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- रांची हिंसा: ज़िम्मेदार...
रांची हिंसा: ज़िम्मेदार कौन? इस माँ से पूंछिए इसने अपना लाड़ला खोया है जिसका 18 जून को आता परीक्षा का परिणाम
-पहला सवाल ये है कि बिना किसी अनुमति के नई उम्र के लड़के जुलूस निकाल सड़क पर कैसे आ गए। इन्हें किसने सड़कों पर आने को उकसाया। जब बंद की अफवाहें चल रही थीं, लेकिन स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर के सभी धार्मिक और सामाजिक मुस्लिम संगठन ऐसे किसी भी बंद और प्रदर्शन का विरोध कर रहे थे। अपील जारी कर रहे थे कि भारत बंद में शामिल न हों, जुलूस न निकालें, तो ये किसके आह्वान पर हुजूम सड़क पर निकल आया। जबकि कई मस्जिदों से भी एलान हुआ कि कोई जुलूस में न जाये। इसका कौन जिम्मेदार है।
-दूसरा सवाल ये उठता है जब भारत बंद की अफवाहें चल रही थीं तो इंटलीजेंस को इसकी भनक क्यों नहीं लगी कि कोई जुलूस-प्रदर्शन होने वाला है। पुलिस के मुखबिर कहाँ थे। जुलूस को बेरिकेट लगाकर क्यों नहीं रोका गया।
प्रशासन सतर्क क्यों नहीं था। पहले से ही पुलिस बल बड़ी संख्या में तैनात क्यों नहीं था। जब भीड़ उग्र हो गयी और डेली मार्किट के पास पत्थर बाज़ी होने लगी, पुलिस अफ़सर और अन्य पुलिस कर्मी को चोट आई, तो उसे रोकने के लिए गोली चलाने से पहले क्या उपाय किये गए। जबकि ऐसे समय पुलिस लाठी चर्च, आंसू गैस, पानी की बौछार, प्लास्टिक की गोली और अंत में हवाई फायरिंग का इस्तेमाल पहले करती है। अंतिम उपाय गोली मानी जाती है। लेकिन यहां सीधे गोली चलाने का आदेश किसने दे दिया। वीडियो बताते हैं कि गोली सीधे चलाई जा रही है। जिससे दो दर्जन लोग घायल हो गए। अब तक दो की मौत की सूचना है, गंभीर रूप से ज़ख्मियों का इलाज चल रहा है।
-तीसरा सवाल इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारों से भी है कि उन्हें विचार करना पड़ेगा कि ऐसे संवेदनशील समय रिपोर्टिंग कैसे की जानी चाहिए। उन्हें पत्रकार और यू ट्यूबर का अंतर समझना होगा। लाइव रिपोर्टिंग में रिपोर्टर वही बोले जो विज़ुअल दिख रहा हो। स्पॉट से रिपोर्टिंग कर रहे कई वेब रिपोर्टर ने कहा कुछ दिखा कुछ।
सरकार भी अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। उसने जांच कमेटी गठित की है। अपेक्षा है कि ईमानदारी से जांच हो। उसकी निष्पक्षता मिसाल बने। कोई भी दोषी हो, वो बचने न पाए।
अंत में सभी नागरिकों से अपील है कि समाज में जातीय और साम्प्रदायिक अफ़वाह फैलाने वाले की पहचान करें। उससे दूर रहें। आपसी प्रेम और सद्भाव ही किसी भी समाज, राज्य और देश के विकास का सबब बनता है। आईएस अफ़सर रहे कवि-लेखक ध्रुव गुप्त जी का शेर है:
मुल्क़ की आख़िरी उम्मीद, अब मुहब्बत है
बचा सको तो सियासत से बचा लो इसको !
(यह तस्वीर उस माँ-बाप की है जिसकी एक ही संतान थी। इनके 16 साल के लाडले मुदस्सिर की जान का जिम्मेदार कौन है। उसका मैट्रिक का रिज़ल्ट 17 जून को आने वाला था।)