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- रमल्ले आज बहुत, बहुत...
सुबह नाश्ता करके उठा ही था कि अचानक फोन घनघनाने लगा! देखा तो पता चला कि उखरा से मुसद्दी भइया याद कर रहे हैं! लपक के फोन उठाया! पंचम स्वर में पालागन दागा!
लेकिन उधर से आशीर्वाद की जगह जोर जोर से हंसने की आवाज सुनाई दी।थोड़ी देर तक हलो हलो करने के बाद भी जब हंसी नही रुकी तो मुझे लगा कि कोई रॉन्ग नम्बर लग गया है। लेकिन तभी भइया की आवाज सुनाई दी-खुश रहो छोटे।
मैंने कौतूहल से पूछा -क्या हुआ भइया!आज आप इतना खुश क्यों हो ?कोई खास खबर आ गयी क्या? इस पर भइया फिर हंसे और बोले- खबर तो कोई नही है।लेकिन है भी! आज सबेरे से अपना रमल्ला (रामलाल) नाचता घूम रहा है।वह सबसे कह रहा है कि अब रामनाथ रामलाल से आगे!अब किसी ने मुझे झूठल्ला कहा तो मैं उस पर नालिश कर दूंगा। देश का सिरमौर अब हमारी बिरादरी का सिरमौर बन गया है।
मैंने चौंकते हुए पूछा कि भइया ऐसा क्या हो गया जो रमल्ले इतने खुश हैं!भइया बोले लो उसी से पूछ लो।यह कहकर फोन रमल्ले को पकड़ा दिया।हां आपको यह बता दूं कि रमल्ले पूरे इलाके में पूरे सच के साथ झूठ बोलने के लिए मशहूर हैं।
मैं कुछ बोल पाता इससे पहले ही रमल्ले की आवाज आ गयी।हुलसते हुए उन्होंने कहा-छोटे लल्ला अब तुम गांव के लोगन कौं बताय देउ कि वे हमारी खिसक (मजाक) न बनाबे!अब हम अकिल्ले नाय हैं जो लम्बी जीभ चलाउत हैं।दुनिया झूठ बोल्ति है सो नेक आध हमऊ बोल लेत तौ का हुई गओ!गांव के लोगन ने तो हमाओ नावँ रमल्ले से झुठल्ले कर दओ है।
मैंने उन्हें टोंकते हुये पूछा -भइया क्या हो गया।बात क्या है!आप क्यों नाखुश हो रहे हो?इस पर वे जोर से हंसे और बोले-क्यों तुमने अखबार नाई पढ़ो का ?अरे आज पूरी दुनिया में जये खबरि है कि अपने कानपुर बारे भइया ने अपने गांव बारन को बताई है कि उन्हें तनुखा मिलति है 5 लाख रुपइया और बा मैं कटौती हुई जाति है तीन लाख रुपइया। उन्ने तो जे भी कई है कि उनकी हैसियत तौ स्कूल मास्टर जितनी भी नाय है।अब तुमयीं बताबउ कि जब इत्तो बड़ो आदिमी ऐसी बात करि सकत है तो फिर हम तौ ठहरे उखरा के रमल्ले!हम नेक आध बात इययिं उआयीं करि लेत हैं तौ बा में का बुराई है। नेक सी बात में हमैं तो लोगन ने रामलाल से झुठल्ले बनाय दओ।अब जब दिल्ली बैठे अपने दाऊ ने जये काम करो है तौ उनसे कोई कछु कहैगो कि नाई।अब जा बात तौ पुरो देसु जानत है कि सरकार काऊ आदमी पै 33 फीसदी से ज्यादा इनकम टैक्स नाय लेत है।अब उन्ने कानून के मुताविक टेक्स दओ तो भी पौने दुइ लाख ते ज्यादा नाही हुइयै। अब जे बात तो सब जने जानत हैं कि अपने कानपुर बारे कलेट्टर गंज झाड़न बारे होत हैं।थोड़ी बहुत लंतरानी तो देते ही रहते हैं।
उइसे हम हैं बहुत खुस!गांव के लोग हमइ झूठन को सरताज कहत हते।हमने कइयों दांव कही कि जे तमगा तो हुजूर के सिर पर है।हम कहाँ उनके आगे।लेकिन जे अपने उखरा के लोग बहुत मुराह हैं।हमाई एक नाई सुनी।हमारो जीवो दुश्वार कर दओ!अब लेउ!हुजूर के ऊपर बारे भी सामने आइ गए।अब कल्लेउ बात!
लल्ला हमैं किसम है गवधू के पड़रा की!अब काऊ ने हमारी खिसक उड़ाई तौ हम वाकी एक लट्ठ मैं कपाल किरिया करि दिएँ। अब पहले दिल्ली बारे!फिरि हम उखरा बारे!हम जाई के मारे खुस हैं कि हमते बड़े बारे झुठल्ले भी हैं! अब तुम इनहि हिंदी मैं समुझाइ देउ!हम उनके आगे कहूँ नाही लगत हैं।
इतना कह कर उन्होंने मुसद्दी भइया को फोन पकड़ा दिया। भइया भी एक फिर हंसे और बोले-देखो लल्ला अपने रमल्ले हार के भी कितने खुश हैं।मिलेगा कहीं कोई और इनके जैसा।चलो फिर बात करेंगे अभी तो रमल्ले का रमतुल्ला सुनते हैं!!!