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तीन पत्रकारों के संस्थान से जाने पर मेरे लेख पर प्रतिक्रियाएं- अवधेश कुमार

तीन पत्रकारों के संस्थान से जाने पर मेरे लेख पर प्रतिक्रियाएं- अवधेश कुमार
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एबीपी से तीन पत्रकारों की नौकरी जाने के बाद मैंने एक पोस्ट लिखा। मैंने पिछले काफी समय से कई कारणों से पत्रकारिता पर फेसबुक पर लिखना बंद कर दिया था। कई लोग मुद्दों पर की गई आलोचनाओं को निजी मान लेते थे और ऐसे अनेक लोग मेरे खिलाफ काम करने लगे। कुछ संस्थानों मंें मेरे विरुद्ध निर्णय किए गए। किसी चैनल पर मेरा जाना बंद हुआ तो जिस चैनल पर मुझे कभी बुलाया नहीं किया वहां भी तय किया गया कि इनको मत बुलाओ। इससे बहुत ज्यादा अंतर नहीं आता, पर मेरे निजी संबंध इससे खराब होने लगे। हालांकि मैं कभी किसी व्यक्ति या संस्थान पर लक्षित कम ही लिखता था। जो सामान्य दोष मुझे नजर आते थे उन्हेें ही अंकित करता था। जो भी हो एक समय ऐसा आया जब मैंने सोचा कि अब कुछ समय तक फेसबुक पर पत्रकारिता पर नहीं लिखना है। हालांकि अखबारों में मैंने समय-समय पर लिखा है।

किंतु एबीपी की सामान्य सी घटना को ऐसे बना दिया गया मानो देश में पत्रकारीय स्वतंत्रता ही खत्म हो गई है। इस तरह के अनर्गल और झूठ प्रचार से मैं व्यथित हो गया। मैंने अपने स्तर पर इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की और जितनी जानकारी मिली उससे संतुष्ट होने के बाद तय किया कि इस पर लिखना चाहिए। हालांकि लिखते समय मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतने अधिक लोग उसे पढ़ेंगे और ऐसी प्रतिक्रियाएं आएंगीं।

मेरे फेसबुक पेज से पता चलता है कि करीब आठ हजार लोगों ने इसे पढ़ा। पूरा पढ़ा या आधा यह कहना कठिन है। यदि फेसबुक प्रोफाइल पर भी उतना ही मान लिया जाए तो करीब 16 हजार लोगों ने मेरे फेसबुकर पर इसे पढ़ा है। दोनों को मिलाकर 850 के आसपास लाइक हैं, सवा तीन सौ कमेंट आए हैं तथा करीब दो सौ शेयर हुए। इसके अलावा काफी लोगांें ने कॉपी पेस्ट किया। कई वेबसाइटों ने इसे उठा लिया। उन सबकी संख्या देना कठिन है। 1100 शब्द से ज्यादा के पोस्ट पर इतने लोगों के आने की मुझे कल्पना नहीं थी। इसका अर्थ हुआ कि पत्रकारिता में होने वाली घटनाओं को लेकर लोगांें में पढ़ने और प्रतिक्रिया देने की रुचि है। दूसरा, लोग लंबे आलेख सोशल मीडिया पर भी पढ़ते हैं। तीसरा, अगर आप साहस के साथ सच लिखते हैं तो आपको समर्थन मिलता है। जितने कमेंट हैं उनमें 99 प्रतिशत में मेरे मत का समर्थन किया गया है। कुछ लोगों ने मुझ पर आरोप लगाए हैं, मेरे से असहमति व्यक्त कर दी है, लेकिन उनमें खीझ ज्यादा है, तथ्य नहीं। मैंने जब भी पूछा कि आप तथ्य दीजिए, या मेरा कोई तथ्य गलत है तो बताइए .....किसी ने नहीं दिया।

इस पोस्ट पर दिल्ली या बाहर काम करने वाले वैसे चार-पांच पत्रकारों को छोड़कर किसी पत्रकार ने न प्रतिक्रिया दी, न लाइक किया, जिनको पत्रकारिता जगत में लोग जानते हैं। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? इनको किस बात का भय है? विरोध में भी प्रतिक्रिया दे सकते थे लेकिन यह भी नहीं किया। हां, व्यक्तिगत मुलाकात या फोन पर बातचीत में जरुर कहा कि आपने बेजोड़ लिखा। एकाध हितैषी मित्र की यह भी टिप्पणी थी कि आप क्यों सबसे बैर मोल ले लेते हैं। आपको तो एबीपी डिबेट में कभी देखा भी नहीं। यह उनका मत है। आज के समय के अनुसार ठीक ही सुझाव था। एक मित्र ने बड़े ही सहज भाव से कहा कि अवधेश जी का काम करने का तरीका यह है कि लक्ष्मी जी आने भी चाहें तो उन्हें ये बाहर धकिया दंेेगे। मैं एक आस्तिक व्यक्ति हूं। यह मानता हूं कि कोई व्यक्ति हमारे प्रारब्ध को प्रभावित नहीं कर सकता है। केवल यही सोचता हंूं कि मैं जानबूझकर कुछ गलत न लिखूं, दुराग्रह या पूर्वाग्रह मेरे चिंतन में न आए और कुछ भी गैर ईमानदार या अनैतिक मेरे से न हो...। शेष तो आज के पतनशील समय में आप कितना भी नैतिकता और ईमानदारी का पालन करें, आपकी निंदा, आलोचना होगी....लोग आपको आरोपित करेंगे.....लेकिन इससे परेशान होने या दबाव मेें मैं नहीं आता। अपना अंतर्मन निर्मल और निष्कलुष होना चाहिए।

इसलिए मैने जो कुछ लिखा उस पर कायम हूं। अगर भविष्य में इससे संबंधित दूसरी सूचनाएं मुझे मिलीं तो उसे भी लिखूुगा। उस समय अपनी भूल स्वीकारने में भी नहीं हिचकूंगा। किंतु अभी तक मैंने जो कुछ भी लिखा वो पूरी तरह सच प्रमाणित हुआ है। द हिन्दू अखबार में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार निर्णिमेश कुमार की टिप्पणी ने सिद्धार्थ बरदराजन संबंधी मेरी जानकारी को सही ठहराया है। उन्होंने लिखा है कि आप सही हो। हालांकि हर सरकार कई तरीके से रिपोर्टर पर दबाव बनाने की कोशिश करती है, लेकिन अभी अभिव्यक्ति की आजादी पर किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। मोदी विरोधी अखबार के एक ऐसे पत्रकार की जिसकी छवि वर्षों से एक निष्पक्ष पत्रकार की है, टिप्पणी महत्वपूर्ण है। इस पोस्ट पर्र आ प्रतिक्रियाएं इस बात का प्रमाण हैं कि जागरुक लोग आपकी गतिविधियों पर नजर रखते हैं और समीक्षा भी करते हैं। आप झूठा माहौल बनाकर सबको नहीं बरगला सकते हैं। यह इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है यह उनके निजी विचार है)
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