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करीब तीन-चार बाद परमा मेरे घर आया। साथ मे थी उसकी बेटी संती और पत्नी रुक्खी। फूल सी संती अब बीमार नही थी।
कल मैंने एक पोस्ट डाली थी "परमा की संती"। इस पर जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। अधिकांश मित्रो ने दावा किया था कि परमा आएगा, जरूर आएगा। क्यो किया उन्होंने यह दावा ? क्या परमा लौटकर वापिस आया ? क्या उस पर किया गया अहसान व्यर्थ गया ? क्या फिर किसी को परमा जैसे लोगो पर अहसान नही करना चाहिए ?
करीब तीन-चार बाद परमा मेरे घर आया। साथ मे थी उसकी बेटी संती और पत्नी रुक्खी। फूल सी संती अब बीमार नही थी। लेकिन शरीर। हरारत अवश्य थी। कृषकाय रुक्खी की एक एक हड्डी को गिना जा सकता था। गेट का दरवाजा मैंने ही खोला। मिसेज ऑफिस गई हुई थी। एक आकर्षक मुस्कान के साथ संती ने मुझे नमस्कार किया। नमस्कार रुक्खी और परमा ने भी किया, लेकिन जोश की जगह वेदना टपक रही थी। पानी पिलाने के बाद मैंने चाय पिलाई। मिसेज मेरे लिए पौहे बनाकर गई थी। पौहे उनको परोसने के बाद मेरी भूख नदारद हो गई।
घर मे फ्रूट भी थे और मिठाईया भी। तीन-चार घण्टे पोर्च में विश्राम किया तीनो ने। रुक्खी ने झाडू उठाकर पोर्च की सफाई करदी। मिसेज आई तो उसने सबको चाय पिलाई और नाश्ता परोसा। इधर-उधर की बात होने के बाद परमा ने प्रस्ताव रखा कि हम संती को अपने पास रखले । हमे किसी की जरूरत भी थी। क्योंकि घर मे मैं और पत्नी ही रहते है। काम वाली बाई लगा रखी है। बेटी अपने पति के साथ पुणे में है और आईआईटी खड़गपुर से एमटेक पासआउट होनेके बाद आईएएस की तैयारी में जुटा हुआ है।
खैर ! मैंने और मेरी पत्नी ने यही आश्वासन दिया कि जब तक जीवित् हैं, संती की सारी पढ़ाई-लिखाई का खर्च हम उठा लेंगे, लेकिन पास में रखने के लिए माफी। परमा ने सुक्खी की बीमारी के बारे में बताया। मैं उनको लेकर डॉक्टर के पास गया। हीमोग्लोबिन और आयरन की बेहद कमी थी सुक्खी के शरीर मे। एक महीने की दवा दिलवा दी।
जब वे जाने को हुए तो परमा ने गमछा खोलकर बथुआ हमारे सामने इस निवेदन के साथ रख दिया कि उसके पास कर्जा चुकाने के लिए और कुछ भी नही है। सच कहता हूँ कि मेरे द्वारा दी गई राशि से कहीं ज्यादा कीमती था। उसमें अपनेपन की गंध थी और अपनेपन का स्वाद था। रात को बथुए की भुजिया और रायता खुद मैंने बनाया। आप बताओ कि घाटे में परमा रहा या मैं ? परमा ने मुझे खरीदा या मैंने परमा को ?आपकी प्रतिक्रिया और टिप्पणी औरो के प्रेरक का कार्य करेगी।
महेश झालानी
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