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राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मुलम्मा हटा कर देखिए, भारत का विरोध कौन कर रहा है?

Special Coverage News
21 Dec 2019 6:31 AM GMT
राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मुलम्मा हटा कर देखिए, भारत का विरोध कौन कर रहा है?
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मनीष सिंह

देश के सिस्टम पर यकीन रहा था। कोई नेहरू खुद का विपक्ष खुद होकर नियंत्रण रखता है। अगर नही तो इंदिरा, राजीव को पार्टी के भीतर से चुनोती मिल जाती है।पार्टी फेल तो कोर्ट तो कभी एकीकृत विपक्ष, मगरूर होती सरकार को कंट्रोल करता रहा है।

कभी कोई शेषन उठ खड़ा होता है, कोई सीएजी आ जाता है, कोई कोर्ट झाड़ पिला देती है, कभी जेपी कभी अन्ना ही आ जाता है। कोई एडिटर शौरी बखिया उधेड़ देता है, तो कोई बड़ा राजधर्म की शिक्षा दे जाता है। बुनने वालो ने इस सिस्टम को बखूबी बुना था। भारत का लोकतंत्र ईश्वर का दुलारा बच्चा रहा है, जिसका रक्षा ईश्वर खुद फानूस होकर करता रहा है।

मगर ये विश्वास पिछले कुछ सालों में टूटा। इस पीढ़ी ने, पलक झपकते पीढ़ियों का पागलपन देखा है। लिंचिंग देखी, नोटबन्दी देखी, स्वच्छ भारत, गैस बाटने, आर्थिक सुधारो की, झूठे आंकड़ो की जुमलेबाजी देखी। इतिहास का गौरव गान और अफसोस गान एक साथ सुना। बदला लेने का जज्बा भी महसूस किया।

इतिहास के साथ साथ एडमिनिस्ट्रेशन, इकॉनमिक्स, समाजशास्त्र के सारे सिद्धांत ताक पर रखा जाते देखा। कुटिल एग्जीक्यूटिव के पैरों में- संसद, न्याय के मंदिर, मीडिया, ब्यूरोक्रेसी औऱ संस्थानों को लोटते देखा। किसानों, व्यापारियों को लूटकर, सरकारी खजाने और बाजार का कीमा बनाकर दो चन्दादाताओं के दस्तरख़्वान में परोसती सरकार को देखा।

प्रोफेशनल,शिक्षित,भरे पेट वालों लोगो का "मारो-काटो-बदला लो" हिस्टिरिया देख लिया। आधे पेट और खाली जेब के साथ, गुरबत को मारों को भी झंडा थामकर धर्म हुंकारते हुए देख लिया। कुलबुलाते हुए ये साल गुजरे हैं। अंधकार घना होता गया है।

इस जनसैलाब की गंगोत्री, एनआरसी-सीएए के गैरजरूरी, गैरजिम्मेदाराना कानून नही। ये नफरत और धमक की राजनीति के विरुद्ध भारत के धीरज के खत्म होने का एलान है। कॉलेज, यूनिवर्सिटीज के छात्र समझते है कि यह राजनीति उनका भविष्य अंधकारमय बना रही है। उन्हें खूब पता है कि चंद जाहिल दिमागों और उनके लठैतों की सरकार,अपने चुने हुए साथियो के अलावा किसी का भला नही कर सकती। नया भारत बनाना छोड़िए, ये पुराने भारत की मर्यादा भी सुरक्षित नहीं रख सकती।

सिस्टम से कोई उम्मीद नही बची। सिस्टम के भीतर कब्जा एब्सल्यूट है। लोकतंत्र की आवाज और चेहरा बचेगा तो सिस्टम से बाहर, सिस्टम के सितम झेलती जनता से बचेगा। जिसे आप प्रोटेस्ट या विरोध कहते हैं, वह समर्थन है भारत की आत्मा को, उंसके विचार और परिभाषा को।

रही विरोध की, नकली राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मुलम्मा हटा कर देखिए, भारत का विरोध तो ये सरकार कर रही है।

लेखक मनीष कुमार के अपने विचार है

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