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रोहिंग्या संकट- क्यों और कैसे?

रोहिंग्या संकट- क्यों और कैसे?
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अभिमन्यु कोहाड़
रोहिंग्या का मुद्दा दिन-प्रतिदिन ज्यादा गर्म होता जा रहा है। म्यांमार ने उन्हें अपना मानने से मना कर दिया है और कोई दूसरा देश उन्हें शरण देने के लिए तैयार नहीं है। भारत की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि रोहिंग्या मुस्लिम भारतीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हैं और रोहिंग्या को शरण देने से भारत के संसाधनों पर अनावश्यक बोझ पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ म्यांमार की नेता "आंग सान सू की" ने भी साफ कर दिया है कि उनका देश अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे नहीं झुकेगा।
किसी भी युद्ध या लड़ाई में हानि आम व निर्दोष आदमी की होती है। म्यांमार के रखिन स्टेट में कुछ दिन से रोहिंग्या आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में आम नागरिक भी निशाना बन रहे हैं। जिस तरह से जड़ के बिना पेड़ नहीं खड़ा हो सकता उसी तरह से हर घटना के पीछे सैंकड़ों कारण होते हैं। उन कारणों को समझे बिना अगर हम घटना को समझने की कोशिश करेंगे तो गलती की संभावना बढ़ जाती है। हम ज्यादा पुराने इतिहास में ना जा के 2000 के बाद की घटनाओं से इसे समझने की कोशिश करते हैं। 2001 में अफ़ग़ानिस्तान में बामियान में बौद्ध के बड़े बड़े पुतलों को तालिबान ने तोपों और रॉकेटों से उड़ा दिया। इसके बाद 2012 में बांग्लादेश के रामू इलाके में बौद्धों और हिंदुओं के खिलाफ जमाते इस्लामी के लोगों ने व्यापक स्तर पर हिंसा की। इसके बाद 2016 के ब्रह्मानबड़िया इलाके में बौद्धों और हिंदुओं के हज़ारों घर जमाते इस्लामी द्वारा जला दिए गए। इन सभी घटनाओं पर विश्व समुदाय की एक तरह से चुप्पी रही या फिर ना के बराबर विरोध किया। यह कटरपंथी मुस्लिमों द्वारा बौद्धों और हिंदुओं पर किया गया अत्याचार था। इन घटनाओं की जांच के बाद कई रोहिंग्या मुस्लिमों की संलिप्तता भी सामने आए थी। बांग्लादेश और म्यांमार पड़ोसी देश हैं। अब अगर बात म्यांमार की करें तो यह समझना होगा कि वहां पिछले साल हिंसा क्यों भड़की? वहां रोहिंग्या लोगों ने एक बौद्ध महिला का अपरहण करके गैंगरेप किया। इसके बाद बौद्ध लोगों ने इकठ्ठा होकर रोहिंग्या लोगों की एक बस जला दी। बस जलाने वाले बौद्ध लोगों के ऊपर म्यांमार की सरकार ने कारवाई करते हुए गिरफ्तार किया। इसके बाद शुक्रवार की नमाज के बाद बदले की भावना के तहत मुस्लिम लोगों ने बौद्धों पर हमला कर दिया और इसके बाद हिंसा ने विकराल रूप धारण कर लिया। अगर बात इस साल की हिंसा की करें तो अगस्त 25 को रोहिंग्या आतंकियों ने म्यांमार सेना और पुलिस की पोस्टों पर हमला किया जिसमें म्यांमार की सेना के 12 जवान शहीद हुए। इसके बाद म्यांमार की सेना और बौद्ध लोगों ने रोहिंग्या लोगों को निशाना बनाया जिस से हज़ारों निर्दोष लोग भी बेघर हो गए।
इस से बात साफ हो जाती है कि बौद्धों द्वारा अब प्रतिक्रिया की जा रही है और प्रतिक्रिया तब ही होती है जब क्रिया होती है।
