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"डूब गया पत्रकारिता का ध्रुव तारा...!"

News Desk Editor
23 Aug 2018 9:37 AM GMT
डूब गया पत्रकारिता का ध्रुव तारा...!
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लोग अच्छे हैं बहुत दिल में उतर जाते हैं...,

इक बुराई है तो बस ये है कि मर जाते हैं...।

रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई...,

तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं...।।

दोस्तों...!

अनंत आकाश में विलीन हो गया भारतीय पत्रकारिता का ध्रुव तारा... कुलदीप नैयर का 95 साल की उम्र में निधन... कुलदीप नैयर जी अब नहीं रहे… यह खबर सुबह मिलते ही उनकी तमाम यादें ताजा हो गईं और भारतीय पत्रकारिता में उनके लंबे योगदान के तमाम आयाम याद आने लगे... स्वर्गीय राजेंद्र माथुर और मनोहर श्याम जोशी के बाद अब कुलदीप नैय्यर के निधन से पत्रकारिता के एक और युग का अंत हो गया... वह कड़ी जो उनके रूप में स्वतंत्रता के पहले से शुरु हुई थी आज टूट गई... कुलदीप नैयर जी से मेरा रिश्ता कोई खास रिश्ता तो नहीं... पर कुछ यादें उनसे जुड़ी हुई जरुर है... एक पत्रकार के रूप में मैंने सबसे पहले उन्हें पढ़कर जाना... फिर जब करीब 12 साल पहले एक नये पत्रकार के तौर पत्रकारिता की दुनिया में संघर्ष कर रहा था... तब उन्हें धीरे-धीरे करीब से जानने का मौका मिला... 02 सितम्बर 2005 की तारीख थी... उस समय मैं मीडिया की पढाई कर नौकरी के तलाश में था...और पत्र-पत्रिकाओं में बतौर फ्रीलांस का काम किया करता...इसी दिन दैनिक-हिन्दुस्तान अखबार के संपादकीय पन्ने के इंचार्ज और सीनियर पत्रकार हरजिंदर सिंह जी ने मुझे कुलदीप नैयर का साक्षात्कार लेने का काम दिया... और बताया कुलदीप नैयर कौन है और उनसे कैसे मिलना है और क्या सवाल करने है... विषय था-1857 की क्रांति के सबक... कुलदीप जी के लेख संपादकीय पन्ने पर प्रकाशित होता था... उनको मैं जानता भी पहले...पर एक पत्रकार के रुप में उसी दिन मैं उनसे परचित हो पाया... और अधिक उनको समझने और जानने का अवसर मुझे इस साक्षात्कार से मिलने वाला था... मैं बहुत उत्साहित था उसदिन... और साक्षात्कार के लिए उनसे मिलने उनके घर पहुंच गया... और जब उनसे मुलाकात हुई और बातचीत का सिलासिला बढा तो उन्होंने अपने बारे में बताते हुए कहा... देश-विदेश के अस्सी से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लिखता हूं...उस समय मेरे जैसे एक नये-नवेले पत्रकार के लिए यह जानकारी मेरी कल्पना से परे था...मैं हद-प्रभ था एक अकेला इंसान इतनी पत्र-पत्रिकाओं में इतनी सारी भाषाओं के लिए कैसे लिख सकता है... मेरे अंदर उनके प्रति आदर का भाव गहराई तक घर कर गया... जो आज तक बना हुआ है... और हमेशा ही बना रहेगा...।





