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- संपूर्ण विपक्ष का...
प्रियंका गांधी की विपक्ष के तौर पर जोरदार एंट्री से सरकार को चुनौती दे सकने की सोच रखने वाले सभी लोगों की हौसलाअफजाई बेशक हुई है और इसे सियासत से मायूस हो चुके लोगों के लिए एक साहस बढ़ाने की कवायद कहा जा सकता है। इसके बाद नया घटनाक्रम यह है कि फिलहाल भारतीय राजनीति में सबसे ज्यादा चतुर बुद्धि का इस्तेमाल करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत कर भाजपा को नयी चुनौती पेश कर दी है क्योंकि नीतीश कुमार शायद अकेले नेता हों जिन्हें भाजपा से ही नहीं बल्कि ईडी या सीबीआई से भी डर ना लगता हो।
किसी भी लोकतंत्र में यदि यह साबित हो जाए कि जनता के मुद्दों को हल करने के लिए या उनकी हर परेशानी का ध्यान रखने के लिए सरकार काफी होती है फिर विपक्ष की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है लेकिन यह असंभव है और बिना विपक्ष के एक मजबूत लोकतंत्र की कल्पना बेकार है। केन्द्र में मोदी सरकार बनने के बाद विपक्ष को हाशिए पर ले जाने की कोशिशें लगातार जारी रही हैं और इसमें साम दाम दण्ड भेद सब कुछ इस्तेमाल किया जा रहा है। विपक्षी पार्टियां भी सरकार से डरकर चुप्पी साधे हुए तमाशा देख रही हैं। इस लोकतंत्र के संकटकालीन समय में प्रियंका गांधी का सरकार के खिलाफ मुखर होकर खुद को संपूर्ण विपक्ष के तौर पर पेश कर देना जनता के लिए राहत की बात अवश्य है साथ ही राजनीतिक दलों में ऊर्जा का संचार करने का माध्यम भी बन गया है। प्रियंका गांधी ने जो कुछ किया वह उन्हें करना ही चाहिए था क्योंकि राहुल गांधी के लिए भी एक मजबूत सहारे की आवश्यकता थी जो उन्हें उनकी बहन के रूप में उन्हें मिला।
जनता में एक सकारात्मक संदेश गया है लेकिन जनता के कुछ सवाल भी हैं जो शायद गांधी परिवार तक पहुंच नहीं पाते हों और या पहुंचने नहीं दिए जाते हों। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि गांधी परिवार अपनी आंखों से देखना और अपने कानों से सुनना, खुद सोचना और फैसला करना कब शुरू करेंगे। क्योंकि जनमानस में यह आम धारणा बन चुकी है कि गांधी परिवार तक उन्हें घेरे हुए चक्रव्यूह वास्तविक स्थिति पहुंचने नहीं देते और गांधी परिवार को शायद खौफजदा कर उलटे फैसले उनके नाम से करा दिए जाते हैं और लोगों में फिर कांग्रेस के लिए अविश्वास की स्थिति पैदा हो जाती है। गांधी परिवार को कम से कम अपनी आंखों, कानों और अपने ज़हन से नीचे तक आम आदमी की सच्चाई को जानना पड़ेगा क्योंकि आम आदमी को गांधी परिवार में ही आशा की किरण नज़र आती है। एक प्रचार बहुत जोर शौर से किया जाता है कि कांग्रेस जब तक गांधी परिवार से मुक्ति नहीं पाती तब तक वह संभल पाएगी, ये प्रोपेगंडा सिर्फ वह लोग करते हैं जो कांग्रेस को दूसरी भाजपा की फोटोकॉपी बनाकर सांप्रदायिकता की गंदगी में धकेल देना चाहते हैं और उसके सिकुलर करेक्टर को खत्म कर देना चाहते हैं क्योंकि गांधी परिवार कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष चरित्र की जमानत है।
नीतिश कुमार ने सोनिया गांधी से क्या बात की यह तो वही दोनों जानते हैं लेकिन बात की है यह खुद में बड़ी बात समझी जा रही है। राजनीतिक विश्लेषक बता रहे हैं कि जेपी की धरती बिहार से नीतिश कुमार भाजपा के विरोध में कोई बड़ा फैसला लेकर दिल्ली पहुंचते हैं तो भाजपा के लिए आसानियां खत्म हो सकती हैं। नीतिश कुमार चाह रहे होंगे कि सोनिया गांधी लालू को समझाकर राजद के समर्थन से उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखे तो भाजपा से अलग होकर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित एक मजबूत मोर्चा विपक्ष को साथ लेकर बना दिया जाए और अजेय भाजपा को बड़ी चुनौती दे दी जाए। अभी भाजपा खुद को अजेय मानकर चल रही है लेकिन अनिश्चितताओं से भरे राजनीति के खेल में कब क्या घटित हो जाए कुछ पता नहीं चलता। भाजपा का खुद को अजेय मानने का आधार मद्देमुकाबिल का कमजोर रहना है और जब कोई ताल ठोक कर मैदान में उतर जाएगा तो भाजपा का खुमार भी उतर सकता है क्योंकि भाजपा बहुत बड़े मत प्रतिशत पर विजय नहीं हुई थी।
प्रियंका गांधी का मजबूती से ताल ठोंकना यह तो साबित करता है कि भाजपा को चुनौती तो दी जा सकती है लेकिन यह काम लगातार करना होगा और गांधी परिवार को रोज़ाना किसी ना किसी मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ खड़ा होना होगा। प्रियंका गांधी के इस आंदोलन को गोदी मीडिया ने दुष्प्रचारित करना शुरू कर दिया और अडानी अंबानी के भोंपू मीडिया चैनल प्रियंका गांधी को बिल्कुल बदनाम करेंगे, गांधी परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार और हिन्दू विरोधी होने का प्रोपेगंडा करेंगे लेकिन बिना विचलित हुए मैदान में टिकना ही जनसमर्थन की गारंटी होगा। ये बात भी बिल्कुल सत्य है कि जब जब भाजपा ने निरंकुश होने की कोशिश की है तब प्रियंका गांधी ने सीना तान कर भाजपा को ललकारा है।
उत्तर प्रदेश में जब सीएए प्रदर्शनों के दौरान योगी सरकार ने निरंकुशता दिखाई थी तब भी प्रियंका गांधी ने ही लखनऊ पहुंचकर सरकार को चुनौती दी थी। जनता शायद यह बातें भूल जाती हो लेकिन उसे याद दिलाया जाए तो सब कुछ याद भी आ जाता है। प्रियंका गांधी को अपने पिता स्व. राजीव गांधी के साथ सियासत कर चुके उनके दोस्तों के दिल भी टटोलने चाहिए चाहे वह किसी भी दल में राजनीति कर रहे हों और उन्हें अपने साथ मिलाकर देश को तबाही में गिरने से बचाने के लिए हर संभव प्रयास में लग जाना चाहिए।। यह काम मुश्किल जरूर हो सकता है लेकिन असंभव नहीं। अब कांग्रेस पार्टी खासतौर से सोनिया गांधी को राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी को भी लोकसभा या राज्यसभा में लाना चाहिए जिससे देश उन्हें संसद के सदन में भी लोकतंत्र की लड़ाई लड़ते और सरकार को जनहित मुद्दों पर घेरते हुए देख सकें।