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गोल गोल गोयल बजट- डेडलाइन का पता नहीं, केवल हेडलाइन है - रवीश कुमार

रवीश कुमार
2 Feb 2019 4:11 AM GMT
गोल गोल गोयल बजट- डेडलाइन का पता नहीं, केवल हेडलाइन है - रवीश कुमार
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बेरोज़गारों को कुछ नहीं मिला। उन्हें प्रदर्शन करने की छूट है। टीवी देखने की जिस पर उनकी लड़ाई का कवरेज कभी नहीं आएगा।

फरवरी 2019 में 29 साल का एक मज़दूर असंगठित क्षेत्र में प्रवेश करता है। 31 साल तक हर महीने 100 रुपये जमा कराता है। सरकार भी 100 रुपये जमा कराती है। 2050 में वह साठ साल का हो जाता है। तब उसे पीयूष गोयल की स्कीम के अनुसार हर महीने 3000 की पेंशन मिलेगी।

उस समय रुपये की कीमत के हिसाब से ये चवन्नी के बराबर है या चवन्नी से कम, आप अपने फोन में मौजूद कैलकुलेटर का इस्तमाल करें।

इसकी जगह सरकार को बताना चाहिए था कि अटल पेंशन योजना से कितने मज़दूरों को कितनी पेंशन दी जा रही है। ताकि स्थिति का अंदाज़ा हो जाता।

असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों को साठ साल के होने पर 3000 की पेंशन देने की योजना और घोषणा हेडलाइन की लूट से अधिक नहीं हैं। जो कल हिन्दी अख़बारों में छप कर लहर पैदा करने लगेगी।

सरकार यही बता देती कि उसके राज में कितने मज़दूरों को न्यूतनम मज़दूरी सुनिश्चित कराई गई है। असंगठित क्षेत्र में 40 करोड़ मज़दूर या लोग काम करते हैं। 10 करोड़ के लिए यह योजना बनी है।

गंगा मैय्या ने प्रधानमंत्री को बुलाया था। 5 साल के लिए गद्दी पर बिठाया था। उन्हें फिर से गंगा मैय्या के पास जाना है। बनारस में आरती के फुटेज लाइव दिखाने हैं। कम से कम इस साल नमामि गंगे का बजट बढ़ाया जा सकता था।

मगर अफसोस। इस बजट में नमामि गंगे का बजट 2250 करोड़ से घटाकर 700 करोड़ कम कर दिया। अब गंगा मैय्या तो सवाल नहीं करेंगी कि 1500 करोड़ किसके कहने पर घटाए।

2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी योजना लांच हुई थी। देश के 96 ज़िलों में जहां 30 प्रतिशत से कम सिंचित भूमि थी। 2018-19 के बजट में इस योजना के लिए 2600 करोड़ दिया गया मगर खर्च हुआ 2181 करोड़।

एक ही साल में हर खेत को पानी योजना का बजट 1700 करोड़ कम कर दिया गया। 2019-20 के लिए मात्र 903 करोड़ दिए गए हैं। क्या इस योजना के लक्ष्य पूरे हो गए।

गर्भवती महिला और बच्चे के लिए प्रधानमंत्री मातृत्व योजना लांच हुई थी। 2018-19 में 2400 करोड़ दिया गया मगर खर्च हुआ 1200 करोड़ ही। क्यों सरकार ने इस योजना पर खर्च नहीं किए?

प्रधानमंत्री कौशल योजना का बजट भी 400 करोड़ कम हो गया है। इसके तहत बनाए जाने वाले या चलाए जाने वाले मल्टी स्किल ट्रेनिंग संस्थानों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। 2018-19 में 3400 करोड़ था। 2019-20 के लिए 400 करोड़ कम है।

साइंस एंड टेक्नालजी मंत्रालय में रिसर्च का बजट 609 करोड़ से कम हो कर 493 करोड़ हो गया है।

आंगनवाड़ी और आशा वर्कर को 3000 का मानदेय मिलता है। 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। यानी 4500 मिलेगा। न्यूनतम मज़दूरी से काफी कम।

अब आते हैं 2 हेक्टेयर से कम जोत के मालिक किसानों पर। उन्हें हर महीने 500 रुपये मिलेंगे। वही बता सकते हैं कि सरकार से 500 रुपया पा कर उन्होंने कौन सा धन पा लिया और इतिहास बना लिया।

सालाना 5 लाख तक आमदनी वालों को हर महीने 1000 से अधिक की बचत हो गई है। उन्हें न तो टैक्स देना होगा और न फार्म भरना होगा। ऐसे 3 करोड़ अब छुट्टी मनाएं और होली भी।

बाकी 4 करोड़ पर टैक्स देने की जवाबदेही होगी। उन्हें भी कुछ कुछ लाभ मिला है लेकिन वो अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट से पूछें कि कितना लाभ हुआ है और कितना नहीं। इंकम टैक्स पर सरचार्ज 3 प्रतिशत से बढ़कर 4 प्रतिशत हो गया है मगर दो फ्लैट वालों को बड़ी राहत मिली है। बल्कि ऐसे लोगों को इस बजट में सबसे अधिक फायदा हुआ है।

नौकरी देने वाला सेक्टर है टेक्सटाइल। कभी 6000 करोड़ के पैकेज का खूब हंगामा हुआ। हेडलाइन बनी थी। इसके बजट में 1300 करोड़ की कमी हो गई है। लगता है कि 6000 करोड़ के पैकेज से 10 लाख रोज़गार पैदा करने का दावा फुस्स हो गया। आप इस बारे में इंटरनेट सर्च कर लें।

बेरोज़गारों को कुछ नहीं मिला। उन्हें प्रदर्शन करने की छूट है। टीवी देखने की जिस पर उनकी लड़ाई का कवरेज कभी नहीं आएगा।

भारत सरकार के पास नौकरी का अपना डेटा नहीं है। जो अपना है उस पर शक है। मेकैंजी के डेटा पर भरोसा है। ओला और उबर ने कितनी नौकरी दी ये पता है मगर उनके विभागों से जुड़ी परियोजनाओं ने कितनी नौकरी दी ये पता नहीं है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है और ये उनके निजी विचार है

रवीश कुमार

रवीश कुमार

रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।

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