कुलदीप नैयर जी से जुड़ी ऐसे तो तमाम यादें आज याद आर ही है पर एक घटना जिसका बयान मैं करना जरुर चाहूंगा...वह है यह की दिल्ली के मंडी हाउस के किसी सभागार में मीडिया विषय पर किसी सेमिनार का आयोजन किया गया था... जिसमें देश के बड़े-बड़े पत्रकारों को वक्ता के रुप में शामिल होना था...उन्हीं में दो नाम ऐसे भी थे जिसको सुनना पढ़ना मुझे हमेशा से पसंद था...जी हां कुलदीप नैयर और खुशवंत सिंह... मैं श्रोता के हैसियत से उस सेमिनार का हिस्सा था... सेमिनार समाप्ति के बाद चाय-नाश्ता के दौरान सभी गणमान्य आपसे में बातचीत कर रहे थे... मेरी नजर कुलदीप जी को ढ़ूढ रही थी... मैने देखा कुलदीप जी खुशवंत सिंह जी से कुछ गुप्तगूं कर रहे थे... मैंने उस समय वहा जाना मुनासिब नहीं समझा पर कुलदीप जी इशारे से मुझे अपने पास ही बुला लिया... मैं भी देश के दो महान लेखक-पत्रकार को सुनने का अवसर नहीं गंवाना चाहता था... और फट से वही पहुंच गया और शांति से उन्हीं के पास खड़ा होकर उनको सुनने लगा...कुलदीप जी ने खुशवंत सिंह जी से कहाआप मेरे गुरू हो प्रोफेसर हो... मैं यह सुनकर दंग रह गया एक लेखक पत्रकार एक दूसरे का ऐसा सम्मान कर सकते है मेरी कल्पना से परे था... आज वही हिन्ही पत्रकारिता का ध्रुव तारा हमेशा-हमेशा केलिए अनंत आकाश में विलीन हो गया... मेरे लिए तो यह व्यक्तिगत क्षति है... मुझ जैसे नौसिखिए अल्पज्ञ और युवा-पत्रकार को पत्रकारिता कुल के वरिष्ठतम पत्रकार कुलदीप नैयर जी से जब भी मैं मिला हूं... अपने विशिष्ट अंदाज में मुझे कुंवर साहब ही कहकर ही सम्बोधित किया करते थे...।



कुलदीप नैयर का 14 अगस्त 1923 को पाकिस्तान वाले पंजाब के सियालकोट में जन्म हुआ था... उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच की एक अहम कड़ी के तौर पर देखा जाता था... और उन्होंने अपने आखिरी वक्त तक दोनों देशों के बीच दोस्ती को मजबूत करने की कोशिश जारी रखी... पत्रकारिता के क्षेत्र में कुलदीप नैयर का कोई सानी नहीं है... उन्हें अगर भारतीय पत्रकारिता की नींव का एक आधार स्तंभ कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी... नैयर बहुत सारी किताबें लिख चुके हैं... जिनमें भगत सिंह पर लिखी उनकी किताब बेहद चर्चित हुई थी... वो भारत सरकार के प्रेस सूचना सलाहकार के पद पर बहुत दिनों तक काम किए... पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल के दौरान उन्होंने इस पद को संभाला था... और जब ताशकंद में भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता हो रहा था तो नैयर साहब भी उस समय वहां मौजूद थे... गौरतलब है कि शास्त्री जी का उसी दौरान दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था... ये उनकी साख और प्रतिबद्धता का ही नतीजा है कि पत्रकारिता की दुनिया में उनके नाम से अवार्ड दिया जाता है... जिसे "कुलदीप नैयर पत्रकारिता अवार्ड" के तौर पर जाना जाता है... और 23 नवंबर 2015 को इस क्षेत्र के सबसे प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवार्ड से नैयर को उनकी आजीवन उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया था... कुलदीप नैयर राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं... उन्हें 1997 में संसद के उच्च सदन के लिए मनोनीत किया गया था...।


आज जब कुलदीप नैयर जी हमारे बीच नहीं रहे तो यह सवाल भी स्वाभाविक है कि अब उनके खाली स्थान को कौन भरेगा... क्या कोई दूसरा कुलदीप नैयर फिर हमारे बीच आएगा... इसका जवाब तो समय ही देगा, लेकिन मेरी पीढ़ी और उसके बाद की पीढ़ी के पत्रकारों के लिये कुलदीप नैय्यर के जीवन और उनकी पत्रकारिता से सीखने के लिये बहुत कुछ है... अगर हम उनसे यह सीख सके कि किस तरह हर परिस्थिति में लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए हमारी कलम चलती रहनी चाहिए तो शायद यही भारतीय पत्रकारिता के भीष्म पितामह को सच्ची श्रद्धांजलि होगी...मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरा पत्रकार बिरादरी और हमारी आने वाली पीढिय़ां कुलदीप नैयर जी के लिए आदर का भाव रखेंगी... कुलदीप जी आपको याद करेंगी... आप के बारे में जानेंगी और युवा आपको अपना आदर्श बनाएंगे... इसी के साथ आपको अलविदा लेकिन इस उम्मीद के साथ आप फिर लौटकर आएंगे...।।

एक सूरज था कि आज पत्रकारिता के घराने से उठा...,

और हमारी आँखें हैरान है क्या शख़्स था जो...!

आज इस ज़माने से उठा...!!

अलविदा कुलदीप जी

लेखक- कुंवर सी.पी. सिंह टी.वी.पत्रकार

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