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- आवाम को विधायक या...
आवाम को विधायक या सांसद तो मिल जाते हैं लेकिन जन- नेता विरले ही मिलते हैं
जी हाँ, थी एक ऐसी ही अनोखी शख़्सियत जिसके इस फ़ानी दुनिया से रुखसत होने जाने बाद आज भी उन्हें याद कर आवाम की आंखें नम हो जाती हैं और अपने रहनुमा जाने का बेहद अफ़सोस है।
वो जिन्हें जनता की आवाज़ कहा जाता था, वो जो गरीबों, मज़लूमों शोषितों, पीड़ितों के न्याय अधिकारों के लिए अपने जीवन के आख़िरी समय तक लड़ता रहा, वो जिनकी सभाओं में तक़रीरों को सुनने के लिए शहर भर का मजमा जुटता था, वो जिनके बारे में आवाम को मालूम पड़ता कि आज शहर में उनकी पब्लिक मीटिंग है तो कुर्सियां कम पड़ जाती थी।
वो जिनकी बतौर प्रखर, प्रभावशाली वक्ता के रूप में चर्चाएं सिर्फ जनपद जौनपुर में हीं नहीं बल्कि आस पास के जिलों समेत पूरे पूर्वांचल में होती रही। वो जिन्हें साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
वो जिसने वैचारिक मतभेदों की लड़ाई लड़ते हुए अन्य दलों में भी उनके बेबाक अंदाज़, मुखर होकर विरोध करने का सम्मान किया जाता था।
वो जिनकी तमाम राजनीतिक विरोधाभास के बावजूद बाकी राजनीतिक पार्टियों की भी वो पसंदीदा शख़्सियत थे , वो जिनकी सादगी, शालीनता , सौम्यता व अपनी मोहब्बत भरी ज़ुबान हर किसी को अपनी तरफ खींच लेती थी।
वो जिन्होंने विधायक होने बाद भी अपने सरल सहज व्यक्तित्व में कभी कोई परिवर्तन न आने दिया और ज़रूरत पड़ने पर वो लोगों के लिए आधी रात को भी खड़े रहते थे। वो जिन्होंने पूरी ज़िंदगी आपसी भाई-चारे, एकता मानवता के प्रति समर्पित रहकर जो मिसाल कायम की है वो जौनपुर वासियों के दिलों में अमिट और अविस्मरणीय रहेगा।
जौनपुर एक अनोखा ऐतिहासिक शहर, जिसकी सरज़मी से न जाने कितने नायाब नगीनों ने मुल्क का नाम दुनिया भर रौशन किया जिसकी एक लंबी सूची है। इतिहास में दर्ज शीराज़ ए हिन्द के नाम से प्रसिद्ध इस शहर ने हमेशा इंसानियत, मोहब्बत का पैगाम दिया है। जब जब साम्प्रदायिक ताकतों द्वारा सौहार्द मेल-मिल्लत और साझी विरासत को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गयी है तब इस शहर के ज़िम्मेदार लोगों ने आगे आकर अपनी गंगा जमुनी तहज़ीब को बचाने का काम किया और अनुकरणीय मिसाल कायम की।
ऐसी ही मशरूफ ओ मारूफ शख़्सियत थे मरहूम हाजी अफ़ज़ाल साहब...!!! जिन्हें आवाम आज भी विधायक जी ही कहती है और उन्हें याद कर लोगों की आंखें नम हो जाती हैं और उनके चाहने वाले गमज़दा हो जाते हैं। क्योंकि उनका रहनुमा, उनका सरपरस्त अब इस दुनिया में नहीं है।
2 जून 1958 को जन्मे हाजी अफ़ज़ाल अहमद साहब अपने पिता मरहूम इक़बाल अहमद साहब के राजनीतिक जीवन से प्रेरित होकर छात्र राजनीति में कदम रखते हैं और वहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। आगे चलकर अफ़ज़ाल साहब जनविरोधी नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध युवाओं की एक मुखर आवाज़ बन गए और जिसके चलते जेपी आंदोलन में उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
जेल जाने का ये सिलसिला बढ़ता ही गया और तत्कलीन सरकारों की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए अफ़ज़ाल अहमद ने आंदोलनरत रहकर लोकतांत्रिक व मानवीय मूल्यों को जीवित रखे रहने के अपने संघर्षों को मज़बूती से जारी रखा जिसके लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा और कितनी दफा उन्हें नज़रबंद किया गया।
और इधर आवाम उम्मीद भरी निगाहों से अपने इस इंक़लाबी नेता को देख रहीं थीं, और फिर समय आ गया 1996 के उत्तर प्रदेश असेम्बली चुनाव का। आवाम की ज़ुबान पर शहर भर में एक नाम के स्वर गूंजने लगे। अफ़ज़ाल...!!!! तो श्री मुलायम सिंह यादव जी ने अफ़ज़ाल अहमद साहब को लखनऊ बुलवाया और उन्हें समाजवादी पार्टी का जौनपुर सदर विधानसभा का प्रत्याशी घोषित किया।
फिर जनता ने अपना अपार स्नेह और समर्थन देकर हाजी अफ़ज़ाल अहमद को सदन में पहुंचा दिया। जिस उम्मीद के साथ उन्हें जनप्रतिनिधि चुना गया था उन्होंने कर्तव्यनिष्ठ होकर अपने दायित्वों का निर्वहन किया और जनता के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करते रहे। अपने सफल कार्यकाल की समाप्ति के पश्चात उन्होंने कई सामाजिक सांस्कृतिक संघटनों में संरक्षक की भूमिका की अदा की। इसके अलावा क़ौम की बुनियादी ज़रूररातों और हक़-हुक़ूक़ के लिए कई तंजीमों से जुड़कर वो मार्गदर्शन करते रहे।
जौनपुर की गंगा जमुनी तहज़ीब पर जब भी आंच आने की आशंका हुईं तो उन्होंने बहुसंख्यक समाज के ज़िम्मेदार लोगों के साथ मिलकर अपनी गंगा जमुनी तहज़ीब को कभी दागदार न होने दिया। सामाजिक एकता, समानता व मानवता-प्रेम के प्रति ही उनका पूरा जीवन समर्पित रहा। वो हिन्दू-मुस्लिम एकता की ऐसी अनोखी मिसाल थे जिसके किस्से कहानियां लोग हमेशा सुनाते रहेंगे।
आज ही के दिन पिछले साल 18 सितंबर 2020 को जौनपुर की आवाम के इस हरदिल अज़ीज़ शख़्सियत ने इस फ़ानी दुनिया से अलविदा कह पूरे शहर को गमगीन कर दिया था।
वो आज दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा रहेंगे, उनके अनोखे व्यक्तित्व को हमेशा याद किया जाएगा।
उनकी पहली बरसी पर खेराज़ ए अक़ीदत..!!
भावभीनी श्रद्धांजलि..!!!
- (सरताज एम. खान)