इस प्रतिक्रिया में हज़ारों निर्दोष रोहिंग्या लोग बेघर हो गए जो की बेहद ही दुखद है। किसी भी तरीके से आम इंसान के खिलाफ हिंसा को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता लेकिन हिंसा को रोकने के लिए उसकी जड़ में जाना जरूरी है। आज के हालात के लिए मेरे अनुसार मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ साथ कहीं ना कहीं शांति के ठेकेदार भी दोषी हैं। ये शांति के ठेकेदार तब कहाँ थे जब बौद्ध और हिन्दू लोगों के खिलाफ हिंसा हो रही थी? अगर उस समय इन शांति के ठेकेदारों ने बौद्धों और हिंदुओं के लिए आवाज़ उठाई होती तो शायद आज हालात इतने खराब नहीं होते। म्यांमार सरकार को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रखिन स्टेट में हिंसा पर रोक लगाई जाए और जानमाल की क्षति नहीं होनी चाहिए।
इस पूरे मुद्दे का एक पहलू ये भी है रोहिंग्या आतंकियों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान में ट्रेनिंग मिलती है। म्यांमार में मुख्य तौर पर "आ अल मुजाहिदीन", "रोहिंग्या सॉलिडेरिटी आर्गेनाइजेशन" और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इन सब के लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों से सम्बन्ध हैं। पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई द्वारा इन सभी आतंकियों को ट्रेनिंग दी जाती है। इसी साल 4 मई को म्यांमार के बूटीडांग कस्बे में हुए आईईडी धमाके में पाकिस्तान की पोल खुल गयी थी। बम बनाते समय मारे गए 4 आतंकियों में से 2 पाकिस्तान के थे। ये दो पाकिस्तानी थे अब्दुल रहीम और अनार्थउल्लाह जो 20 साल तक अफ़ग़ान-पाकिस्तान बॉर्डर पर रहने के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी द्वारा म्यांमार भेजे गए थे।
रोहिंग्या आतंकी संगठनों के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के साथ जुड़ाव होने की वजह से ही भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने यहां शरण नहीं रहने देना चाहता। यह सम्भव है कि रोहिंग्या शरणार्थियों की आड़ में पाकिस्तान खुफिया एजेंसी के जासूस या आतंकी भारत में घुस जाएं इसलिए भारतीय सरकार रोहिंग्या लोगों के देश में घुसने पर रोक लगा रही है। एक सवाल यहाँ पर यह भी है कि सभी शरणार्थी तो आतंकी नहीं हैं लेकिन क्या हज़ारों की भीड़ में किसी को शक्ल देख के पहचाना जा सकता है कि कौन आतंकी है और कौन नहीं? तो यह सम्भव है कि हजारों की भीड़ में शरणार्थी बन के आतंकी भी हमारे देश की सीमा में प्रवेश कर जाएं। कुछ राजनैतिक लोगों का अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के लिए कहना है कि मुस्लिम होने की वजह से रोहिंग्या को देश से निकाला जा रहा है। अगर मुस्लिम होने की वजह से ही रोहिंग्या को शरण देने से मना किया गया होता तो अफगानिस्तान के हजारों शरणार्थी भारत में न रह रहे होते। इसलिए ऐसे आरोप सिर्फ राजनीति से प्रेरित मालूम पड़ते हैं। कल अगर किसी आतंकी हमले में रोहिंग्या मुस्लिम का हाथ सामने आता है तो क्या उनके प्रति हमदर्दी जताने वाले अल्ट्रा-सेक्युलर लोग इसकी जिम्मेदारी लेंगे?
दूसरी तरफ कुछ मुस्लिम देश रोहिंग्या के समर्थन में बड़ी बड़ी बातें कह रहे हैं लेकिन एक भी रोहिंग्या शरणार्थी को अपने देश में शरण नहीं दी है। ऐसे दोहरे चरित्रों की वजह से ही आज दुनिया में ऐसे नाजुक हालात बने हुए हैं।
बीबीसी की एक खबर के अनुसार अब दुनियाभर के मुस्लिम कटरपंथी संगठन इक्कठा हो कर बौद्धों पर हमले की तैयारी कर रहे हैं। इसके कुछ समय बाद बौद्ध इक्कठा हो कर मुस्लिम से बदला लेंगें।
इस तरह से यह लड़ाई और भी अधिक भयंकर रूप धारण कर लेगी और हानि मनुष्यता की होगी। इसलिए जरूरी है कि इस पर रोक लगाई जाए और रोक लगाने के लिए कट्टरपंथी ताकतों को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है।

लेखक विदेश व रक्षा मामलों के जानकर एवं स्वतंत्र पत्रकार हैं।
शिव कुमार मिश्र

शिव कुमार मिश्र

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