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मोदी की सरकार ने स्वतंत्र संस्थानों को विकृत कर दिया , पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल में लोकतंत्र नष्ट हुआ है - प्रशांत भूषण
अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है, जिस ढंग से अधिनायकवाद को फैलने दिया गया उसपर सवाल उठाना अदालत को स्कैंडलाइज करना नहीं है : प्रशांत भूषण। सात कॉलम में दो लाइन का ऐसा शीर्षक मीडिया में ऐसी खबरों के लिए शायद ही मिले।
आर बालाजी की बाईलाइन वाली इस खबर के अनुसार प्रशांत भूषण ने कहा है कि उनकी वाजिब राय में भारत के पिछले चार मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल में देश में लोकतंत्र नष्ट हुआ है। उन्होंने कहा कि इस तरह की राय की अभिव्यक्ति, वह चाहे जितनी मुखर, असहमतियोग्य या कुछ लोगों के लिए जितनी सख्त हो, अदालत की अवमानना नहीं हो सकती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी अवमानना नोटिस के जवाब में दाखिल एक शपथपत्र में उन्होंने ये बातें कही हैं।
इसमें उन्होंने कहा है, नरेन्द्र मोदी की सरकार ने स्वतंत्र संस्थानों जैसे भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, चुनाव आयोग और मुख्यधारा की मीडिया को विकृत कर दिया है और इसके बावजूद भारत की सुप्रीम कोर्ट दखल देने में नाकाम रही है। ....
मुख्य न्यायाधीश अदालत नहीं हैं और अदालत की छुट्टी के दौरान एक सीजेआई (भारत के मुख्य़ न्यायाधीश) के आचरण या व्यवहार से संबंधित सवाल उठाना या चार मुख्य न्यायाधीशों ने अधिनायकवाद, बहुसंख्यकवाद,मतभेद का गला घोंटने, बड़े पैमाने पर राजनीतिक कैद जैसे मामलों के बढ़ने में अपने अधिकारों का जिस ढंग से उपयोग किया है या उपयोग करने में नाकाम रहे हैं .... से संबंधित चिन्ता के मुद्दे उठाना अदालत को स्कैंडलाइज करना (लज्जाजनक स्थिति में लाना) नहीं है।
उन्होंने यह निष्कर्ष निकालने की कोशिश की कि सप्रीम कोर्ट ने राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद, जम्मू कश्मीर में धारा 370 खत्म करने, चुनावी बांड, एनआरसी, सीएए और कई अन्य मामलों में उचित ढंग से कार्रवाई नहीं की है। ....
शपथ पत्र में उन्होंने कहा है, भले ही ऊपरी अदालतों, खासकर सुप्रीम कोर्ट को हमारे संविधान द्वारा लोकतंत्र और हमारे बुनियादी अधिकारों की रक्षा तथा नियामक प्राधिकारों में उचित कामकाज सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, यह देखा जा सकता है कि पिछले छह वर्षों में देश में जब बुनियादी अधिकारों का गला घोंट कर तथा कार्यपालिका और विधायिका द्वारा सीमित अधिकारों से आगे बढ़कर और संस्थाओं को विकृत करके लोकतंत्र की भावना को नष्ट किया जा रहा था तो सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर हमारे लोकतंत्र को नष्ट करना रोकने में नाकाम रहा .