- होम
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- राष्ट्रीय+
- आर्थिक+
- मनोरंजन+
- खेलकूद
- स्वास्थ्य
- राजनीति
- नौकरी
- शिक्षा
- Home
- /
- हमसे जुड़ें
- /
- इस्तीफा हो तो...
इस्तीफा हो तो लालबहादुर शास्त्री जैसा, ओमप्रकाश राजभर, मायावती या नीतीश कुमार जैसा नहीं
रुद्रप्रताप दुबे
लाल बहादुर शास्त्री जी की जीवन की एक बड़ी घटना वो इस्तीफा भी रहा है, जो बतौर रेल मंत्री उन्होंने 1956 में तमिलनाडु की एक रेल दुर्घटना में करीब 142 लोगों की मौत के बाद दिया था।
ओशो कहते थे 'जिसने भोगा ही नहीं वो त्याग कैसे करेगा और अगर करेगा तो, वो त्याग नहीं झूठ है। वो उदाहरण देते हैं कि गरीबों के धार्मिक उत्सव हमेशा भोजन के उत्सव होते हैं और अमीरों के सदा उपवास के। जिनके अधिकतर दिन भूख में गुजरते हैं उसके लिए उत्सव का अर्थ ही पकवान है और खाने से ऊब चुके लोग उत्सवों के दिन उपवास की क्रिया की तरफ बढ़ जाते हैं। बुद्ध इसलिए सन्यासी हुए क्योंकि सांसारिक सुख से ऊब गए थे और महावीर नग्न इसीलिए हो पाए क्योंकि वस्त्रों से थक चुके थे। अब अगर हम बुद्ध और महावीर बनने जाएंगे तो चूक कर जाएंगे। पहले भोगने का सामर्थ्य और नैतिकता लाना पड़ेगा तभी त्याग को पा सकेंगे।'
मैं भी इस मत से सहमत हूँ कि 'त्यागपत्र' महानता की कुंजी तभी हो सकती है जब उसमें भोगा हुआ त्याग हो। लालबहादुर शास्त्री ने असमय मृत्यु को अपने परिवार में भोगा था इसीलिए उनके इस्तीफे वाले त्याग ने उनके राजनीतिक जीवन को गंभीरता दी जबकि हालिया वर्षों में ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा सरकार के मंत्री पद से, मायावती जी ने संसद से और नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक दिन बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था लेकिन इन तीनों नेताओं के समर्थक तक आज इस बात को भूल चुके हैं।
वजह सिर्फ एक, जिस पीड़ा को ये तीनों उस वक्त कह रहे थे, उसे उन्होंने बस कहा था, भोगा नहीं था और वक्त ने इसे साफ भी कर दिया जब आज तीनों में दो पूरे और एक लगभग भाजपा के साथ खड़े हैं।