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- अब तो न पिछड़ा/दलित ही...
अब तो न पिछड़ा/दलित ही मिलेंगे और न मिलेंगे राम, तो अब बीजेपी इतने में रह जाएगी!
जिस तरह किसी दीपक का तेल जब खत्म हो रहा होता है तो बुझने से ठीक पहले उसकी लौ एक बार बहुत जोर से फडफ़ड़ाती है, ठीक उसी तरह आजकल बीजेपी का भी हाल है। वरना चुनाव से ऐन पहले इस तरह सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान करने का तुक ही क्या बनता है!!!
जाहिर है, खुद नरेंद्र मोदी और समूची भाजपा या संघ को अब अच्छी तरह से अन्दाजा हो चला है कि उनके पास केंद्र में राजकाज के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा है। चुनाव में जीतने की उम्मीद धुंधला चुकी है इसलिए सरकार जाना लगभग तय है। लिहाजा आखिरी बार पूरी ताकत से फड़फड़ा कर भाजपा कोशिश कर रही है कि जनता उसकी रोशनी पर एक बार फिर मोहित होकर किसी तरह पांच बरस का तेल और डाल दे।
हालांकि सवर्णों को आरक्षण का यह दांव मेरी समझ से भाजपा के लिए नोटबंदी से भी बड़ी गलती साबित होने जा रहा है। क्योंकि इसके जरिये उसने हिंदुत्व की अपनी परिभाषा को खुद ही संकीर्ण करके पिछड़ा और दलित को अपने खिलाफ कर लिया है। अब पिछड़ा और दलित भाजपा को खालिस सवर्ण पार्टी के रूप में ही देखने को मजबूर हो गया है और मुसलमानों से नफरत, राम मंदिर आंदोलन या फिर हिंदुत्व की किसी और घुट्टी के जरिये भी पिछड़ा या दलित वोट बैंक भाजपा के पास फटकने वाला नहीं है। अब तो पिछड़ा/दलित वोट बैंक भाजपा को नमस्ते करके बहुत ही स्पष्टता के साथ सपा/बसपा या कांग्रेस जैसे दलों को चुनने की तरफ बढ़ जाएगा।
मुझे तो आश्चर्य होता है, इन अजीबों-गरीब फैसलों को देखकर कि न जाने कौन से सलाहकार मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद से बना लिए हैं, जो उन्हें लगातार आत्मघाती फैसलों की तरफ धकेल रहे हैं। मसलन नोटबन्दी, जीएसटी, एसएसटी एक्ट आदि से मोदी जी से देश का मध्यम वर्ग और सवर्णों का एक बड़ा तबका तो पहले ही खासा खफा था....सवर्ण आरक्षण का एक और आत्मघाती गोल करके मोदी जी ने पिछड़ों और दलितों को भी हिंदुत्व और भाजपा/संघ की राजनीति से छिटका दिया।
सवर्ण तो न जाने कितने इस फैसले से खुश होकर अपनी नाराजगी छोड़कर वापस मोदी के अंधभक्त बनेंगे लेकिन पिछड़े और दलित जरूर इससे नाराज होकर मंदिर-मस्जिद या हिंदुत्व की राजनीति से ही तौबा कर लेंगे।
मेरी समझ तो यहां यह कहती है कि मोदी जी को फिलहाल पिछड़ों, दलित के वोट बैंक में सेंध की अपनी पुरानी चुनावी रणनीति को ही इस चुनाव में भी आगे बढ़ाना चाहिए था, भले ही यूपी में सपा/बसपा मिलकर क्यों न चुनाव मैदान में उतरती। क्योंकि हिंदुत्व को समर्थन और मुस्लिमों से क्षेत्रीय स्तरों पर नफरत के चलते भाजपा को अवश्य ही पिछड़ों और दलितों के एक बड़े हिस्से का समर्थन मिलता। इसकी एक अहम वजह यह भी होती कि यह केंद्र का चुनाव है और केंद्र में हिंदुत्व का कार्ड बहुत ही आसानी से चलाया जा सकता था क्योंकि खुद अखिलेश या माया के समर्थक भी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि केंद्र में अखिलेश या मायावती का प्रधानमंत्री बनना आसान नहीं है। और यदि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो कम से कम देश के मुसलमान तो 'ठीक' रहेंगे।
अब ऐसे माहौल में भी किसी 'बुद्धिमान' सलाहकार ने मोदी जी को न जाने कैसे गलत सलाह देकर उनसे पिछड़ों और दलितों के वोट में सेंध लगाने की अपनी सबसे बड़ी खूबी से ही भटका दिया...