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- कविता -
🍁लेती नहीं दवाई "माँ",
जोड़े पाई-पाई "माँ"👸
🍁दुःख थे पर्वत, राई "माँ",
हारी नहीं लड़ाई "माँ"👸
🍁इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई "माँ"👸
🍁दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई "माँ" 💫👸
🍁जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई "माँ" 💫👸
🍁बाबू जी तनख़ा लाये बस,
लेकिन बरक़त लाई "माँ" 👸
🍁बाबूजी थे सख्त मगर ,
माखन और मलाई "माँ"👸
🍁बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई "माँ"👸
🍁नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,
मां जी, मैया, माई, "माँ" 👸
🍁सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई "माँ" 🥺
🍁घर में चूल्हे मत बाँटो रे,
देती रही दुहाई "माँ" 🥺
🍁बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ-साथ मुरझाई "माँ" 🥺
🍁रोती है लेकिन छुप-छुप कर,
बड़े सब्र की जाई "माँ"।🥺
🍁लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई "माँ" 🥺
🍁बेटी रहे ससुराल में खुश,
सब ज़ेवर दे आई "माँ"।🥺
🍁"माँ" से घर, घर लगता है,
घर में घुली, समाई "माँ" 👸
🍁बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई "माँ"👸
🍁दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई "माँ"।🥺
🍁घर के शगुन सभी "माँ" से,
है घर की शहनाई "माँ"💫👸
🍁सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराईll "माँ" 👸
- विनोद जैन