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वेब सीरीज ने क्रांतिकारी बदलाव ला दिए हैं..

Arun Mishra
18 Jan 2021 5:02 PM GMT
वेब सीरीज ने क्रांतिकारी बदलाव ला दिए हैं..
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मैं 'तांडव' के भगवान शंकर वाले सीन को तवज्जो ही नहीं देता क्योंकि 'मेरे शंकर' इतने छोटे नहीं कि उनका कोई ऐरा-गैरा मजाक उड़ा सके...

लगभग दो साल पहले ये बात लगभग हर बड़ी मैगजीन कह रही थी लेकिन आज दो साल बाद हम ये कह सकते हैं कि वो बदलाव नहीं बल्कि केवल गिरावट है।

निरर्थक हिंसक दृश्य बढ़ते गए, भाषा की गरिमा लगभग शून्य हो गई और दृश्यों की घटती मर्यादा ने तो परिवार के एक साथ बैठने की सारी उम्मीदें ही अब खत्म कर दी हैं।

वेब सीरीज के लिए हमारी आस्थाएं मजाक हैं, हमारे बच्चे सब्सक्राइबर हैं, सही-गलत का मिटता फर्क ही साहित्य हैं, गाली ही भाषा है, हिंसा ही अंतिम सत्य है और स्त्रियाँ केवल ..

वेब सीरीज ने जिन दो चीजों पर सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है उनमें पहली 'भाषा' है। यहाँ ये समझना जरूरी है कि समाज का अस्तित्व ही भाषा के कारण होता है। जैसे ही हम भाषा से बाहर जाते हैं वहीं, समाज मिट जाता। हालांकि भारतीय फिल्म जगत 'भाषा' को लेकर बेहद उदार रहा है। उर्दू में लिखे डायलॉग वाली फिल्म 'मुगल-ए-आजम' कभी उर्दू फिल्म नही कहलाई, वो हिंदी फिल्म ही रही क्योंकि भाषाओं को लेकर हम छोटे कभी हुए ही नहीं लेकिन आज वेब सीरीज में 'गालियों वाली भाषा' को जिस तरह भारत की भाषा बनाया जा रहा, वो भविष्यघाती है।

दूसरी चीज जिस पर बेहद तीखी चोट हुई, वो 'स्त्री' है। इन निर्देशकों को ये पता ही नहीं कि लड़कियाँ, लड़कों से पहले बोलना शुरू करती हैं। उनमें सहनशीलता ज्यादा होती है, वो प्रतीक्षा कर सकती हैं, उनका मौन पुरुषों से ज्यादा सशक्त होता है, वो अंतिम विजय का नाद होती है और वही, वो पुल होती हैं जो हमें आदि से अनादि तक ले जाता है लेकिन वेब सीरीज के लिए वो केवल...

हालाँकि मैं 'तांडव' के भगवान शंकर वाले सीन को तवज्जो ही नहीं देता क्योंकि 'मेरे शंकर' इतने छोटे नहीं कि उनका कोई ऐरा-गैरा मजाक उड़ा सके लेकिन बावजूद इसके मुझे किसी भी धर्म की आस्थाओं पर निरर्थक चोट करने से आपत्ति है। किसी रियल जीशान अयूब या उसके रील करेक्टर को ये छूट नहीं होनी चाहिए कि वो वास्तविक जीवन में 'So called असुरक्षित' होने के बाद भी एक बड़े समुदाय के सबसे बड़े सुरक्षा चक्र 'शिव' पर अपना फ्रस्ट्रेशन निकाले।

OTT प्लेटफॉर्म पिछले एक साल से बेहद बेहूदा कंटेंट लाते जा रहे हैं और सरकार है कि डेटा, सर्वर, चाइनीज एप, व्हाट्सएप्प तक ही सारी बहसों को सीमित किये है। सरकार को चाहिए जावेद अख्तर के इस शेर को नोट करके रख ले क्योंकि ये शेर नहीं भविष्यवाणी है आज की-

'धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है

न पूरे शहर पर छाए तो कहना।'

- रुद्र प्रताप दुबे, वरिष्ठ पत्रकार

Arun Mishra

Arun Mishra

Sub-Editor of Special Coverage News

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