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- वैश्या.....कल शाम से ...
वैश्या.....कल शाम से तैयार होकर काम पर लग जइयो। फिर न नाटक करना...और भागने की सोचना भी मत...वरना कालू बाजार से लाल मिर्च ले आया है
-- वैश्या--
.....कल शाम से तैयार होकर काम पर लग जइयो। फिर न नाटक करना...और भागने की सोचना भी मत...वरना कालू बाजार से लाल मिर्च ले आया है। यह कहकर वह हो हो कर हंसने लगी।
अभी तक आपने पढ़ा।
अब
--भाग 3--
और सुन किसी ग्राहक से अपना नाम मधु सधु नहीं माही बताना। यह मत सोचना कि किसी ग्राहक से तू अपना दुखड़ा सुनाएगी तो वह तुझे यहां से निकाल देगा...सब यहां मजे के लिये आते हैं,मदद के लिये नहीं। फेर मेरे लोग तेरे पास ग्राहक बनकर आते रहेंगे। कल से टाईम पे लग जाना। इतना कहकर वह कोठरी से निकल गई।
अब मधु माही हो चुकी थी। एकबारगी तो मन में आया कि जान दे दूं। मगर उसे आस थी कि हो सकता है जित्तू को अपने किये पर पछतावा हो और वह उसे ले जाये।
इसी आस में अब कोठा नम्बर बाईस पर उसके आठ साल बीत चुके थें। न जित्तू आया न उसकी कोई ख़बर। हां यह अवश्य पता चला कि बगल के कई कोठों पर जित्तू इसके पहले भी लड़कियों को फांसकर बेच चुका था।
अतीत की यह बातें याद कर उसकी आंखें शून्य में टँग गई थी।
ओय कहाँ खोई हो माही...किसी ने उसे की पीठ पर ठोंका तो मधु चौंक गई।
वह बनावटी मुस्कान के साथ अरे राजू...तुझे ही याद कर रही थी। तू हफ्ते भर से आया नहीं था न....इसलिए तेरी राह देख रही थी।
ओह, सच्ची माही...राजू मुस्कुराते हुये बोला। असल में ठेकेदारी का धंधा ही ऐसा होता है। हफ्ते भर से लेबर मजदूर के चक्कर में दूसरे शहर गया था। राजू ने कोठे की सीढ़ियां चढ़ते हुए बताया।
मधु राजू के बारे में लगभग सब कुछ जान चुकी थी। राजू ठेकेदार था। यह लगभग एक साल से आ रहा था। कुछ साल पहले राजू की पत्नी मर गयी थी। उसने ब्याह करने की अपेक्षा विधुर रहना ठीक लगा। पत्नी वियोग में वह शराब का सेवन करने लगा और एकबार दोस्त उसके मनबहलाव के लिये कोठे पर ले आया उसके बाद से यह अक्सर आता रहता है। वह मधु से कहता है कि उसमें वह अपनी पत्नी की झलक देखता है।
मधु को भी वह अन्य ग्राहकों से अलग लगता है...न रौंदने की इच्छा न नोचने का प्रयास। बस आता है इधर उधर की बातें करता है। शराब के पैग लगाता है। फिर सो जाता है औऱ अल्लसुबह उठकर चला जाता है। ठेके की मालकिन को तय से अतिरिक्त पैसा तो देता ही है। मधु के लिये साड़ी और कई बार उपहार लेकर आता है। एक बार आया तो मधु बीमार थी वह बेहद परेशान रहा भागकर दवा लाया। दो तीन दिन लगातार फल दवा लेकर आता रहा। जब मधु को आराम हुआ तब मधु उससे लिपट कर रो पड़ी। उसे महसूस हुआ कि राजू कोई सामान्य ग्राहक नहीं जो एक वैश्या से मात्र जिस्म की जरूरत भर मतलब रखता हो। तबसे दोनों में लगाव बढ़ गया था। यह बात कोठा मालकिन भी समझ गयी थी...मगर उसे क्या उसे तो राजू से ज्यादा पैसे मिलते थें। और अब तो मधु भी धंधे में ढल चुकी थी।
मधु उन औरतों में सी थी जिसे मर्दों के प्रभाव से ज्यादा आत्मिक भाव आकर्षित करते हैं। मगर कोठे पर आत्मिक भाव नहीं सिर्फ जिस्म का भाव लगता है। और प्रभाव दिखाये जाते हैं।
राजू विरले मर्दों में से था। सो मधु को भा गया। साल भर में शायद ही एक दो बार ही उसने मधु से जिस्म की फरमाइश की हो। वह मर्दों में भेड़ियों की जमात का भेड़ था।
आज राजू आया इधर उधर की ढेर सारी बातें हुईं। सुबह हुई राजू चला गया। एकदिन मधु को उल्टियां होंने लगीं दीदी ने डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने जांच कर बताया मधु पेट से थी।
मधु ऐसी गलती तो करती न थी मगर उसे याद आया। ओह उस दिन....राजू....
दीदी ने डॉक्टर से एबॉर्शन के लिये बात की मगर मधु दीदी से मिन्नतें करने लगी दीदी हमने हमेसा से आपकी बात मानी है,आप हमारी बात मान लीजिए। हमें बच्चा नहीं गिराना है...इसको रखना है।
दीदी को लगा कि चलो वैसे भी यह उम्र के ढलान पर है। बहुत कमवा चुकी है। इस उम्र तक आते आते कोठे की लड़कियां अगर बच्चा पैदा करना चाहें तो छूट मिल जाती है।
डॉक्टर के यहां से आते ही मधु को एक अलग कमरा दे दिया गया। धंधे से अलग कर दिया गया। मधु सोच रही थी कि राजू बच्चे को अपना मानेगा या नहीं... न भी मानेगा तो क्या मैं तो जानती हूं न।
इस बीच राजू आया जब उसने मधु को पेट से जाना तो वह खुश हुआ। खर्चे के पैसे वह आकर देता रहा और जरूरत के सामान भी। ऐसे करते-करते छ महीने के दिन निकल गयें थें.... मगर एकदिन खबर मिली जो मधु के लिये वज्रपात जैसा था।
क्रमशः....
विनय मौर्या।
बनारस।