करता वही ये लोग करते हैं। हाथरस कि दलित लड़की सामूहिक बलात्कार के बाद मर गई। उसका शव परिवार को दिए बिना रातों रात जला दिया गया। आज उसके घर के बाहर गदंगी का ढेर लगा दिया गया है। पीड़ित परिवार के घर का बाहर लगी सीआरपी का कहना है कि वहां इतनी बदबू है कि खड़ा भी नहीं रहा जा सकता।
आखिरी बार इस परिवार से मिलने राहुल और प्रियंका गए थे। उसके बाद कोई नहीं गया। मायावती जो खुद को बार बार दलित की बेटी कहती हैं एक बार भी नहीं गईं। अखिलेश यादव भी नहीं गए। प्रधानमंत्री मोदी ने इसी यूपी में दलितों के पांव धोए थे। मगर बलात्कार के बाद मर गई दलित लड़की के परिवार की सुध नहीं ली। मुख्यमंत्री योगी ने पंजाब के पहले दलित सीएम बने चन्नी के यूपी चुनाव पर पड़ने वाले असर को देखकर दलितों को खूब याद किया। मगर इस दलित लड़की के परिवार को भूले ही रहे।
सबसे अधिक समय तक दलित मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में ही रही हैं। मगर आज वहां एक पीड़ित परिवार की हालत क्या है यह मद्रास के एक अंग्रेजी अखबार ने देखा। जिसके बाद दुनिया को मालूम चला कि न्याय का तो अभी कुछ पता नहीं है लेकिन पीड़ित परिवार की परेशानियां बढ़ती जा रही है।
मायावती ने परिवार की कोई खोज खबर नहीं रखी। आज तो सरकार में भी उनकी चलती है। छापों के डर से वे पूरी तरह मुक्त हैं। सब साधन भी हैं। दलित परिवार की सुरक्षा और सम्मान की सारी व्यवस्थाएं करवा सकती हैं। मगर उन्हें इससे कोई मतलब नहीं दिखा।
चुनाव आ गए। अब तक हर चुनाव दलितों के सहारे जीतने वाली मायावती इस बार ब्राह्मणों के पीछे दौड़ रहीं थीं। हाथ में त्रिशूल ले लिया था। दलित को भूल गईं थीं। मगर राहुल ने पंजाब में दलित सीएम बनाकर धमाका क्या किया उन सहित सारे दलों में हलचल मच गई। इस समय चन्नी देश के एक मात्र दलित सीएम हैं। सोचिए जहां देश में कुल आबादी के 20 से 25 प्रतिशत दलित हों। सबसे ज्यादा दलित विमर्श होता हो वहां केवल एक दलित सीएम है।
दलित सीएम बनाने की कोशिश राहुल ने इससे पहले भी की। हरियाणा में। वहां अशोक चौधरी और कुमारी शैलजा को आगे बढ़ाने की बहुत कोशिश की। मगर हरियाणा में भुपेन्द्र हुड्डा इतने ताकतवर हो गए थे कि चौधरी को कई बार लहूलुहान तक कर दिया गया। कांग्रेस की कमेटियां बैठीं मगर कुछ नहीं हुआ। वहां तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कहने के बावजूद राज्यसभा चुनाव में मशहूर वकील आर के आनंद को हरवा दिया जाता है और जी टीवी के मालिक भाजपा के सुभाष चन्द्रा को जीता दिया जाता है।
मगर पंजाब में हिम्मत दिखाकर राहुल ने बाजी पलट दी है। दूसरी पार्टियों में जहां भारी हलचल है वहां कांग्रेस में सन्नाटा है। दोनों जगह गहरी मार हुई है। अब ये राहुल पर है कि वे कैसे इसका राजनीतिक लाभ उठाते हैं। अगर पहले की तरह वे भलमनसाहत, आदर्शवाद, आंतरिक लोकतंत्र में उलझ गए तो यह पहल बेकार हो जाएगी। ये सब चीजें जरूरी हैं, मगर आदर्श समाज में। समाज में जब समानता और संवेदना का माहौल होता है तब वहां मानवीय मूल्य चलते हैं।
फिलहाल तो राहुल को चन्नी को बताना होगा कि किसान, गरीब, छोटे दूकानदार, कम वेतन पाने वाले, दलित, मजदूर के हित में कैसे काम करें। राजनीति को धर्म से हटाकर वापस वास्तविक सवालों पर लाना होगा। रोजी रोटी की बात करना होगी। तभी पंजाब में हिन्दु सिख और बाकी उत्तर भारत में हिन्दु मुसलमान राजनीति से लोगों का ध्यान हटेगा।