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- "सादगी" और "चाहत" नहीं...
"सादगी" और "चाहत" नहीं पता कि मेरी चाहत की इंतेहां क्या होगी
"सादगी"
सादा जीवन उच्च विचार
यही जीवन का सर्वश्रेष्ठ आधार !!
सादगीपूर्ण जीने वाला
अति प्रसन्नता पाता
उसके हर कार्य सदा
सँवारता विधाता !!
लाख दिखावा कर लो
पहचान उसी की होती
सत्य -परख करने की
जिसने पाया दिव्य-ज्योति
सर्वदा हीं सादगी
मिशाल कायम करती
चरम शिखर वाली परवाज
सोच समतल धरती !!
सादगी से रहने वाले
लोग बहुत कम होते हैं
जो मीले खा लेते हैं
जो मिला पी लेते हैं !!
सत्यम ,शिवम ,सुंदरम
वाणी - भाषा होती
बेमतलब की नहीं कोई
अभिलाषा होती
"चाहत" नहीं पता कि मेरी चाहत की इंतेहां क्या होगी,
बस ये जो हमारी सांसे हैं तुम पर ही फना होगी...
मेरे साथ ये सिमटती खामोशी,मेरे जख्मों के साथ ही रवा होगी...
क्या गुनाह किया राजे दिल सुना कर,मेरी जिंदगी के हर पन्ने खुली किताब होगी...
हर बाते तुम्हारे दिल-ऐ-नादन के,अगर हम बंया करे तो कजा होगी...
मेरी खामोशी अगर तेरी रजा हैं,मेरी पाकिजा मुहब्बत की ये सजा होगी...
फूल तो हरदम खिलते है चमन में,पर ना जाने किसकी किस्मत कहां होगी..
बढ़ चले हैं पांव अनजान डगर पर,ये भी नही पता कि मंजिल कहां होगी...
(कवि अजय कुमार मौर्य, पी-एचडी शोधार्थी, तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी)