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अब जब लोग यह कहते हैं कि पीएम का विरोध क्यों होता है? तो उन्हें समझाना पड़ेगा!
सतीश कुमार त्रिपाठी
भारत के प्रधानमंत्री के विशेष उद्बोधन का 24 घंटे से प्रचार किया गया कि संध्या 4:00 बजे उनका उद्बोधन होने वाला है।समय और परिस्थिति के अनुसार लोगों ने सोचा कि जब प्रधानमंत्री कहने आ रहे हैं तो वास्तव में कोई बहुत गंभीर समस्या पर चर्चा करेंगे और कोई ऐसी बड़ी घोषणा या बात होगी जो सर्वोच्च व्यक्ति के मुंह से निकलेगी। हर जगह 4:00 बजे लोगों ने आंख गड़ाए रखी।भाजपा के तो बड़े-बड़े नेताओं ने प्रचार किया कि नरेंद्र मोदी आ रहे हैं। चीन पर कोई बड़ी बात कहने के लिए। टीवी चैनलों ने भी ऐसे ही दिखाया और प्रचारित किया। लेकिन हुआ क्या? जितनी देर भाषण हुआ इतनी देर में सिर्फ यही समझ में आया कि भारत के 80 करोड़ गरीबों को भारत सरकार दिवाली तक या एक आध महीने आगे प्रति व्यक्ति 5 किलो गेहूं/चावल, प्रति परिवार 1 किलो चना देगी। 1 किलो दाल मिल ही रही है।
यह बात बताने के लिए भारत के प्रधानमंत्री आते हैं। देश में खाद्य मंत्री यह बता ही नहीं सकते थे क्योंकि शायद उनके मुंह में जुबान नहीं है। राज्यमंत्री आदि का तो स्तर ही नहीं है। सरकार इस विषय में भी गाइडलाइन जारी कर सकती थी। लेकिन नहीं, प्रधान मंत्री यह बताने आए। इसके पीछे सिर्फ यह भाव था कि वो दिखाना चाहते थे कि वह गरीबों के लिए कितने चिंतित हैं। अब ऐसा करते हुए उन्होंने भारत में एक ऐसे तथ्य को स्थापित कर दिया जो आज तक सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया। भारत में 80 करोड़ लोग इतने करीब हैं जिनको सरकार राशन दे रही है। 80 करोड़ गरीब है, यह बात आज खुले रुप में स्वीकार कर ली गई है। चीन पर कोई चर्चा नहीं, क्योंकि एक बार पहले ही बोल कर फस चुके थे। आदरणीय नरेंद्र मोदी जी ने किसानों की जमीनों को पूंजीपतियों को देने के लिए अध्यादेश लागू कर रखा है ऐसा लगा कि शायद इस महानतम कार्य पर भी वह प्रकाश डालने आ रहे हैं। वह भी नहीं कहा।
अब जब लोग यह कहते हैं की विरोध क्यों होता है? तो उन्हें समझाना पड़ेगा कि जब हर बात प्रधानमंत्री स्वयं आकर कहते हैं तो बाकी मंत्री या मंत्री मंडल क्यों बना कर के रखा है? आप अपने आप को एक छत्र सम्राट घोषित करो। हर बात को जो करेगा उस पर उसे ही सुनना भी पड़ेगा। तो खत्म करो लोकतंत्र की व्यवस्था को। क्योंकि सिर्फ भाजपा की ही नहीं देश के हर नागरिक को आज बड़ी अपेक्षा थी कि कुछ न कुछ गंभीर बात आदरणीय नरेंद्र मोदी जी कहने वाले हैं। लेकिन जब उनसे बड़ी अपेक्षाएं होती है, तब वह छोटे काम करते हैं। यह राजनीतिक उद्बोधन सिर्फ जनता को यह आश्वस्त करवाने के लिए और दिखाने के लिए था कि भारत के प्रधानमंत्री ही उनके एकमात्र हित चिंतक हैं और वह 24 घंटे सिर्फ उन्हीं के काम उन्हीं की चिंता में परेशान लगे हुए हैं।